फिरोजाबाद।
कहते हैं कि जाने वाले चल गए
कहां गए, सब यहीं तो रह गए।
एक उम्र के बाद तो हर किसी को जाना ही होता है, लेकिन उनकी यादें, बातें यहीं रह जाती हैं। जो लोग अपनी मृत्यु के बाद अच्छे हवालों से याद किए जाते हैं, उन्हीं का जीवन सफल माना जाता है। फिरोजाबाद के स्व. श्री राज नारायण गुप्ता ‘मुन्ना’ को गए आज एक साल पूरा हो गया, लेकिन फिरोजाबाद के राजनीतिक और सामाजिक हल्कों में उनकी कमी आज भी महसूस की जाती है, लोग आज भी उन्हें याद करते हैं।
फिरोजाबाद के शिवहरे समाज ने तय किया है कि महानगर के राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में योगदान को देखते हुए शहर की किसी सड़क या चौराहा का नाम स्व. श्री राज नारायण गुप्ता के नाम पर करने या कहीं उनकी प्रतिमा स्थापित करने की मांग नगर निगम से की जाएगी। शिवहरे समाज एकता समिति की पिछली बैठक में यह प्रस्ताव पारित हुआ था। समिति के अध्यक्ष श्री कमल गुप्ता एडवोकेट ने शिवहरेवाणी को बताया कि स्व. श्री राज नारायण गुप्ता का असमय जाना फिरोजाबाद के शिवहरे समाज के लिए एक अपूर्णनीय क्षति है। हम लोगों के लिए वह आदर्श थे और सभी सामाजिक कार्य उनके मार्गदर्शन में ही होते थे। उनकी छत्रछाया एक ताकत थी, जिसका अहसास समाज को अक्सर होता था।
स्व. श्री राज नारायण गुप्ता मूलतः समाजसेवी थे जिन्हें किस्मत राजनीति के क्षेत्र में खींच लाई थी। ऐसे दौर में जब ज्यादातर नेता स्वार्थ के वशीभूत नजर आते हैं, स्व. श्री राज नारायणजी ने हमेशा जनसेवा और जनहित की राजनीति की। वह आम साधारण लोगों के लिए बड़े से बड़े पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से भिड़ जाते थे, रात तीन बजे भी फोन आने पर रिस्पांस करते थे और जरूरत होने पर मौके पर पहुंचते थे। जरूरतमंदों की आर्थिक मदद में भी वह कभी पीछे नहीं हटे। समाजसेवी एवं भाजपा नेता श्री सुगम शिवहरे बताते हैं कि कुछ साल पहले फिरोजाबाद के तिवाईगढ़ी गांव में भीषण अग्निकांड हुआ था। तब श्री राज नारायणजी ने अपने पास से खासी मात्रा में राहत सामग्री खरीदी और हम लड़कों की एक टीम को लेकर वहां पहुंचे, पीड़ितों की सहायता की।
सुगम शिवहरे बताते हैं कि स्व. श्री राज नारायणजी ने शुरुआती जीवन में काफी संघर्ष किया था, इसीलिए गरीबों के प्रति हमेशा संवेदनशील रहे। एक बार उन्हें फिरोजाबाद की रामलीला कमेटी का संयोजक बनाया गया तो उन्होंने लोगों को झूले का पास देने पर रोक लगा दी थी। उनका कहना था कि पंडाल में पैसा देकर झूला लगाने वाले लोग दूर-दराज से पैसा कमाने आए हैं, हमें हक नहीं कि उन्हें फ्री में झूला झुलाने को कहें। उस वक्त ऊंची पहुंच वाले लोगों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। लेकिन अपने फैसले के पक्के श्री राज नारायणजी ने लोगों की नाराजगी मोल ले ली, मगर किसी को पास नहीं दिया।
कई बार गंदी राजनीति का हुए शिकार
