बड़े काम की बातः इसे पढ़ने के बाद आप क्या सोचते हैं?
(अजय कुमार जायसवाल, लखनऊ)
1931 के बाद पहली बार देश में जातीय जनगणना होने के आसार बन रहे हैं। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा नीतिगत रूप से तो इसके समर्थन में प्रतीत नहीं होती, लेकिन जिस तरह विपक्ष दल और स्वयं उसके सहयोगी दलों का दबाव बढ़ रहा है, उससे यह मसला उसके गले की फांस बनता नजर आ रहा है। उसे आशंका है कि कहीं जातीय जनगणना पिछड़ों की राजनीति को ऐसे मोड़ पर न ले जाए जहां उसे नुकसान उठाना पड़ जाए। साथ ही जातीय जनगणना के आकड़े सामने आने के बाद आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत से अधिक करने की मांग भी जोर पकड़ सकती है।
फिलहाल सवाल यह है कि देश में यदि जातीय जनगणना होती है, तो हमारे समाज (जायसवाल ,शिवहरे, ब्याहुत, गुलहरे, कर्णवाल, गुप्ता, बाथम, शौडीक, शाह, आदि) के लोगों को जातीय जनगणना के समय जनगणना फार्म पर ऐसी कौन सी जाति लिखनी चाहिए जो पूरे देश में सर्वमान्य हो?
एक वरिष्ठ पत्रकार के नाते मुझे अपने सूत्रों के हवाले से जो जानकारी प्राप्त हुई है उसके तहत पूरे देश के यादव जाति के लोगों ने गणना प्रपत्र पर राष्ट्रीय स्तर पर केवल “अहीर” लिखाने का निर्णय लिया है। इसी प्रकार पटेल जाति के लोगों ने अपनी जाति के रूप में पूरे देश में कुर्मी, साहू जाति ने राष्ट्रीय स्तर पर तेली, कुशवाहा जाति के संगठन ने काछी, निषाद संगठन ने मल्लाह, चौधरियों ने जाट, गुजर ने गूजर (केवल एक जाति) ही लिखाने का निर्देश अपनी अपनी जाति के लोगों को दिया है।
पटेल समाज संगठन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी आर.के. पटेल ने अधिकृत जानकारी देते हुए पत्रकारों को बताया – “हमारे संगठन ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय लिया है पूरे देश में समाज के लोग जातीय जनगणना के समय जाति वाले कॉलम में केवल कुर्मी ही लिखवायें। जनगणना करने जो भी सरकारी कर्मचारी आए, उनके फार्म भरने के बाद तब तक हस्ताक्षर न करें, जब तक फार्म में जाति वाले कॉलम में कुर्मी ना लिखा हो। पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही गणना फार्म पर हस्ताक्षर बनाएं। पटेल नेता का यह भी कहना है कि गणना करने वाले ज्यादातर कर्मी सवर्ण जाति के होंगे। वे चाहेंगे की पिछड़ों की सही गणना न होने पाए, इसीलिए वे जानबूझकर पिछड़ों वाले कॉलम को खाली छोड़ने का भरसक प्रयास करेंगे।”
पिछड़े वर्ग के नेताओं की जबरदस्त जागरूकता को देखते हुए हमारे समाज के लोगों को भी सर्वसम्मति से निर्णय लेना होगा कि जातीय जनगणना वाले फार्म में हम अपनी जाति क्या दर्ज कराएं, ताकि पूरे देश में हमारे समाज की गणना अधिकृत रूप से प्राप्त हो सके? उसी आधार पर शासन-प्रशासन में हमारी भागीदारी निर्धारित होगी, क्योंकि जातीय जनगणना की मांग के साथ ही ‘जितनी जनसंख्या भारी, उतनी उसकी भागीदारी’ नारा भी तेजी से उठ रहा है।
जनगणना प्रपत्र पर यदि कोई जायसवाल लिखाएगा, कोई शिवहरे लिखायेगा, कोई ब्याहुत, कर्णवाल या शाह लिखाएगा तो पूरे देश में हमारी संख्या कितनी विभाजित हो जाएगी और जातीय जनगणना में हम अलग-अलग होकर कितने नीचे स्तर पर आ जाएंगे, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या पूरे देश के कलचुरी समाज के लोग किसी एक नाम पर सहमत बनाने के लिए तैयार हो सकेंगे? एक नाम पर सहमति बनाने से पहले गौर करने वाली बात यह है कि पूरे देश में हमें ‘कलवार, कलाल व कलार’ नाम से ही आरक्षण प्राप्त हुआ है। इसीलिए जनगणना में हमें अपने समाज की सटीक जनसंख्या प्राप्त के लिए राष्ट्रीय स्तर पर इन तीनों में से किसी एक नाम पर सहमति बनानी होगी। क्या हम ‘कलवार’ पर सहमत हो सकते हैं?
हमें इस पर निर्णय करना ही होगा। अन्यथा हम जायसवाल, शिवहरे, गुप्ता, ब्याहुत, शौनदिक, चौकसे, राय, कर्णवाल में ही बटे रहेगें या बांट दिया जाएगा। मुझे कई जातियों के संगठनों के सर्कुलर देखने को मिले हैं जिनमें उन्होंने अपने समाज के लोगों को एकजुट करते हुए एक ही जाति लिखकर अपनी ताकत दर्शाने का बीड़ा उठाया।
ध्यान रखें, यह गणना राष्ट्रीय स्तर पर होगी। राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में और पूरे देश में अपने समाज एक पहचान दिखानी है तो भगवान सहस्त्रबाहु और भगवान बलभद्र की सौगंध है, इस मौके को हाथ से न जाने दीजिए। किसी एक नाम पर एकमत हो जाइए। जातीय संगठन चाहे जितने नाम से चलाते रहिए, चाहे जिस संगठन के नेता बने रहिए, लेकिन जनगणना फार्म पर जाति वाले कॉलम में केवल एक ही नाम “कलवार” लिखने पर सहमत हो जाइए, यही मेरा आग्रह है।
(जातीय जनगणना के महत्व को देखते हुए शिवहरेवाणी स्वयं को समाज के बुद्धिजीवी वर्ग के बीच विमर्श के एक मंच के रूप में प्रस्तुत करती है। इस मुद्दे पर समाज को जागरूक करने के लिए शिवहरेवाणी समाज के बुद्धिजीवियों से उनके आलेख आमंत्रित करती है जिनका प्रकाशन प्रमुखता से किया जाएगा। शिवहरेवाणी से 8218069962 पर कॉल करके या व्हाट्सएप के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है।)
Leave feedback about this