जालंधर।
जलेबी का नाम सुनते ही हर किसी के मुंह में पानी आ जाता है, गरम-गरम जलेबी कौन नहीं खाना चाहता भला। लेकिन ऐसे लोग भी हैं जिन्हें जलेबी में मौजूद ग्लूटेन (लस) स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें पैदा कर देता है, लिहाजा उन्हें मन मारकर रहना पड़ता। ऐसे लोगों के लिए फूड टैक्नोलॉजी साइंटिस्ट डा. अरविंद कुमार जायसवाल ने तैयार की है आलू से बनी ग्लूटेन फ्री जलेबी, जो मैदा की आम जलेबी जितनी या शायद उससे भी कहीं अधिक स्वादिष्ट है। डा. अरविंद कुमार जायसवाल ने इस टैक्नोलॉजी के पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया है।
डा. अरविंद कुमार जायसवाल पंजाब में जालंधर स्थित आईसीएआर के सेंट्रल पोटेटो रिसर्च सेंटर (सीपीआरएस) में वैज्ञानिक हैं। परंपरागत रूप से जलेबी बनाने के लिए मैदा में खमीर उठाया जाता है और इसके लिए दही का इस्तेमाल होता है। साथ ही मैदा में थोड़ा से नमक भी मिलाया जाता है। मैदा के खमीरयुक्त गाढ़े घोल को कपड़े में रखकर धार बनाते हुए गर्म तेल (देशी घी या रिफाइंड) में घुमा-घुमाकर डाला जाता है। फ्राई होने के बाद जलेबी को तेल में निकालकर चीनी से बनी चाश्नी में डाला जाता है। चाश्नी जलेबी में भर जाती है और इस तरह तैयार होती है गरम-गरम जलेबी। यही जलेबी भारत का सबसे लोकप्रिय मिष्ठान्न है जो देश के हर कोने में मिल जाएगी।
इसके बावजूद, बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो जलेबियों को देखकर मन मसोस कर रह जाते हैं, खाने की हिम्मत नहीं कर पाते। क्योंकि, उन्हें जलेबी में मौजूद ग्लूटेन सूट नहीं करता। दरअसल ग्लूटेन प्रोटीन परिवार का एक तत्व है जो गेहूं समेत कई पदार्थों में चिपचिपा नेटवर्क प्रदान करता है। ग्लूटेन के चलते ही मैदा का खमीर उठता है जिसके बाद जलेबी उससे जलेबी बनाई जाती है। दुर्भाग्य से बहुत से लोग ग्लूटेन के सेवन से असहज महसूस करते हैं। उनकी पाचन क्रिया प्रभावित हो जाती है, उन्हें सूजन, दस्त या कब्ज, गैस, थकान और कई अन्य लक्षण सामने आ जाते हैं। सबसे गंभीर प्रतिक्रिया को सीलियेक रोग कहा जाता है। ऐसे लोगों को चिकित्सक ग्लूटेन फ्री आहार तजवीज करते हैं। इसके अलावा ग्लूटेन वजन भी बढ़ाता है। आलू से बनी ग्लूटेन फ्री जलेबी ऐसे लोगों के लिए ‘जलेबी की भूख’ शांत करने एक सुरक्षित विकल्प हो सकती हैं।
डा. अरविंद कुमार जायसवाल ने बताया कि इन जलेबियों को विशेष टैक्नोलॉजी से तैयार किया जाता है जिसे मिठाई की दुकान वाले या मिठाई-नमकीन उद्योग बड़ी आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके औद्योगिक उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। इन जलेबियों को 3-4 महीने तक घर में सुरक्षित रखा जा सकता है। उपभोक्ताओं को करना केवल अपने स्वादानुसार चीनी या गुड़ की चाश्नी तैयार करनी है कि घर में रखी आलू से बनी फीकी जलेबी को इस गरम चाश्नी में डाल देना है। दो मिनट बाद गरमा-गरम जलेबी तैयार। कंपनियां इसे ‘इंस्टेंट जलेबी प्रिमिक्स’ के रूप में भी ला सकती हैं। फिलहाल तो लेबोरेट्री लेवल पर आलू की जलेबी का सफल परीक्षण किया जा चुका है।
डा. अरविंद कुमार जायसवाल को उम्मीद है कि भविष्य में खाद्य पदार्थ बनाने वाले उद्योग इसका उत्पादन करेंगे और आलू की जलेबी घर-घर पहुंच जाएगी। खास बात यह है कि आलू से बने चिप्स या फ्रेंच फ्राई पोटेटो के विपरित आलू की जलेबी को भी आकार दिया जा सकता है। इसमें किसी भी प्रकार का आलू इस्तेमाल किया जा सकता है। थोड़ा बहत डैमेज आलू का इस्तेमाल हो सकता है या कोल्ड स्टोर का आलू उपयोग कर सकते हैं।
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