आगरा।
उम्र केवल एक संख्या है। इच्छाशक्ति हो तो इंसान कुछ भी मन का सकता है, कभी भी और किसी भी उम्र में। वृद्धावस्था को अपनी मजबूरी बताने वाले लोग श्री संजय शिवहरे और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णा शिवहरे से प्रेरणा ले सकते हैं। उम्र के सातवें दशक के मुहाने पर खड़े इस शिवहरे दंपति ने हाल ही में एक प्लेग्रुप स्कूल शुरू किया है जहां वे नन्हे-मुन्ने बच्चों को शिक्षा के संस्कार और बेसिक बिहेवियर सिखा रहे हैं। मजे की बात यह है कि शिवहरे दंपति ने चंद महीनों में अपने स्कूल को ‘आत्मनिर्भर’ स्थिति पर ला दिया है।
आगरा में शिवहरे समाज की धरोहर ‘दाऊजी मंदिर’ समिति के पूर्व महासचिव श्री संजय शिवहरे और श्रीमती कृष्ण शिवहरे ने प्रतापपुरा में अपने निवास के ही एक हिस्से में ‘प्ले हाउस’ नाम से एक स्कूल शुरू किया है जिसमें प्लेग्रुप के अलावा एलकेजी और यूकेजी की क्लास भी चलती है। श्रीमती कृष्णा शिवहरे स्कूल की प्रिंसिपल के रूप में बच्चों की पढ़ाई से जुड़े मामले संभालती हैं, खुद भी पढ़ाती हैं और श्री संजय शिवहरे मैनेजर के तौर पर प्रबंधन के मामले देखते हैं। श्रीमती कृष्णा शिवहरे डबल एमए (एमए-म्यूजिक, एमए-चाइल्ड साइकोलॉजी) और बीएड शिक्षित हैं, और वह अपने स्कूल में बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ एक्स्ट्रा कैलिकुलर एक्टिविटीज (शिक्षणेत्तर गतिविधियां) के माध्यम से उनकी नैसर्गिक प्रतिभा को पहचानने पर भी जोर देती हैं। श्रीमती कृष्णा शिवहरे ने बताया कि उनके दो बच्चे हैं, दोनों विवाहित हैं। पुत्री रिचा गुप्ता कोलकाता के एक डिग्री कालेज में इंग्लिश की असिस्टेंट प्रोफेसर है, दामाद सुमित आईएएस अधिकारी हैं और 24 परगना साउथ के कलक्टर (जिलाधिकारी) हैं। दो धेवते हैं जो पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं बेटा राहुल शिवहरे मर्चेंट नेवी में चीफ इंजीनियर है और अपने परिवार के साथ कनाडा में सेटल है, पुत्रवधु प्रीती शिवहरे कनाडा सरकार के आयकर विभाग में अधिकारी है। पौत्र-पौत्री कनाडा में ही नवीं क्लास में पढ़ते हैं। यानी बच्चे हमसे बहुत दूर सेटल हैं और इस लंबे-चौड़े पैतृक मकान में हम पति-पत्नी अकेले ही रहते हैं। इसी अकेलेपन से निजात पाने और खुद को बिजी रखने की एक जुगत है हमारा यह स्कूल, जिसे हमने इस साल अप्रैल में पांच बच्चों के साथ शुरू किया था और आज 50 से अधिक बच्चे यहां पढ़ रहे हैं। बच्चों के बीच समय कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता।
श्रीमती कृष्णा शिवहरे ने बताया कि टीचर के रूप में उन्हें तीस वर्षों का अनुभव है। लंबे समय तक लॉरीज होटल में चलने वाले प्रतिष्ठित मांटेसरी स्कूल में पढ़ाया जो कुछ साल पहले बंद हो चुका है। बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ अन्य एक्टीविटीज कराने मे अपने अनुभव का भरपूर लाभ अपना स्कूल चलाने में मिल रहा है। हंसते हुए कहती हैं कि चाइल्ड साइकोलॉजी और म्यूजिक की शिक्षा अब बुढ़ापे में काम आ रही है। उनका मानना है कि एक प्लेग्रुप स्कूल चलाना किसी बड़े स्कूल को चलाने से कम मुश्किल नहीं होता। जो बच्चे हमारे पास आते हैं उन्हें हैंडवॉश जैसी बेसिक आदतों की जानकारी तक नहीं होती, हमारी पढ़ाई बच्चों को गुड बेसिक हैबिट्स सिखाने से शुरू होती है।
