November 23, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
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शिवहरे गली से विदा हुई ‘नौ दिन की रौनक’; मां दुर्गा की भावपूर्ण विदाई; महिलाओं ने ‘सिंदूर खेला’ कर लिया मां का आशीर्वाद;

आगरा।
लोहामंडी की शिवहरे गली (राधाकृष्ण मंदिर के बगल वाली गली) बीते नौ दिन गुलजार रहने वाले बाद दशहरा को मां दुर्गा की विदाई के साथ मानो सूनी हो गई हो। दशहरा की शाम शिवहरे महिलाओं ने ‘सिंदूर खेला’ की बंगाल की रस्म निभाते हुए दुर्गा का आशीर्वाद लिया और सुंदर श्रृंगार कर उन्हें पिता के घर (दुर्गा पंडाल) से ससुराल के लिए विदा किया। विदाई की वेला में शिवहरे बंधु व महिलाएं काफी भावुक नजर आए। शिवहरे युवा कमेटी लोहामंडी के सदस्यों ने पवित्र यमुना नदी में माता की प्रतिमा को विसर्जित किया। 
शिवहरे युवा कमेटी के हर्ष शिवहरे ने बताया कि आगरा के समाज में संभवतः पहली बार नवरात्र में दुर्गा पंडाल स्थापित किया गया है, और अगली शारदीय नवरात्रि में भी इसी तरह दुर्गा पंडाल स्थापित कर इस आयोजन को एक परंपरा का रूप देने का प्रयास किया जाएगा। इस आयोजन से शिवहरे गली में पूरे नौ दिन धर्म और संस्कृति का उत्सव मनाया गया जिसमें महिलाओं और बच्चों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियों से अपनी प्रतिभा को सामने रखा। पंडाल में नवमी के दिन माता के हवन-यज्ञ के बाद कन्या-भोज एवं विशाल भंडारे का आयोजन किया गया था जो रात की आरती होने तक जारी रहा। शाम को लोहामंडी की शिवहरे महिलाओं और युवतियों ने बच्चों की विशेष झांकियां तैयार कर पंडाल में उनका प्रदर्शन किया जो नौ दिन के शेड्यूल में नहीं था। यह ‘सरप्राइज शो’ था जिसे सभी ने बहुत सराहा। 
दशहरा को सुश्री दीपा शिवहरे ने माता का सुंदर श्रृंगार कर विदाई के लिए तैयार किया। मां की आरती की गई जिसमें लोहामंडी के ज्यादातर शिवहरे परिवार हाजिर रहे, जिसके बाद पंडाल में महिलाओं ने माता को सिंदूर लगाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया और सिंदूर खेला का जमकर धमाल किया। महिलाओं ने ढोल की थापों पर नाचते-गाते हुए एक-दूसरे को सिंदूर और गुलाल लगाया। इस माहौल में माता को मेटाडोर पर सवार कर विदा किया गया। शिवहरे युवा कमेटी लोहामंडी के युवकों ने यमुना नदी लेकर जाकर प्रतिमा का विसर्जन किया। मान्यता है कि दुर्गा मां शारदीय नवरात्र के नौ दिन पिता के घर आती हैं और फिर ससुराल के लिए प्रस्थान करती हैं। दुर्गा पंडाल को दुर्गा मां के पिता का घर माना जाता है। अगर इसके इतिहास पर नजर डालें तो बताया जाता है करीब 450 वर्ष पहले इस परंपरा का आरंभ बंगाल में हुआ था। पिछले कुछ वर्षों में उत्तर भारत में गणेश चतुर्थी की तरह ही दुर्गा पंडाल की परंपरा भी काफी प्रचलन में आ चुकी है। 
 

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