by Som Sahu May 22, 2017 Uncategorized, घटनाक्रम 300
- हाथ की कलाई कटी होने की बात पंचनामे में लिखी गई, तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह तथ्य कैसे गायब हो गया
- पुलिस परिजनों पर हत्या का आरोप वापस लेने और आरोपियों का नाम हटाने के लिए क्यों डाल रही है दबाव
- पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों की भूमिका भी शक के दायरे में, पीएम करने में लगा दिए गए थे 24 घंटे
शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा
मनोविज्ञान कहता है कि खुदकुशी एक क्षणिक आवेश का नतीजा है। खुदकुशी करने वाला व्यक्ति मरने की एक कोशिश करता है और फिर उसके बाद आखिरी सांस तक जिंदगी के लिए संघर्ष करता है, जिंदगी की भीख मांगता है. चीखता है मैं जाना चाहता हूं। फिर ऐसा कैसे संभव है कि कोई व्यक्ति अपने दोनों हाथों की नसें काटकर खुद को खूनमखून कर दे और उसके बाद फांसी भी लगा ले। या फिर फांसी लगाने के बाद अपने हाथ की नसें काट दे। 24 अप्रैल को थाना ताजगंज के तहत पंचवटी स्थित गायत्री रिट्रीट के जिस फ्लैट में विकास गुप्ता (शिवहरे) की लाश मिली थी, वो पूरा कमरा खून से सना था….विकास की लाश फंदे से लटकी थी, पैर पूरी तरह पलंग पर टिके हुए थे। पुलिस ने जो पंचनामा भरा उसमें दोनों कलाइयों की नसें कटी होने की बात लिखी गई, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस तथ्य को दबा दिया गया। पुलिस लगातार इस बार पर जोर दे रही है कि यह खुदकुशी का मामला है, जबकि सब जानते हैं कि लाशें कभी खुदकुशी नहीं करतीं।
पूरा मामला पुलिस और आरोपियों के बीच गहरी सांठगांठ की ओर इशारा कर रहा है। बीते रोज ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस आपराधिक साठगांठ करने पुलिसकर्मियों को गंभीर चेतावनी दी थी। अब देखना यह है कि विकास के मामले में सरकार का यह संकल्प जमीन पर उतरता नजर आएगा या नहीं। फिलहाल शिवहरे समाज का एक प्रतिनिधिमंडल इस मामले में भाजपा महानगर अध्यक्ष विजय शिवहरे से मुलाकात कर विकास को न्याय दिलाने की इस लड़ाई को आगे बढ़ाएगा।
इस पूरे मामले में पुलिस जिस तरह टालमटोल कर रही है और विकास के परिजनों पर तहरीर पर से हत्या का आरोप वापस लेने और आरोपियों के नाम हटाने का दबाव डाल रही है, वह पुलिसकर्मियों और आरोपियों के बीच किसी साठगांठ का संदेह पैदा करता है। सवाल यह है कि डीआईजी और एसएसपी की ओर से आदेश किए जाने के बाद भी मामला दर्ज क्यों नहीं किया जा रहा। सवाल यह भी है कि क्या पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों को भी मैनेज किया गया। यह संदेह तब और पुख्ता हो जाता है जब विकास का पोस्टमार्टम होने में ही 20 घंटे लग गए।
चलिए एक बार को मान भी लें कि विकास ने खुदकुशी की है, तब भी पुलिस का यह नैतिक दायित्व है कि परिजनों के संदेह और शिकायत पर मामले को दर्ज कर उचित जांच करे और जांच के परिणामों से पीड़ित परिजनों को संतुष्ट करे। सही या गलत, हकीकत जो भी हो सामने आनी ही चाहिए।
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