आगरा।
आज करवा चौथ है। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाए जाने वाले करवा चौथ पर महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मां पार्वती की पूजा करती है और दिनभर निर्जला व्रत करने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोलती हैं। मान्यता है कि करवा चौथ के व्रत और पूजा की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। इसे लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। सत्यवान और सावित्री की कहानी, और एक कहानी द्रोपदी और भगवान कृष्ण की भी है। करवा चौथ को लेकर और भी कई अन्य कथाएं हैं जो पौराणिक हैं। लेकिन कोई ऐसा ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध नहीं है जिसके आधार पर तय कर सकें कि करवा चौथ की परंपरा कब से, क्यों और कैसे शुरू हुई ।
एक कहानी बताती है कि यह परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हो गया जिसमें देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवताओं ने ब्रह्मदेव से रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला। उस समय आकाश में चंद्रमा भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।
इसके अलावा एक कहानी यह भी है कि जब सत्यवान की आत्मा को लेने यमराज धरती पर आए तो सत्यवान की पत्नी सावित्री ने उनसे अपने पति के प्राणों की भीख मांगी। लेकिन यमराज ने उसकी नहीं मानी, जिसके बाद सावित्री ने अन्न—जल त्याग दिया और अपने पति के शरीर के पास बैठकर विलाप करने लगी। पतिव्रता सावित्री के इस तरह विलाप करने से यमराज पिघल गए और उन्होंने सावित्री से कहा कि वह सत्यवान के जीवन की बजाय कोई और वर मांग ले। सावित्री ने यमराज से कहा कि मुझे कई संतानों की मां बनने का वर दें, इस पर यमराज ने हां कह दिया। पतिव्रता होने के नाते सावित्रि अपने पति सत्यवान के अतिरिक्त किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती थी, जिसके बाद यमराज ने वचन में बंधने के कारण सावित्री को सत्यवान का जीवन सौंप दिया। कहा जाता है कि तभी से सुहागिनें महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अपने अखंड सौभाग्य के लिए अन्न—जल त्यागकर करवा चौथ के दिन व्रत करती हैं।
एक और किवदंती है जो द्रौपदी से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में
घोर तपस्या के लिए गए थे और बाकी चारों पांडवों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। द्रौपदी ने यह परेशानी भगवान श्रीकृष्ण को बताई और अपने पतियों के मान-सम्मान की रक्षा का उपाय पूछा। भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ का व्रत रखने की सलाह दी जिसके फलस्वरूप अर्जुन सकुशल वापस आए और बाकी पांडवों के सम्मान को भी कोई हानि नहीं हुई।
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