आगरा।
आज देशभर में कलार समाज अपने कुलदेवता भगवान बलभद्र जयंती धूमधाम से मना रहा है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर पूर्वी भारत, झारखंड, उड़ीसा के साथ ही नेपाल और भूटान तक में कलवार समाज के लोग भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज बलभद्र को अपना कुलदेवता मानते हैं।
भारत में कई समाज या जातियों में कुलदेवी या कुलदेवता होते हैं, और ये समाज या जातियां हजारों वर्षों से इनकी पूजा करते आ रहे हैं। चूंकि हर समाज एक अलग कुल से है, तो स्वाभाविक तौर पर उनके कुलदेवता भी अलग अलग हैं। हजारों वर्षों से अपने कुल को संगठित करने और उसके इतिहास को संरक्षित करने के लिए कुलदेवी या देवताओं को एक निश्चित स्थान पर नियुक्ति किया जाता था। वह स्थान उस वंश या कुल के लोगों का मूल स्थान होता है।
कलवार, कलाल या कलार जाति के कुलदेवता हैं भगवान बलभद्र। हम स्वजातीय लोग बलभद्र के वंशज हैं। हालांकि कलवार समाज में जो स्थान भगवान बलभद्र का है, वही स्थान भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन का भी माना जाता है। अब कलवार समाज स्वयं को भगवान सहस्त्रबाहु के वंशज के रूप में अधिक प्रचारित कर रहा है। हालांकि भगवान सहस्त्रबाहु और बलभद्र एक ही वंश के हैं, लेकिन सहस्त्रबाहु क्रम में भगवान बलभद्र से सात पीढ़ी पहले के हैं। नीचे दिए वंश-बेल से इसे समझ सकते हैं।:-
आगरा में शिवहरे समाज मुख्य तौर पर भगवान बलभद्र को ही अपना कुलदेवता मानता रहा है। आगरा में शिवहरे समाज की धरोहर के रूप में दाऊजी मंदिर की स्थापना इसका प्रमाण है। बलभद्र का एक नाम दाऊजी भी है, और उनके छोटे भाई भगवान कृष्ण उन्हें इसी नाम से संबोधित करते थे। आगरा में शिवहरे समाज के दाऊजी मंदिर में बलभद्र की मूर्ति कुषाणकालीन मुद्रा में है जिसमें दाऊजी के एक हाथ में मदिरा हल है और बायें हाथ में मदिरा का चषक है। खास बात यह है कि दाऊजी मंदिर में बलभद्र की धर्मपत्नी माता रेवती की प्रतिमा भी स्थापित है।
यहां बता दें कि बीते कुछ वर्षों में भगवान सहस्त्रबाहु जयंती भी आगरा में शिवहरे समाज द्वारा मनाई जाने लगी है। खास बात यह है कि भगवान सहस्त्रबाहु को कुलदेवता मानने वाले और भी कई अन्य समाज और जातियां हैं, और आगरा में ही कई समाज बहुत पहले से भगवान सहस्त्रबाहु की जयंती मनाते आ रहे हैं। । दाऊजी मंदिर (शिवहरे समाज) में बलभद्र जयंती के मुकाबले दाऊजी की पूनो का पर्व अधिक धूमधाम से मनाया जाता है। बलभद्र जयंती पर दाऊजी मंदिर में भगवान बलभद्र और रेवती माता की विशेष आरती भर होती है।
बलभद्र जयंती भादों माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है। राजस्थान, छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड बलभद्र जयंती ‘हल-षष्ठी’ के रूप में मनाई जाती है। गदा और हल बलभद्र के प्रिय शस्त्र हे। आपको नीले वस्त्र प्रिय हैं, इसीलिए आपका एक नाम नीलांबर भी पड़ा। आपका विवाह रेवती से हुआ था जो महाराजा रैवतक की पुत्री थीं। पौराणिक कथा है कि रेवती लंबाई में बलभद्र से 21 हाथ लंबी थीं, जो उनके विवाह मे बाधक थी। बलभद्र ने हल से रेवती के पैर जमीन में धंसा दिए जिससे वह बलभद्र से छोटी हो गईं। उसके बाद उनका विवाह हुआ। बलभद्र की पुत्री वत्सला का विवाह अर्जुन पुत्र अभिमन्यु से हुआ था।
पौराणिक आख्यानों के अनुसार, बलभद्र का जन्म देवकी और वासुदेव की सातवीं संतान के रूप मे होना था जिसे श्रीहरि ने योगमाया से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। इसीलिए आपको संकर्षण के नाम से भी जाना जाता है। बलदाऊ या बलभद्र के सात सगे भाई और एक बहन सुभद्रा थी। आपकी शिक्षा दीक्षा महर्षि संदीपन से उज्जैन में हुई थी। आप गदा के सर्वश्रेष्ठ योद्धा थे। लेकिन, महाभारत युद्ध में तटस्थ होकर तीर्थाटन पर चले गए थे।
एक पौराणिक आख्यान यह भी है कि बलभद्र ने अपने प्रिय शिष्य दुर्योधन के पराक्रम से प्रसन्न होकर उसे अपनी बहन सुभद्रा से विवाह विवाह कराने का वचन दे दिया था। लेकिन, उनके अनुज श्रीकृष्ण ने अर्जुन से सुभद्रा का विवाह करवा दिया। इस पर बलभद्र अर्जुन से बहुत नाराज हो गए। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि अर्जुन ने सुभद्रा का अपहरण नहीं किया, बल्कि वे दोनों एक दूसरे से प्रेम करते थे, और सुभद्रा से विवाह के लिए अर्जुन सुपात्र है। काफी समझाने के बाद बलभद्र मान गए और उन्होंने सुभद्रा व अर्जुन को विवाह का आशीर्वाद किया। बिहार में कलवार जाति के ब्याहुत कुड़ी (उपजाति) में विवाह के दौरान ‘बलभद्र मनावन’ की परंपरा चली आ रही है। यह परंपरा कलवार समाज के कुलदेवता के रूप में बलभद्र को और अधिक प्रमाणित करती है।
Leave feedback about this