श्री संजय शिवहरे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, आगरा में कभी ‘नगरसेठ’ की हैसियत वाले स्व. श्री प्यारेलालजी शिवहरे के वंशज हैं। स्व. श्री प्यारेलालजी शिवहरे वैसे तो नामी-गिरामी शराब कारोबारी थे लेकिन अपने बच्चों को इस कारोबार से दूर रखते हुए उन्हें उच्च शिक्षा प्रदान की। स्व. श्री प्यारेलालजी के पुत्र स्व. श्री विश्वनाथ गुप्ता आगरा में घटिया आजमखां स्थित अग्रसेन इंटर कालेज के प्रधानाचार्य रहे थे जिन्हें आज भी लोग उनके सख्त ईमान के लिए याद करते हैं। श्री संजय शिवहरे इन्हीं प्रिंसिपल साहब के बड़े पुत्र हैं। तमाम पैतृक संपन्नता के बावजूद श्री संजय शिवहरे शिक्षा को ही परिवार की विरासत मानते हैं, जो उनके स्वभाव और लहजे से भी झलकती है। विनम्र और मृदुभाषी श्री संजय शिवहरे ने लंबे समय तक फार्मा (दवा) लाइन में उच्च पद पर नौकरी की, उसके बाद कुछ वर्षों से ज्वैलरी के बिजनेस में थे। बागवानी का उन्हें शौक है सो ज्यादातर समय गार्डन में लगी तरह-तरह के फूलों की फुवारियों को संवारने और ‘किचिन गार्डेनिंग’ में गुजरता है। श्री संजय शिवहरे ने बताया कि एक रोज घर में यूं ही बैठे-बैठे स्कूल खोलने का विचार आया, और इस विचार ने इस कदर स्ट्राइक किया कि अगले ही दिन हमने घर के तीन कमरों को खाली करा दिया। ड्राइंगरूम को शिफ्ट कर उसमें प्लास्टिक फर्नीचर डालकर क्लासरूम का रूप दे दिया। बाहर के कमरे को प्रिंसिपल रूम बनाया और एक अन्य कमरे को भी क्लास बना दिया। ढेर सारे खिलौने और झूले मंगवा लिए बच्चों के लिए। उन्होंने बताया कि शुरू में मित्रों और मिलने वालों को अपने इनिशियेटिव के बारे में बताया, उन्हीं के जरिये पांच बच्चों के एडमिशन भी हो गए। दो टीचर और दो नानटीचिंग स्टाफ रखकर अप्रैल से क्लास शुरू कर दी। पेरेंट्स को स्कूल की पढ़ाई इतनी अच्छी लगी कि उनकी माउथ पब्लिसिटी से ही बच्चे आते रहे और अगस्त होते-होते पचास बच्चे हो गए। स्थिति यह हुई कि हमें नए एडमिशन रोकने पड़े, अगले शैक्षणिक सत्र में स्कूल की कैपिसिटी बढ़ाने की कोशिश करेंगे।
श्री संजय शिवहरे औऱ श्रीमती कृष्णा शिवहरे उन तमाम बुजुर्गों के लिए भी प्रेरणा हैं जिनके बच्चे करियर के लिए दूसरे शहरों में सैटल हो गए हैं और वे उम्र के आखिरी पड़ाव पर अकेलेपन से जूझ रहे हैं। श्री संजय शिवहरे कहते हैं कि बुढ़ापे को मजबूरी नहीं, अवसर बनाइए अपनी छूटी हुई इच्छाओं को पूरा करने का। शिक्षा हमारा पैशन था, तो हमने स्कूल खोल लिया। बेशक हमारे बच्चे बाहर रहते हैं, लेकिन हम कई सारे बच्चों के साथ रहते हैं।
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