शिवहरे वाणी नेटवर्क
नई दिल्ली।
जी टीवी चैनल के बाद दूरदर्शन पर भी टीवी सीरियल विष्णु पुराण के विवादित एपीसोड्स का प्रसारण अंततः रोक दिया गया है। बीते गुरुवार से दूरदर्शन पर इस सीरियल का प्रसारण बंद हो गया, जबकि जी टीवी ने इसका प्रसारण पहले ही रोक दिया था।
हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट के 24 जून फैसले के बाद एकबारगी ऐसा लगा कि 15 करोड़ की आबादी वाले कलचुरी समाज के असंतोष को नजरअंदाज कर इस सीरियल का प्रसारण जारी रहेगा। लेकिन, समाज का एकजुट संघर्ष शासन को इस मुद्दे की गंभीरता का अहसास कराने में सफल रहा। हालांकि विष्णुपुराण के प्रसारण पर रोक की बात बीती 26 जून को ही स्पष्ट हो गई थी जब केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सांसद रमा देवी को टेलीफोन के माध्यम से एपीसोड 48 से 63 नहीं दिखाए जाने के अपने फैसले की जानकारी दी। बीती गुरुवार को यह लागू भी हो गया।
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित एपीसोड पर रोक लगाने की मांग को लेकर दाखिल संतोष कुमार जायसवाल की जनहित याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि हमारे समाज की खूबसूरती है कि धर्म गुरुओं का अलग-अलग मत है। वे हर विषय की भिन्न-भिन्न व्याख्या करते हैं। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि याची न तो रचयिता है और न वह धारावाहिक में भागीदार हैं। केवल विवाद खड़ा करने के लिए याचिका दायर की है। यह याची पर है कि वह चाहे धारावाहिक देखे या न देखे।
बता दें कि विष्णु पुराण के एपीसोड संख्या 48 से लेकर 63 तक में कलचुरी समाज के आराध्य भगवान राजराजेश्वर सहस्त्रबाहु अर्जुन के प्रसंगों को दिखाया गया है। आरोप है कि इन एपीसोड्स में सहस्त्रबाहु अर्जुन के चरित्र को मनगढंत और विकृत तरीके से दिखाया गया है जिसे लेकर संपूर्ण कलचुरी समाज ने जबरदस्त रोष व्यक्त किया। हैहय क्षत्रिय वंश से संबंध रखने वाले कलचुरी, कलवार, कलाल, कलार, जायसवाल, शिवहरे, मालवीय, चौकसे, धुवारे, सूर्यवंशी, पशीने, अहलूवालिया, दक्षिण भारत में कलाल, सोमवंशी नाइक, विजयन आदि वर्ग के लोगों ने हर स्तर पर अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई। उनकी दलील थी कि कार्तवीर्य के बारे में जो दर्शाया गया है, सब निराधार है। विष्णु पुराण में ऐसा कोई वर्णन है ही नहीं । पूरे देश में कार्यशील कलुचीर समाज के सभी संगठनों औऱ सक्रिय समाजबंधुओं ने एक अभियान चलाकर इसे रोकने की पुरजोर मांग की औऱ सरकार पर इसके लिए दबाव बनाया। और, अंततः इस संघर्ष में विजय प्राप्त की।
हालांकि सरकार द्वारा लगाई गई इस रोक का एक कानूनी पहलू भी है। दरअसल गोपीनाथ बनाम दूरदर्शन वाद 1989 पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय इस मामले में एक नजीर है। इस विवाद में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले टीवी सीरियल उत्तर रामायण के एपीसोड संख्या 9 से 11 पर रोक लगाने की मांग की गई थी जिसमें सीताजी की अग्निपरीक्षा से जुड़े प्रसंग दर्शाए गए थे। हाईकोर्ट ने इन एपीसोड पर रोक लगाते हुए इनके प्रसारण को इस आधार पर अवैध ठहराया था कि इसके लिए सिनेमेटोग्राफ एक्ट के सेक्शन 5-बी के अंतर्गत सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट हासिल नहीं किया गया था जो 1983 में किए गए संशोधन के बाद अनिवार्य हो गया है। इलाहाबाद के एडवोकेट आरके जायसवाल का दावा है कि 29 जून तक सीरियल का प्रसारण बंद नहीं होने पर इस महत्वपूर्ण फैसले की जानकारी सरकार तक उचित माध्यम से पहुंचा दी गई थी, जिसने सरकार को इस एपीसोड के प्रसारण को रोकने के निर्णय को एक कानूनी आधार प्रदान किया।
कुल मिलाकर विष्णु पुराण के विवादित एपीसोड्स के प्रसारण का रोका जाना बेशक समाज की एकजुटता की जीत है, इसके लिए वे सभी समाजबंधु बधाई के पात्र हैं जिन्होंने इसके लिए अपने-अपने स्तर से संघर्ष किया। लेकिन, अब प्रयास यही होना चाहिए कि यह विवाद भविष्य में कभी खड़ा ही न हो, इसके लिए विवादित एपीसोड के प्रसारण को हमेशा के लिए बंद करने का कानूनी आदेश प्राप्त करना होगा। इस कानूनी लड़ाई में उत्तर रामायण पर हाईकोर्ट के फैसले को आधार बनाया जा सकता है।
समाचार
…ताकि अब कभी न होने पाए सहस्त्रबाहु अर्जुन का मान-मर्दन
- by admin
- October 29, 2016
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