November 23, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
धरोहर

जयंती विशेष-3 यज्ञ, दान, तप, पराक्रम और ज्ञान का आदर्श मिश्रण थे सहस्त्रबाहु

by Som Sahu October 16, 2017  आलेखघटनाक्रम 130

शिवहरे वाणी नेटवर्क

जयंती विशेष का तीसरा अंक प्रस्तुत है। लेकिन, इससे पहले एक अहम बात। क्या आपको पता है कि भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन पर आधारित एक टीवी सीरियर भी बन चुका है। छह एपीसोड का यह सीरीयल डीडी-1 चैनल पर वर्ष 2000 में प्रसारित हुआ था। यह जानकारी जाने-माने फिल्म अभिनेता और निर्देशक श्री मुकेश आर चौकसे ने शिवहरे वाणी को दी है। खास बात यह है कि इस सीरीयल में सहस्त्रबाहु की भूमिका भी श्री मुकेश आर चौकसे ने निभाई थी। खैर, तीसरे अंक में हमने हरिवंश पुराण का उल्लेख लिया है, जो इस प्रकार हैः-

गतांक से आगे

हरिवंश पुराण के अध्याय 33 में महाराज जन्मेजय जी को वंश की जानकारी देते हुए वैशम्पायन जी कहते है हे राजन यदु के पुत्र सस्त्रद, पयोद, नील और आन्जिक नाम के हुये। सहस्त्रद के परम धार्मिक तीन पुत्र (१) हैहय (२) हय (३) वेनुहय हुए। हैहय के पुत्र धर्म नेत्र हुए, उनके कार्त और कार्त के पुत्र साहन्ज। जिन्होंने अपने नाम से साहन्जनी नामक नगरी बनाई। साहन्ज के पुत्र राजा महिष्मान हुए जिन्होंने महिश्मती नाम की नगरी बसाई, महिस्मान के पुत्र प्रतापी भद्रश्रेन्य है जो वाराणसी के अधिपति थे, भद्रश्रेन्य के विख्यात पुत्र दुर्दम थे। दुर्दम के पुत्र महाबली कनक हुए और कनक के लोक विख्यात 4 पुत्र (१) कृतौज (२) कृतवीर्य (३) कृतवर्मा (४) क्रिताग्नी थे। कृतवीर्य के अर्जुन हुए, जो बाद में सहस्त्रार्जुन अर्थात सहस्त्रबाहु नाम से विख्यात हुए। सहस्त्रबाहु सूर्य के सामान चमकते हुए रथ पर चढ़ कर सम्पूर्ण पृथ्वी को जीत कर सप्त द्वीपेश्वर बन गया। उसने अत्रिपुत्र दत्तात्रेय की आराधना करते हुए दस हजार साल तक कठिन तपस्या की।

तपस्या से प्रसन्न होकर गुरु श्रेष्ठ दत्तात्रेय ने वरदान प्रदान किये थे जिसमे पहला हजार भुजा होने का था, जो की अर्जुन के द्वारा माँगा गया था, दूसरा सज्जनों को अधर्म से निवारण करना, तीसरा शीघ्रता से पृथ्वी जो जीत लेना और राजा धर्म से प्रजा को प्रसन्न रखना, चौथा वर बहुत संग्रामो को कर अपने हजारो शत्रुओ का वध कर संग्राम भूमि में रण करते हुए अपने से अधिक बलवान, श्रेष्ठ महापुरुष द्वारा मृत्यु को प्राप्त करना।

वैशम्पायन जी बोले, ” हे राजन, उस योगेश्वर की योग माया से युद्ध काल में हजार भुजाये उत्पन्न हो जाती थी। इससे उसने सात द्वीपों वाली पृथ्वी को नगर ग्राम, समुद्र, वन-पर्वत सही शीघ्र ही जीत लिया। हे जन्मेजय, मैंने ऐसा सुना है, कि उस सहस्त्रबाहु ने सातो द्वीपों में सैकड़ो यज्ञ शास्त्र विधि से किये थे। और उसके सभी यज्ञ अधिक दक्षिणा वाले थे और सब यज्ञो में स्वर्ण के खम्भे तथा स्वर्ण की वेदिकाएं बनायीं गई थी। हे महाराज, और सभी यज्ञ देवताओं के विमानों से तथा गन्धर्वो एवं अप्सराओ से सुशोभित थे। जिसके यज्ञ की महिमा से विस्मित होकर वरिदास के विद्वान पुत्र गन्धर्व ने तथा नारद जी ने गाथा गान किया था। नारद जी ने कहा, कि निश्चय है कि जैसा यज्ञ, दान, तप, पराक्रम तथा ज्ञान सहस्त्रबाहु अर्जुन  किया है  वैसा कोई दूसरा राजा नहीं कर सकता।

वह योगी खड्ग, कवच तथा धनुष बाण धारण कर रथ पर बैठा हुआ सातों द्वीपों में मनुष्यों के द्वारा देखा जाता था। धर्म से प्रजा की रक्षा करने वाले उस राजा का धर्म के प्रभाव से कभी दृव्य नष्ट नहीं होता था न कभी शोक, मोह तथा विभ्रम होता था। वह पचासी हजार वर्ष तक सब रत्नों से युक्त होकर चक्रवर्ती सम्राट था। योग के बल से वह स्वयं यज्ञपाल एवं क्षेत्रपाल था। वह स्वयं मेघ बनकर प्रजा की रक्षा करता था।

 

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