November 25, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
साहित्य/सृजन

खुद से लड़ने वाले वीर के दर्द की बयानी है वीरांश

शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा
उद्यमिता जिसे आमतौर पर व्यापार कहते हैं, एक बेहद संवेदनहीन क्षेत्र माना जाता है। वहीं दूसरी तरफ, साहित्य पूरी तरह संवेदनशीलता का मामला है। महान शायर जॉन एलिया तो कमाने को बहुत वाहियात काम कहते थे। मगर वीरेंद्र शिवहरे 'वीर' को उन चंद लोगों में गिना जा सकता है जो अपनी कुशल उद्यमिता के साथ-साथ साहित्य सृजन भी कर रहे हैं। यह आसान काम नहीं है क्योंकि इसके लिए उन्हें हर पल खुद से संघर्ष करना पड़ता है, एक उद्यमी और कवि के बीच के इसी द्वंद्व से जन्मी रचनाओं का संग्रह है वीरांश, जो वीरेंद्र शिवहरे वीर का पहला कविता संग्रह है, जिसे साहित्य प्रेमी खासा पसंद कर रहे हैं।
बेंगलुरु में अपनी सॉफ्टवेयर डेवलमेंट कंपनी 'सीटीओ इंकनट डिजिटल' चलाने वाले वीरेंद्र शिवहरे वीर के बारे में खास बात यह है कि उनकी ज्यादातर रचनाएं खुद से मुखातिब हैं, यही वजह है कि हर शेर पढ़ते वक़्त लगता है जैसे पन्नों पर उन्होंने अपनी ही कहानी बयाँ है| ख़यालों की गिरहों को लफ़्ज़ों से खोलना बड़ी शिद्दत का काम है और वीर इसे कुछ ऐसी आसानी से करते हैं, कि पढ़ते वक़्त, कई बार लगता है जैसे अपना ही कोई हिस्सा भीतर से बोल रहा हो, जैसे वीरेंद्र ने अपने ख्यालों को ज्यों कि त्यों पन्ने पर उतार दिया हो। कविता का विचार पक्ष यदि प्रभावशाली हो तो छंद, मात्रा, बहर, तुक और काफिया, कोई बहुत मायने नहीं रखते। कोई भी ऐसी रचना जो पढ़ने वाले के ज़हन में उथल-पुथल मचाने की कैफियत रखती है, उसे पढ़ा जाना चाहिए।  वीरेंद्र की रचनाओं में उम्मीद है, दर्द है, सवाल हैं, ज़हनी दिलासे हैं और सोच के कुछ ऐसे सिरे हैं जो एक बार हाथ लगें, तो छूटने का नाम नहीं लेते|
हिंदी और उर्दू में उनकी कविताएं, गजलें, नज्म मानवीय संवेदनशीलता को कई पहलुओं को अभिव्यक्ति देती हैं, उन अहम मसाइल पर बात करती हैं जिन्हें हम रोजमर्रा की जिंदगी में हम अनदेखा कर जाते हैं। नोशन प्रेस जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'वीरांश' की कविताओं से आप सिर्फ कनेक्ट ही नहीं होंगे, बल्कि पढ़ने के बाद उसे अपने शेल्फ में भी सजाएंगे…ऐसी उम्मीद की जा सकती है। 
वीरेंद्र शिवहरे वीर का जन्म मध्य प्रदेश के कटनी में हुआ। उनके पिता श्री जगतराम शिवहरे सेवानिवृत्त वन अधिकारी हैं। इंजीनियिरंग करने के बाद वीर बेंगलूरु चले गए और वहां एक दशक से अधिक समय से सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। अब उन्होंने अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी सीटीओ इंकनट डिजिटल' शुरू की है। वीरेंद्र शिवहरे की पत्नी श्रीमती धन्या वीरेंद्र दक्षिण भारतीय हैं, उनके एक बेटा और एक बेटी है।  
यहां पेश हैं उनकी कुछ रचनाएंः-
*गजल*
दरिया दिया और प्यासे रहे,
उम्र भर साथ अपने दिलासे रहे।
जो थे वैसा रहने न दिया,
न सोना बने, न कांसे रहे।
कब टिकती है अपने कहे पर,
ज़ुबां ए जीस्त पर झांसे रहे।
मुद्दतों कायम रहा अपना डेरा,
हम जहाँ भी रहे, अच्छे खासे रहे।
मुझमें क्या कुछ न बदला ‘वीर’,
मगर ग़ैरों के इलज़ाम बासे रहे।

*नज्म*
तुम आज की बात करो|
आज जो जुदा है कल से|
आज जो पहले कभी नहीं आया है|
आज जो फिर कभी नहीं आएगा|
यूँ न जीस्त बरबाद करो!
तुम आज की बात करो|

आज रात ने नया आफताब बनाया है|
आज दिन ये नया महताब बनाएगा|
तुम भी कुछ नया, कुछ मुख्तलिफ करो|
यूँ न जीस्त बरबाद करो!
तुम आज की बात करो|

आज अपनी सलाखों को तोड़ दो|
आज अपनी हिम्मत की बात सुनो|
आज ही सब कुछ का हासिल है,
आज से आँखें चार करो|
यूँ न जीस्त बरबाद करो!
तुम आज की बात करो|

*कविता*

कोई धार तो मुझे बहा ले,
कब तक बैठूं नदी किनारे|
ऊब गया हूँ देख-देख कर,
बहता पानी, रुके किनारे|

विचारों का प्रवाह निरंतर,
मैं की खोज में भटकता अंतर|
या इस कंकड़ को जल बना ले,
या इस कंकड़ को तल बना ले|
कोई धार तो मुझे बहा ले,
कब तक बैठूं नदी किनारे…

मुट्ठी में क्षण नहीं समाता,
बहता समय है कहाँ तक जाता?
कैसे प्रश्नों से उत्तर निकाले,
कौन ज्ञान की परिभाषा डाले!
कोई धार तो मुझे बहा ले,
कब तक बैठूं नदी किनारे…

कलकल करती ध्वनि सुनता हूँ,
अतीत भविष्य के जाल बुनता हूँ|
पल पल गिरता जो मुझे उठा ले,
एक पल ऐसा जो मुझे समा ले|
कोई धार तो मुझे बहा ले,
कब तक बैठूं नदी किनारे…

जनम मृत्यु का खेल पुराना,
एक कण आना, एक कण जाना|
जीवन का क्या अर्थ निकाले,
इसे जैसा चाहे वैसा बना ले|
कोई धार तो मुझे बहा ले,
कब तक बैठूं नदी किनारे…

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