इंदौर।
इंदौर की निधि जायसवाल ने एमपीपीएससी की राज्य सेवा परीक्षा-2019 में शानदार कामयाबी हासिल की है। उनका चयन ‘असिस्टेंट कमिश्नर, आदिम जाति कल्याण विभाग’ पद पर हुआ है। किसान पिता की होनहार बेटी निधि जायसवाल वर्तमान में ‘सहायक अधीक्षक, भू अखिलेख’ के पद पर कार्यरत हैं।
इंदौर में खंडवा रोड स्थित बाइग्राम की रहने वाली निधि जायसवाल की एमपीपीएससी परीक्षा में यह पहली कामयाबी नहीं है। वर्ष 2017 की परीक्षा में उनका चयन ‘सहायक अधीक्षक, भू अभिलेख’ के पद पर हो गया था। इससे पहले निधि ने 2016 में ग्रेजुएशन करने के बाद इसी वर्ष एमपीपीएससी की परीक्षा भी दी लेकिन कामयाबी 27 अंक से फिसल गई। निधि बताती हैं कि उनके पिता श्री सुरेश जायसवाल ने उन्हें बचपन में प्रशासनिक अधिकारी बनने का ख्वाब दे दिया था। हाईस्कूल से पहले ही उन्होंने प्रशासनिक अधिकारी बनने का लक्ष्य बना लिया था। इसी को ध्यान में रखते हुए हाईस्कूल में उन्होंने कॉमर्स विषय चुना। बीकॉम में पढ़ाई के साथ प्रशासनिक सेवा की तैयारी की। इंदौर में कोचिंग भी की। कोचिंग सेंटरों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों की लंबी कतार देखकर एक बारगी तो हताश हो गईं, लेकिन तब उनके पिता श्री सुरेश जायसवाल ने हौसला बंधाया। वर्ष 2016 में बीकॉम कम्पलीट करते ही उसी वर्ष एमपीपीएससी की परीक्षा भी दी लेकिन पहले प्रयास में कामयाबी 27 नंबर से फिसल गई।
इसके बाद निधि ने फिर तैयारी शुरू की। इस बार कोचिंग के बजाय स्वाध्याय को प्राथमिकता दी। पूर्व की परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों का आकलन किया, और पूरा पैटर्न समझने के बाद तैयारी में जुट गई। मेहनत रंग लाई और वर्ष 2017 में दूसरे प्रयास में उनका चयन ‘असिस्टेंट कमिश्नर, भू अखिलेख’ के पद पर हो गया। उस समय निधि की आय़ु महज 21 वर्ष थी। अच्छे पद पर सलेक्शन के बाद भी निधि ने एसडीएम बनने के पिता के सपने का पीछा करना नहीं छोड़ा। निधि जॉब के साथ तैयारी करती रही और इस बार ‘असिस्टेंट कमिश्नर, आदिम जाति कल्याण विभाग’ पद पर हो गया है। निधि की कामयाबी का समाचार मिलते ही उसके गांव बाईग्राम में खुशी की लहर दौड़ गई। गांव में उसके घर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। ग्रामीणों की खुशी का आलम यह है कि गुरुवार दोपहर को निधि अपने गांव पहुंचीं तो ग्रामीण जुलूस के रूप में उसे शनि मंदिर से उसके घर तक लेकर आए।
निधि अपने पिता श्री सुरेश जायसवाल को अपना प्रेरणास्रोत मानती है और कामयाबी का पूरा श्रेय उन्हीं को देती है। श्री सुरेश जायसवाल पेशे से किसान हैं, गांव के सरपंच भी रह चुके हैं और जीवन में शिक्षा के महत्व को बखूबी समझते हैं। यही वजह है कि उन्होंने बेटी की शिक्षा से कभी कोई समझौता नहीं किया। निधि ने शिवहरेवाणी से बातचीत में बताया, गांव में लड़कियों को पढ़ने-लिखने की आजादी नहीं है। गांव में दोनों सिरों पर घाट है जिसकी वजह से परिजन अपनी बेटियों को बाहर पढ़ने भेजना नहीं चाहते। शुरुआती पढ़ाई तो गांव के जर्जर स्कूल में ही की। लेकिन पिता ने नौवीं कक्षा में ही उसे पढ़ाई के लिए यह कहते हुए इंदौर भेजा कि मैं चाहता हूं कि तुम लाल बत्ती की गाड़ी में गांव आओ और मैं तुम्हारा स्वागत करूं। आज निधि को खुशी है कि उन्होंने पापा का सपना पूरा कर दिखाया। हालांकि 26 वर्षीय निधि जायसवाल का लक्ष्य एसडीएम बनना है, लिहाजा वह आगे भी परीक्षाएं देती रहेंगी।
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