November 24, 2024
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समाचार

DECODING CHOTI KATWA… क्यों? कैसे?? किसने???

by Som Sahu August 03, 2017  Uncategorizedआलेखघटनाक्रम 591

सोम साहू

आजकल रहस्यमयी तरीके से महिलाओं के बाल काटे जाने की विचित्र घटनाओ का खौफ तारी है। ये दहशत राजस्थान से चल कर हरियाणा और दिल्ली होती हुई आगरा तक आ पहुंची है। आगरा के दयालबाग में बसेरा रेजीडेंसी में रहने वाली मुन्नीदेवी गुरुवार सुबह चीखकर उठी, चीख सुनकर घरवाले जाग गए। मुन्नीदेवी बेहद घबराई हुई थी। सुबह चार बजे वह कमरे में अपनी चारपाई पर गहरी नींद सो रही थी, कि तभी उसे लगा किसी ने उसका सिर दीवार पर दे मारा है, उसकी चीख निकल गई। उसका सिर चकरा रहा था। इस बीच, मुन्नी के पति महेश की नजर चारपाई के नीचे पड़े बालों पर गई। यह मुन्नी देवी की चुटिया थी जो काट दी गई थी। चुटिया किसने काटी? किसी ने नहीं देखा, खुद मुन्नीदेवी ने भी नहीं। जो मुन्नीदेवी के साथ हुआ, पचास से अधिक महिलाओं के साथ अब तक हो चुका है। क्यों? कैसे?? किसने??? ये तीनों अहम सवाल हर मामले में अनुत्तरित हैं।

चोटी कटवा का मामला मीडिया के जरिये पूरी दुनिया के सामने आ चुका है। विश्व प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक और तर्कवादी सनाल एडामरुकू मानते हैं कि इन घटनाओं के पीछे कोई अदृश्य शक्ति नहीं है, बल्कि इन घटनाओं की रिपोर्ट करने वाली महिलाएं निश्चित तौर पर किसी आंतरिक मनोवैज्ञानिक द्वंद्व से जूझ रही होंगी। जब वे ऐसी घटनाओं के बारे में सुनती हैं तो खुद पर ऐसा होते हुए सा अहसास करती हैं। ऐसा कभी-कभी अवचेतन की अवस्था में हो जाता है।वहीं आगरा के डा. यूसी गर्ग इस पर अपना मनोचिकित्सकीय दृष्टिकोण पेश करते हैं जो एडामरुकू के नजरिये के करीब है। उनका कहना है कि हिस्टीरिया में (न्यूरोन डोपामिन और नोर एड्रलिन) का असंतुलन हो जाता है। इससे पीड़ित लोगों को कुछ देर के लिए सुध-बुध नहीं रहती है। उनके परिजन यह जानते हैं मगर, वे समाज के डर के कारण नहीं बताते हैं।डा. गर्ग की बात को सीधे शब्दों में कहें तो हो सकता है कि इन महिलाओं ने ऐसी ही मानसिक हालत में अपने बाल खुद काटे हों।

पुलिस इन मामलों को किस तरह ले रही है, यह स्पष्ट नहीं है। लेकिन ऐसे मामलों का जल्द से जल्द खुलासा करना पुलिस का दायित्व है। भारतीय समाज में चोटी महिलाओं के सम्मान का प्रतीक है। किसी महिला को अपने बाल अपनी मर्जी से रखने का पूरा हक है। वह चाहे चोटी रखे या बालों को खुला रखे। महिला की सहमति के बगैर उसकी चोटी काटा जाना एक अपराध है और पुलिस को ऐसे मामलों की जांच वैसे ही करनी चाहिए, जैसे किसी संगीन अपराध की जांच होती है। जांच में फोरेंसिक साइंस यानी अपराध विज्ञान के तीनों आयामों पर काम होना चाहिए, यानी भौतिकशास्त्री, रसायनशास्त्री और मनोवैज्ञानिक। मसलन इन मामलों मे एक बात समान है, कि बाल कैंची से काटे गए। सवाल यह कि वो कैंची कहां है? पुलिस महिला के घर की कैंची को फिजिकल फोरेंसिक लेबोरेट्री भेजे। महिला के कटे बालों को कैमिकल फोरेंसिक लेबोरेस्ट्री में जांच के लिए दिया जाए। फिर दोनों की रिपोर्ट का मिलान किया जाए। पीड़िता यानी खुद महिला की मनोवैज्ञानिक जांच होनी चाहिए, जहां उससे सवाल जवाब हो, उसके दिमागी तवाजुन और दिमागी स्वास्थ्य का पता लगाया जाए। मुझे लगता है कि इन तीनों रिपोर्टों का आकलन हकीकत को सामने ले आएगा।  आपको याद होगा कि दिल्ली में मंकी मैन का खौफ। उस मामले में पुलिस ने जब जांच कराई तो पाया कि पीड़ितों ने ही खुद को चोटिल किया था। हालांकि ये रिपोर्ट काफी देर से आई थी। इसी तरह मूर्तियों के दूध पीने और समुद्री पानी मीठा होने जैसी घटनाओं पर भी वैज्ञानिक रिपोर्टों ने अंधविश्वास की आंखें फोड़ दी थी। फिलहाल चोटी कटवा के खौफ में झाड़फूंक करने वालों की पौ-बारह हो रही है। वे लोगों को तरह-तरह के उपाय बता रहे हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों मे झाड़-फूंक करने वाले खूब पैसा पीट रहे हैं, और चोटी कटवा की हकीकत सामने आने तक ऐसा चलता रहेगा।

हम अंधविश्वासों के लिए आमतौर पर अपनी अल्प शिक्षा और पिछ़ड़ेपन को दोषी समझते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी और यूरोपीय देशों में झाड़फूंक करने की कमाई कई गुना बढ़ गई है। ज्यादातर लोग जीवन में शांति की चाहना, कारोबार में बेहतरी और विवाह जैसी समस्याओं के समाधान के लिए उनके पास जाते हैं। इसके पीछे इन देशों में बढ़ती अशांति, आर्थिक अस्थिरता को वजह माना जा रहा है। यानी इन देशों में यदि शांति, सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता कायम हो जाए तो झाड़-फूक करने वालों के बुरे दिन आ जाएंगे।

इसमें कोई दो राय नहीं कि विज्ञान की तार्किकता और प्रयोगसिद्ध सत्यता से बार-बार पराजित होने के बाद भी अंधविश्वास किसी न किसी रूप में खुद को पुनःस्थापित करने का प्रयत्न करता रहा है। यह क्रम आगे भी जारी रहेगा। नई-नई घटनाएं, नए-नए सवाल खड़े होते रहेंगे, विज्ञान उनके जवाब या समाधान तलाशता रहेगासवाल और जवाब के बीच के अंतराल में अंधविश्वास (या अफवाहों) को हवा-पानी मिलता रहेगा। इसीलिए सवाल और जवा के बीच का अंतराल जितना अल्प हो, उतना अच्छा।

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