शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
मकर संक्रांति एक ऐसा दिन है, जब धरती पर सही मायनों में अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। ऐसा इसलिए, कि इस दिन सूर्य दक्षिण के बजाय उत्तर की ओर गमन करने लग जाता है, और ऐसे सूर्य की किरणें शरीर को शक्ति एवं मन को शांति प्रदान करती है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता में उत्तरायण सूर्य का इस महत्व को बताया है।
लोहामंडी स्थित मंदिर श्री राधाकृष्ण में शिवहरे महिलाओं ने भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की प्रतिमा के समक्ष इस धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व के पर्व को पूर्ण भक्ति भाव से मनाया। गरीबों को कंबल और खिचड़ी दान कर वर्ष के पहले उत्तरायण सूर्य से ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ की कामना की, अर्थात हे सूर्य! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
मंदिर श्री राधाकृष्ण महिला समिति द्वारा मंगलवार को आयोजित मकर संक्रांति समारोह के लिए मंदिर परिसर खासकर राधाकृष्ण के दरबार को विशेष रूप से तैयार किया गया। भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी स्वयं भी आकर्षक पोशाक धारण कर भक्तों को दिव्य दर्शन दे रहे थे। समिति की महिलाओं ने ढोल-ताशे के साथ एक सुंदर पोशाक भगवान को अर्पित की। इसके साथ ही राधाकृष्ण के दरबार में भजन संध्या आयोजित की गई, जिसमे एक से बढ़कर एक भजन प्रस्तुत किए गए। इसके बाद भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया गया और प्रसाद वितरण हुआ।
समिति की उपाध्यक्ष श्रीमती रितु गुप्ता ने बताया कि सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है। इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं। यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हों, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है।
उन्होंने कहा कि कार्यक्रम का उद्देश्य युवा पीढ़ी को मकर संक्रांति के पर्व के महत्व और परंपरा से अवगत कराना है। इस अवसर पर रजनी, रिंकी, सुनीता, मंजू, मधु, अर्चना, साधना, सीमा, कमला समेत काफी संख्या में शिवहरे महिलाओं के साथ ही बच्चों ने भी भागीदारी की।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि इस उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं।
इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था।
मकर संक्रांति के बाद जो सबसे पहले बदलाव आता है वह है दिन का लंबा होना और रातें छोटी होनी लगती हैं। नदियों में वाष्पन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिससे कई सारी शरीर के अंदर की बीमारियां दूर हो जाती हैं। इस मौसम में तिल और गुड़ खाना काफी फायदेमंद होता है। यह शरीर को गर्म रखता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तारायण में सूर्य के ताप शीत को कम करता है।
Leave feedback about this