सुगम शिवहरे का कहना है कि स्व. श्री राज नारायणजी गुप्ता दिल और साफ-सुथरी राजनीति करते थे, लेकिन उन्हें कई बार गंदी राजनीति का शिकार भी होना पड़ा। एक बार उन्होंने भाजपा की ओर से मेयर का चुनाव लड़ा था। तत्कालीन मेयर मनीष असीजा को भाजपा ने टिकट नहीं दिया था। जबकि, स्व. श्री राज नारायणजी और मनीष असीजा में काफी नजदीकी थी। बल्कि यूं कहें कि श्री राज नारायणजी अपनी ओर से मनीष असीजा को टिकट दिलाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन जब श्री राज नारायणजी को मेयर का टिकट मिला तो उन्होंने मनीष असीजा से पूछा कि उन्हें तो कोई आपत्ति नहीं है। सुगम शिवहरे का कहना है कि तब तो मनीष असीजा ने उन्हें टिकट मिलने की खुशी जाहिर की, लेकिन बाद में खुद ही निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उनके खिलाफ चुनाव में खड़े हो गए। असीजा के चुनाव लड़ने से सारे समीकरण गड़बड़ा गए और श्री राज नारायणजी एक जीती बाजी हार गए। बाद में श्री राज नारायणजी सपा में चले गए तो सपा के पुराने नेताओं ने उन्हें असफल करने का पूरा प्रयास किया। इसके बावजूद वह आखिर तक सपा के साथ रहे।
सुगम शिवहरे कहते हैं कि स्व. राज नारायणजी समाजसेवा और राजनीति को एक मानकर चलते थे। जब भाजपा में थे तो उनकी छवि हिंदूवादी नेता की थी, लेकिन बाद में वह सपा में आए तो हिंदुओं के साथ मुस्लिम के बीच भी उन्होंने अपनी कार्यशैली से पैठ बना ली थी। स्व. श्री राज नारायणजी ने राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों में युवाओं को हमेशा आगे बढ़ाया। फिरोजाबाद में युवा नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है जो स्व. श्री राज नारायणजी का वरदहस्त प्राप्त कर राजनीति में काफी आगे बढ़े। उनकी मुरुगन ट्रांसपोर्ट के कार्यालय पर 100-150 युवाओं का जमावड़ा हर समय रहता था।
स्व. श्री राज नारायण के छोटे भाई श्री मनोज गुप्ता बताते हैं कि मैं दो साल का था, जब मेरे पिता का निधन हुआ। उसके बाद मेरा पूरा बचपन श्री राज नारायण भाईसाहब की छत्रछाया में बीता। मेरी पढ़ाई लिखाई, फिर मेरा करियर, सबकुछ उन्हीं का दिया है। वह मेरे लिए पिता समान हैं। उन्होंने कहा कि भाईसाहब के संघर्ष, उनके सेवाभाव, उनकी संवेदनशीलता का मैं लाभार्थी हूं। अपने जीवन में उनकी भूमिका को कभी भुला नहीं सकता।
स्व. श्री राज नारायण के व्यक्तित्व का ही असर था कि वह समाज के हर वर्ग में लोकप्रिय रहे। निर्धन और वंचित समाज के लिए उनके ह्रदय में विशेष स्थान था। श्री मनोज शिवहरे बताते हैं कि घर में यदि शादी के दस कार्ड आते थे, और उनमें छह कार्ड निर्धन परिवारों से थे, तो वह उन छह निर्धन परिवारों की शादियों में अवश्य जाते थे। यह उनके व्यक्तित्व का ही जादू था कि जब कभी शहर की किसी सड़क पर पैदल निकल जाते तो वहां रिक्शावाले उन्हें अपने रिक्शे में बिठाने को लालायित रहते थे, तो चाय की दुकान वाला इस आग्रह पर अड़ जाता कि वह उसके यहां चाय जरूर पियें। फिरोजाबाद का हर आम आदमी उन्हें किसी वीआईपी की तरह ट्रीट करता था और वह स्वयं एक आम आदमी की तरह पेश आते थे। व्यवसाय उनके लिए आठ घंटे का काम था, राजनीति 12 घंटे का काम था तो समाजसेवा उनके लिए 24 घंटे का काम था।
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