November 21, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
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ALERT:कोरोना संक्रमण से ठीक होने का मतलब खतरे से मुक्त होना नहीं, लंग फाइब्रोसिस की चुनौती

आगरा। 
कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों में लंग फाइब्रोसिस के बढ़ते मामले गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं। इसे एक लाइलाज बीमारी माना जाता है और ज्यादातर मामलों में मरीज की मौत हो जाती है। बीते रोज आगरा में आनंदपुरम निवासी श्री मोहनलाल गुप्ता (लाला बिजलीवाले) की मौत भी इसी बीमारी से हुई थी। चिकित्सकों का कहना है कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों को चाहिए कि वे प्राणायाम, कपालभांति और अनुलोम-विलोम जैसे श्वास संबंधी व्यायाम करते रहें। समय पर इलाज औऱ व्यायाम से फाइब्रोसिस में सुधार हो सकता है।
फाइब्रोसिस की बीमारी ज्यादातर उन मरीजों में देखने में आ रही है जिनके फेफड़े में कोरोना संक्रमण अधिक रहा है। ऐसे ज्यादातर मामलों में देखा यह गया है कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद मरीज को पहले निमोनिया होता है जो गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है। एक आंकड़े के अनुसार, कोरोना संक्रमण के 20 प्रतिशत मरीज मध्यम या गंभीर स्थिति में पहुंचते हैं। इनमें भी करीब 20-30 प्रतिशत यानी कुल के 4-5 प्रतिशत मरीजों को लंग फाइब्रोसिस देखने को मिल रही है। कई मामलों में कोरोना से मामूली संक्रमित व्यक्ति में भी लंग फाइब्रोसिस की बीमारी सामने आ रही है। श्री मोहनलाल गुप्ता एक महीने पहले कोरोना से संक्रमित हुए थे। यह बहुत मामूली संक्रमण था और चार दिन बाद उनका कोरोना टेस्ट निगेटिव आ गया था। लेकिन कोरोना से पूरी तरह ठीक होने के बाद उन्हें निमोनिया हो गया और महीनेभर के उपचार, अस्पताल में 15 दिन तक चिकित्सकों की सघन निगरानी में रहने के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका।
चिकित्सकों का कहना है कि पहले से यह पता करना मुश्किल होता है कि कोरोना संक्रमण के किन मरीजों में ठीक होने के बाद भी लंग फाइब्रोसिस की बीमारी विकसित हो सकती है। होता यह है कि कोरोना से ठीक होने के बाद जब मरीजों को सांस संबंधी तकलीफ शुरू होती है, तब वे उपचार के लिए चिकित्सक के पास पहुंचते हैं। और, ऐसे ज्यादातर मामलों में तब तक काफी देर हो चुकी होती है।  
लंग फाइब्रोसिस में फेफड़े की अंदरुनी सतह पर धब्बे पड़ जाते हैं और सतह कठोर होने लगती है। ऐसे मरीजों में कोरोना नेगेटिव होने के बाद भी ऑक्सीजन स्तर सामान्य नहीं हो पाता है। कुछ कदम चलने पर ही सांस फूलने लगती है। ऑक्सीजन का स्तर (एसपीओ 2) जो कम से कम 95 से ऊपर होने चाहिए वह गिरकर 80 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। यानी, मरीज को ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ जाती है। मेडिकल साइंस में इसे लाइलाज बीमारी माना जाता है।
ध्यान रखिये, कोरोना के संक्रमण से ठीक होने का मतलब खतरे से पूरी तरह मुक्त होना नहीं है। ठीक होने बाद प्राणायाम, कपालभाति और अनुलोम-विलोम जैसे श्वांस संबंधी योगासन अवश्य शुरू कर दें। अपने चिकित्सक के संपर्क में रहें।

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