शिवहरे वाणी नेटवर्क
नई दिल्ली।
बिहार के सीतामढ़ी जिले में सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया रितु जायसवाल को चैंपियंस ऑफ चेंज अवार्ड से नवाजा गया है। रितू को स्वच्छ भारत अभियान में उत्कृष्ट योगदान देने और अपने कुशल नेतृत्व से गांव में बदलाव लाने के लिए यह अवार्ड दिया गया है। उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने बुधवार को दिल्ली के विज्ञानभवन में हुए एक कार्यक्रम में उन्हें यह अवार्ड प्रदान किया। मुखिया के रूप में सिंहवाहिनी गांव का सूरते-हाल बदलने वाली रितु जायसवाल दिल्ली के आईएएस अधिकारी अरुण कुमार पत्नी हैं। चार पहले तक सिंहवाहिनी बेहद पिछड़ा गांव था, जहां पहुंचने के लिए सड़क तक नहीं थी। वही सिंहवाहिनी गांव रितु जायसवाल जैसी मुखिया को पाकर आज विकास की पीगें भर रहा है।
रितु जायसवाल 2015 में पहली बार अपने पति के साथ उनके पैतृक गांव सिंहवाहिनी गई थीं। गांव की गांव में बिजली नहीं थी, सड़क का नाम-निशान नहीं था, और पीने के लिए साफ पानी नहीं था। लोग खुले में शौंच करते थे। स्कूल केवल नाम का था, वहां टीचर नहीं आते थे। रितु ने गांव के लिए कुछ करने का इरादा कर लिया। रितु को परिवार का सपोर्ट मिला, दोनों बच्चे भी हॉस्टल में रहकर पढ़ने के लिए राजी हो गए। फिर क्या था, दिल्ली के चकाचौंध भरे सुविधायुक्त जीवन को अलविदा कह वह सिंहवाहिनी गांव चली आईं।
वैशाली में जन्मीं और वहीं पढ़ी-लिखीं रितु जायसवाल ने गांव पहुंचकर सबसे पहले स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए एक युवती को चुना और उसे अपने पास से सैलरी दी। उस युवती ने गांव की 25 लड़कियों को पढ़ाया और पहली बार गांव 12 लड़कियों ने शानदार अंकों से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की।
रितु को गांववालों से ही चर्चा में यह भी पता चला कि सिंहवाहिनी के लिए विद्युतीकरण योजना मंजूरी हो चुकी है लेकिन काम शुरू नहीं हुआ है। इस पर उन्होंने ग्रामीणों के साथ मिलकर अभियान छेड़ा और परिणाम यह हुआ कि आजादी के 70 बरस बाद गांव में पहली दफा गांव में बिजली के पंखे चले। 2016 में सिंहवाहिनी में ग्राम प्रधान पद के लिए चुनाव हुए तो ग्रामीणों के बहुत कहने पर रितु ने चुनाव लड़ा। 32 प्रत्याशियों के बीच अकेले उन्हें ही 72 फीसदी वोट मिल गए।
मुखिया बनने के बाद उन्होंने खुले में शौंच को पहला टारगेट बनाया। रितु ने डीएम से बात गांव के हर घर में एक, कुल मिलाकर 2000 टायलेट बनवाए। फिर भी लोग टायलेट में नहीं जाते थे। इस पर रितु ने महिलाओं की सेना तैयार की जो हर सुबह 4 बजे सक्रिय हो जाती थी और खेत जाने वालों से बात करके उन्हें रोकती थी। नतीजा यह हुआ कि अक्टूबर 2016 को सिंहवाहिनी को खुले में शौंच से मुक्त घोषित कर दिया गया।
इसके बाद रितु ने गांव की सड़कों को दुरुस्त करने के लिए अपने पास से पैसा लगाकर काम शुरू कराया। उनकी देखा-देखी गांववाले भी अपनी सेविंग्स का कुछ हिस्सा देने लगे। आज सिंहवाहिनी की कच्ची सड़क ने चमचमाती डामर रोड का शक्ल ले ली है। इसके बाद रितु ने जनवितरण प्रणाली को दुरुस्त करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने पूरे गांव में राशन की आवश्यकता का आंकड़ा तैयार किया और पंचायत के तहत आने वाले 14000 ग्रामीणों को पूरा राशन मिलना सुनिश्चित कराया।
रितु बताती हैं कि अधिकारी अक्सर मुझे हलके में लेते थे लेकिन मेरी एजुकेशन बहुत काम आई। उदाहरण के लिए हमारे बीडीओ का चेहरा उस वक्त देखने लायक था जब मैने गांव में राशन का डेटा एक्सल शीट पर उसे दिखाया। जब मैंने खेत मजदूरों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित किया तो मुझे जमींदारों की ओर से धमकियां भी मिलीं।
रितु ने पंचायत के अंतर्गत सभी स्कूलों में टीचर्स अपाइंट किए। स्कूल में टीचर्स का समय पर और नियमित आना सुनिश्चित करने के लिए रितु ने गांधीगीरी का सहारा लिया। इसके तहत जब भी कोई टीचर स्कूल में लेट आता, गांववाले स्कूल के गेट पर आकर उन्हें फूल देते थे। जाहिर है, टीचरों को होश में आना ही था।
रितु ने गांव में स्वरोजगार बढ़ाने के लिए ट्रेनिंग सेंटर खोले। साथ ही कई एनजीओ को इसके लिए आमंत्रित किया। इससे गांव में स्वरोजगार बढ़ा। कई तरह की दुकानें गांव में खुल गईं। बीते वर्ष अगस्त में सीतामढ़ी जिले में भयानक बाढ़ आ गई। तब रितु ने दिल्ली जाने के बजाय गांव में रहकर बचाव अभियान का नेतृत्व किया। कई रिलीफ कैंप चलाए। बहुत कम समय में गांव उस प्राकृतिक आपदा की तबाही से उबर गया।
कुल मिलाकर रितु जायसवाल ने साबित कर दिखाया है कि महिला पंचायत प्रतिनिधि यदि मुखिया पति के बजाए खुद कार्य करने पर विश्वास करें और सच्ची निष्ठा से काम करें तो गांवों की सूरत बदल सकती है।
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