जबलपुर।
जबलपुर के ओम चौकसे ने मध्य प्रदेश बोर्ड की हाईस्कूल परीक्षा की प्रवीणता सूची (मैरिट लिस्ट) में सातवां स्थान प्राप्त किया है। ओम के पिता उसके ही स्कूल के बाहर फुटपाथ पर बैग की रेहड़ी लगाते हैं। ओम ने बिना कोचिंग के अपनी मेहनत के बल पर पिता के संघर्षों को एक खुशनुमा अंजाम पर पहुंचाकर परिवार का नाम रोशन किया है।
जबलपुर के प्रतिष्ठित सरकारी स्कूल ‘मॉडल हाईस्कूल’ के छात्र ओम चौकसे ने हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा में 500 में से 488 अंक हासिल किए हैं। ओम के पिता नरेश चौकसे इसी स्कूल की चारदीवारी से लगे फुटपाथ पर बैग की रेहड़ी लगाते हैं। कम कमाई में दो बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्चा बमुश्किल उठा पाते हैं, लेकिन बेटे को कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते देखना उनके जीवन का सबसे बड़ा ख्वाब है। वह चाहते थे कि बेटा कोचिंग करे और अच्छे नंबरों से हाईस्कूल पास करे। लेकिन बेटा तो ‘गुदड़ी का लाल’ निकला। पिता के संघर्ष को देखते हुए उसने कोचिंग लेने से इनकार कर दिया और स्कूल की पढ़ाई व सेल्फ स्टडी के बल पर ही वो कर दिखाया, जो उसके पिता उससे उम्मीद रखते थे। ओम चौकसे ने शिवहरेवाणी को बताया कि उसके पिता जाड़ा-गर्मी-बरसात में सड़क किनारे दरी बिछाकर बैग बेचने का काम करते हैं, और अपनी मेहनत की कमाई से उसे अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे हैं, ये क्या कम है। ओम ने स्कूल के टीचर्स की बातों को पूरी तरह फालो किया और स्कूल में ही तीन एक्स्ट्रा क्लास भी ली। वह अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, टीचर्स और खासतौर पर स्कूल में सोशल साइंट की टीचर को देता है जिन्होंने उसे हमेशा मोटीवेट किया।
नरेश चौकसे कहते हैं कि रिजल्ट आने के बाद उन्हें ओम चौकसे के पिता के रूप में नई पहचान मिली है जिस पर उन्हें गर्व है। उन्होंने सैकड़ों बच्चों को स्कूल बैग बेचे हैं। अक्सर सोचते थे कि काश उनका बेटा पढ़ाई में इतना अच्छा निकले कि लोग उन्हें उसके नाम से जानें, और आज यह सपना सच हो गया। ओम की मां बताती है कि “रात में जब हम सब सो जाते हैं तब भी ओम पढ़ाई करता रहता था। वह 10-12 घंटे पढ़ाई करता था, कभी पिता की दुकान पर उनकी मदद करने भी चला जाता था।”
ओम चौकसे कार्डियोलाजिस्ट बनना चाहता है, इसके लिए वह ग्वायरवीं में बायोलॉजी ग्रुप की पढ़ाई करेगा। ओम का कहना है कि उसकी दादी हार्ट पेशेंट हैं, पिता को उनके इलाज के लिए डाक्टर की भारी-भरकम फीस और महंगी दवाएं लेनी पड़ती हैं। वह चाहता है कि दादी का इलाज वह खुद करे और दिल के मरीजों की सेवा करे।
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