आगरा।
स्थानीय प्राधिकार कोटे की आगरा-फिरोजाबाद विधान परिषद सीट के लिए शुक्रवार को मतदान के बाद भाजपा प्रत्याशी विजय शिवहरे के चुनाव कार्यालय में उत्साह का माहौल है। विजय शिवहरे के समर्थक उनकी ऐतिहासिक जीत को लेकर आश्वस्त हैं। मतगणना 12 अप्रैल को होनी है, लेकिन समर्थकों का दावा है कि कुल 3922 मतदाताओं में से 3500 से अधिक मतदाताओं ने विजय शिवहरे को प्रथम वरीयता के वोट दिए हैं।
आपको बता दें कि विधान परिषद में मतदान और मतगणना की प्रक्रिया अन्य चुनावों की तुलना में थोड़ी अलग होती है। इसमें पहली पसंद यानी प्रथम वरीयता का प्रत्याशी मतगणना में आगे रहकर भी हार सकता है और दूसरी पसंद के प्रत्याशी की किस्मत भी चमक सकती है। विधानसभा चुनाव से यह बिल्कुल अलग होता है। इस चुनाव में एकल संक्रमणीय आनुपातिक मतदान के आधार पर विजेता का फैसला होता है। अन्य चुनावों में मतदाता किसी एक प्रत्याशी को वोट देता है, पर विधान परिषद के इस चुनाव में एक से ज्यादा प्रत्याशियों को वोट देने का विकल्प रहता है। वोटरों के विवेक पर निर्भर करता है कि वे किसे सबसे ज्यादा पसंद करते हैं और किसे कमतर। बैलेट पेपर पर वरीयता क्रम में वोटर अपनी पसंद का इजहार रोमन अंकों में करता है।
उदाहरण के लिए अगर किसी क्षेत्र में क और ख प्रत्याशी हैं। किसी को क ज्यादा पसंद है तो उसके सामने रोमन अंक में एक लिखा जाएगा और ख के सामने रोमन अंक में दो लिखा जाएगा। इस तरह उस क्षेत्र में जितने प्रत्याशी हैं, उन सबको वरीयता क्रम से वोट दिया जा सकता है। आगरा-फिरोजाबाद एमएलसी सीट से पांच प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। भाजपा के विजय शिवहरे के अलावा सपा के दिलीप यादव, जबकि हर चुनाव लड़ने के लिए चर्चित हरनूराम अंबेडकरी, विमल कुमार और प्रवीन कुमार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। हालांकि किसी भी निर्दलीय प्रत्याशी के दावे को मजबूत नहीं माना जा रहा है। सीधी टक्कर विजय शिवहरे और दिलीप यादव के बीच है जिसमें विजय शिवहरे काफी आगे नजर आ रहे हैं।
खैर, बात करते हैं वोटों की गिनती की, तो मतगणना भी वरीयता के आधार पर होती है। पहले प्रथम वरीयता के वोट गिने जाते हैं। प्रत्याशी को जीत के लिए पड़े कुल वैध मतों के 50 प्रतिशत के अलावा कम से कम एक अधिक वोट लाना होता है। अधिक की कोई सीमा नहीं होती। प्रथम वरीयता के वोट ही किसी को यदि 50 प्रतिशत से एक ज्यादा मिल गए तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। अगर इतने वोट किसी को नहीं मिले तो दूसरी वरीयता की गिनती शुरू होती है। इसमें सबसे पहले प्रथम वरीयता के सबसे कम वोट पाने वाले प्रत्याशी को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया जाता है और उसके बैलेट पेपर में मिले दूसरी वरीयता के वोटों को संबंधित प्रत्याशी के वोट में जोड़ दिया जाता है।
उदाहरण से मतगणना को समझिएः
किसी क्षेत्र में अगर पांच प्रत्याशी हैं तो जीत के लिए अगर किसी को प्रथम वरीयता के 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं आए तो दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती होगी। इसमें प्रथम वरीयता के सबसे कम वोट लाने वाले प्रत्याशी को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया जाएगा। उसे मिले दूसरी वरीयता के वोट को संबंधित प्रत्याशियों में बांट दिया जाएगा। तब भी किसी को वैध मतों के आधा से एक ज्यादा नहीं मिले तो क्रम चलता रहेगा और नीचे के प्रत्याशी को एलीमिनेट किया जाता रहेगा। सिलसिला तबतक चलेगा, जबतक जीत के लिए जरूरी वोट किसी को न मिल जाए। आखिर में बचे दो प्रत्याशियों में भी यदि किसी को जरूरी वोट नहीं मिले तो चुनाव आयोग ज्यादा वोट लाने वाले को विजेता घोषित कर देगा। जाहिर है, वोट गिनने के दौरान पहली वरीयता के वोटों में पिछड़कर भी किसी प्रत्याशी की विजय की संभावना खत्म नहीं होती है। वह मुकाबले में बना रह सकता है। दूसरी वरीयता के वोटों के सहारे उसे जीत मिल सकती है। इस प्रक्रिया में सामान्य मतगणना से तीन गुना अधिक समय लगता है।
लेकिन, लोगों का मानना है कि आगरा-फिरोजाबाद सीट से मतगणना के दूसरे दौर की नौबत ही नहीं आएगी और विजय शिवहरे पहले ही राउंड में बड़ी जीत हासिल कर लेंगे। दावा है कि उन्हें 3500 से अधिक प्रथम वरीयता के वोट मिलना तय है। दावे का आधार यह है कि तीन संसदीय क्षेत्रों और 14 विधानसभा क्षेत्रों वाली आगरा-फिरोजाबाद एमएलसी सीट में ज्यादातर मतदाता (सांसद, विधायक, ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंजायत सदस्य (बीडीसी), ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य और जिला पंचायत अध्यक्ष के साथ नगर निगम के पार्षद, मेयर, नगर पालिका व पंचायतों के पार्षद तथा अध्यक्ष) भाजपा से जुड़े हैं। वहीं चुनाव प्रचार में भी विजय शिवहरे अन्य प्रतिद्वंद्वियों से बहुत आगे नजर आए। बीते दस दिनों के चुनाव प्रचार में विजय शिवहरे ने 3922 मतदाताओं में से ज्यादातर मतदाताओं से व्यक्तिगत संपर्क किया।
Leave feedback about this