February 25, 2025
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समाचार

उफ अंजली! ये तुमने क्या किया!! मां की डांट से क्षुब्ध होकर जान दे दी

by Som Sahu October 21, 2017  घटनाक्रम 340

शिवहरे वाणी नेटवर्क

बांदा।

जिंदगी बेहद कीमती होती है और हम, खासकर युवा पीढ़ी इसकी कीमत नहीं समझती। यहां मां की डांट से अंजली शिवहरे इस कदर क्षुब्ध हो गई, कि फांसी के फंदे पर झूल गई। अंजली के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। त्योहारों की खुशियां मातम में बदल गईं।

अंजली क्या चाहती थी? मां ने ही तो डांटा था, मां नहीं डांटेगी तो गलतियों पर कौन डांटेगा। फिर ये कौन सा तरीका हुआ मां यह अहसास कराने का कि मैं अब बड़ी हो गई हूं। मां तो अपने बच्चों को बच्चा ही समझती है, चाहे वे कितने ही बड़े क्यों न हो जाएं, और अंजली तो बच्ची ही थी।

महज 17 बरस की उम्र थी अंजली शिवहरे की। बांदा के नरैनी थाना क्षेत्र के रिसौरा गांव में रहने वाले शिवशंकर शिवहरे की पुत्री अंजली नरैली कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष की छात्रा थी। दीपावली के अगले दिन यानी शुक्रवार गोवर्धन पूजा वाले दिन घर में कामकाज को लेकर किसी बात पर उसकी मां ऊषा देवी ने उसे डांट दिया। सामान्य सी बात थी, आई गई हो गई। अंजली फिर काम में लग गई। उधर मां भी कामकाज में व्यस्त हो गई। इस बीच किसी समय अंजली कमरे मे गई और अपने दुपट्टे से फांसी के फंदे पर झूल गई। कुछ देर बात मां ने अंजली को आवाज लगाई लेकिन जवाब नहीं मिला। दो-चार बार आवाज देने पर भी प्रतिक्रिया नहीं आई तो मां उसे देखने कमरे मे गई। वहां अंजली फंदे से लटकी हुई थी। बेटी का शव देख मां की चीख निकल गई। घर मे कोहराम मच गया, आसपास के लोग भी वहां आ गए। मां अब तक उस पल को कोस रही है, जब उसने अंजली को डांटा।

दरअसल नई पीढ़ी में कम होती सहनशीलता समाज में एक बड़ी समस्या का रूप लेती जा रही है। माता-पिता की डांट से क्षुब्ध होकर बच्चों की खुदकुशी के मामले भी बढ़ रहे है। यह प्रवत्ति किशोरवय बच्चो में अधिक देखी गई है। आज माता-पिता के रूप में किसी के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती है किशोरवय बच्चों को संभालना। क्योंकि यही वह उम्र होती है जब बच्चे खुद को बड़ा समझने लगते हैं, और परिजनों की नजर में अभी भी बच्चा और नासमझ ही होते हैं। ऐसे में माता-पिता की डांट किशोरवय बच्चों के अहं को चोट पहुंचा सकती है। जैसा कि मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि परिजनों को किशोरवय बच्चों के साथ मित्रवत संबंध रखने चाहिए, ताकि उनमें नजदीकी बनी रहे। किसी गलती पर सत्तात्मक लहजे में डांटने-डपटने के बजाय प्यार से समझाना चाहिए। जहां परिजनों और बच्चों की नजदीकी अधिक होती है, वहां अंहकार नहीं रहता।

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