आगरा।
स्वजातीय संत श्री अभिरामदासजी महाराज इन दिनों गोवर्धन में श्रीराम कथा का वाचन कर रहे हैं। यहां जायसवाल धर्मशाला में प्रतिदिन अपराह्न 3 बजे से सायं 5 बजे तक वह श्रीराम कथा कह रहे हैं जिसे सुनने के लिए दूरदराज से स्वजातीय बंधु पहुंच रहे है। 18 दिसंबर से शुरू हुई इस श्रीरामकथा की पूर्णाहुति एवं भंडारा 27 दिसंबर को होगा। श्योपुर के श्री बाबूलाल शिवहरे की मूल पहचान वाले संत श्री अभिरामदासजी महाराज की इच्छा है कि अधिक से अधिक कलचुरी समाजबंधु उनकी कथा में आवें और पूर्णाहुति में भाग लेकर भंडारे का प्रसाद प्राप्त करें, और उन्होंने स्वजातीय बंधुओं से यह अनुरोध भी किया है।
शिवहरेवाणी से बातचीत में संत श्री अभिरामदासजी महाराज ( श्री बाबूलाल शिवहरे, श्योपुरवाले) ने बताया कि गोवर्धन में श्रीराम कथा का आयोजन करने के लिए देशभर से कलचुरी समाजबंधुओं ने उन्हें सहयोग और समर्थन प्रदान किया है। गोवर्धऩधाम में छोटी परिक्रमा मार्ग पर बड़ा बाजार स्थित सोमवंशी समाज ठा. गोपालजी मंदिर मंय बनी जायसवाल धर्मशाला में वह श्रीराम कथा का वाचन प्रतिदिन कर रहे हैं। कोई न कोई कलचुरी समाजबंधु ही प्रतिदिन उनकी श्रीराम कथा का मुख्य जजमान बनने का सौभाग्य प्राप्त करता है। अब तक कुम्हेर (भरतपुर) के श्री बसंतजी उदयवाल एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला जायसवाल ने रामायण का पूजन कराकर पुण्य अर्जित किया। उन्होंने बताया कि इस श्रीराम कथा का आयोजन कोटा, जयपुर, भिंड, जसवंतनगर समेत कई नगरों के कलचुरी समाजबंधुओं के सहयोग से किया जा रहा है।
55 वर्षीय श्री बाबूलालजी शिवहरे मध्य प्रदेश के श्योपुर के रहने वाले हैं, गृहस्थ संत हैं। जन्म श्योपुर के गांव प्रेमसर में हुआ, पिता स्व. श्री मदनलाल शिवहरे किसान थे, माताजी श्रीमती परताबाई गृहणी थीं। गांव में ही संत श्री श्री 1008 संत शिरोमणि श्री जानकीदासजी महाराज का आश्रम था, जहां बचपन से जाते थे। 16 साल की आयु में कैलाशीबाई से विवाह हुआ। उनका परिवार अब श्योपुर में रहता है। उनके तीन पुत्र देवेश, गौरव कृष्ण, रवि शिवहरे और सबसे छोटी पुत्री भारती शिवहरे (16 वर्ष) हैं। देवेश विवाहित हैं और भाई गौरव के साथ मिलकर मोटर पार्ट्स की दुकान करते हैं। रवि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, जबकि बेटी हाईस्कूल कर चुकी है।
बेटी के जन्म के बाद श्री बाबूलालजी का मन रामकथा और रामभक्ति में रम गया, और अपने गुरु संत शिरोमणि श्री जानकीदासजी महाराज के आदेश पर उन्होंने भगवा धारण कर लिया। गुरुजी ने ही अध्यात्म की दुनिया में उनका नामकरण ‘संत श्री अभिरामदासजी महाराज’ कर दिया। तब से वह श्री राम कथा का वाचन कर रहे हैं। वह चित्रकूट में दो बार रामकथा कह चुके हैं, जिसका आयोजन शिवहरे समाज द्वारा किया गया। इसके अलावा देशभर में कई अन्य जगहों पर असंख्य बार श्री रामकथा का वाचन कर चुके हैं। भजनों की संगीतमयी प्रस्तुति उनकी रामकथा का विशेषता है। कलवार समाज के संत के रूप में रामकथा मर्मज्ञ ‘संत श्री अभिरामदासजी महाराज’ की प्रतिष्ठा दिनोदिन बढ़ रही है, और वह जहां भी जाते हैं, स्थानीय समाज पूरे भक्तिभाव से उनका स्वागत करता है।
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