by Som Sahu August 25, 2017 आलेख 227
गणेश चतुर्थी से शिवहरे वाणी ने गणेश-कथा श्रृंखला शुरू की है जिसमें गणेशजी की महिमा एवं महात्म से जुड़ी एक कहानी प्रतिदिन प्रस्तुत की जा रही हैं। आज इसी श्रृंखला के अंतर्गत प्रस्तुत कर रहे हैं दूसरी कथा। इस कथा के माध्यम से आप जानेंगे कि भगवान गणेश क्यों एकदंत कहलाए गएः-
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार परशुराम भगवान शिव के शिष्य थे। परशुराम ने जिस फरसे से 17 बार क्षत्रियों को धरती से समाप्त किया था, वह फरसा शिव ने ही उन्हें दिया था। 17 बार क्षत्रियों को हराने के बाद ब्राह्मण परशुराम शिव और पार्वती के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर गए। भगवान शिव उस समय शयन कर रहे थे और गणेश स्वयं पहरा दे रहे थे। गणेश ने परशुराम को रोक लिया। जैसा कि सब जानते हैं कि परशुराम को क्रोध बहुत जल्दी आता था। लिहाजा रोक जाने अपनी नाराजगी जताने लगे। तड़का-भड़की हो गई। बात इतनी बड़ी कि परशुराम ने गणेशजी को धक्का दे दिया। गणेशजी को गुस्सा तो बहुत आया। लेकिन, चूंकि परशुराम ब्राह्मण थे, लिहाजा उन पर प्रहार नहीं करना चाहते थे। उन्होंने परशुराम को अपनी सूंड से पकड़ लिया और चारों दिशाओं में गोल-गोल घूमा दिया। घूमते-घूमते ही गणेश ने परशुराम को अपने कृष्ण रूप के दर्शन भी करवा दिए। फिर कुछ पल घुमाने के बाद गणेश जी ने उन्हें छोड़ दिया। परशुराम कुछ देर तो अवाक रहे, समझ नहीं आया कि हो क्या गया। बाद में खुद को संभालने के बाद उन्हें अपमान का आभार हुआ तो अपने फरसे से गणेशजी पर वार कर दिया। गणेशजी जानते थे कि यह अमोघ फरसा स्वयं भगवान शिव ने परशुराम को दिया है, इसीलिए वह वार को विफल जाने नहीं देना चाहते थे। यह सोचकर उन्हें वार को अपने एक दांत पर झेल लिया। फरसे के प्रहार से दांत टूटकर गिर गया। इस बीच झगड़े का शोर सुनकर भगवान शिव नींद से जाग गए और उन्होंने दोनों को शांत करवाया। तब से गणेशजी एक ही दांत के रह गए और एकदंत कहलाए जाने लगे।
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