शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा।
भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान का रूप माना गया है। संयम, सदाचार, आचरण, विवेक और सहनशीलता जैसे गुण हमें गुरू द्वारा प्रदान किए गए ज्ञान से ही प्राप्त होते हैं। गुरुकुल शिक्षा के दौर में ऐसा ही था, लेकिन आज परिदृश्य बहुत बदल चुका है। आज के वेतनिक शिक्षकों का कर्तव्य स्कूल की घंटी पर निर्धारित होता है, घंटी बजी और पढ़ाना खत्म। ऐसे दौर में जब डा. प्रदीप कुमार गुप्ता 'शास्त्री' जैसे शिक्षकों के होने का पता चलता है, तो लगता है कि हालात से इतनी नाउम्मीदी भी ठीक नहीं।
डा. प्रदीप कुमार गुप्ता 'शास्त्री' ने एक शिक्षक के रूप में अपने कार्यकाल में बच्चों को किसी से अन्याय न करने और किसी का अन्याय न सहने की व्यवहारिक सीख दी। उन्होंने खुद सिस्टम से संघर्ष किया और कोर्ट में पांच साल की लंबी लड़़ाई के बाद उन्हें विजय हासिल हुई। वह इन दिनों कासगंज के सुमंत कुमार माहेश्वरी इंटर कालेज में प्रधानाध्यापक के रूप में पोस्टेड हैं।
वर्ष 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने डा. शास्त्री को दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया था। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने उनसे मुलाकात की। इसके एक साल बाद मुंबई के महाराष्ट्र के राज्यपाल ने उन्हें 'ग्लोबल टीचर रोल मॉडल' अवार्ड प्रदान किया था। दिल्ली स्थित इंटरनेशनल कांफ्रेंस हॉल में दिल्ली के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा रत्न अवार्ड से नवाजा गया। यही नहीं, शिक्षा क्षेत्र में सराहनीय कार्यों के लिए डा. शास्त्री को एशियन बायोग्राफीज डॉट इन ने वेबसाइट के लिये चयनित किया।
डा. प्रदीप कुमार गुप्ता 'शास्त्री' का जन्म आगरा में नाई की मंडी स्थित गुजराती पाड़ा में 9 नवंबर, 1954 में हुआ। आपके पिता स्व. श्री जसवंत सिंह शिवहरे आर्यसमाजी थे, इसीलिये अपने नाम में जाति को इंगित नहीं करते थे। माताजी का नाम स्व. श्रीमती शीलवती देवी था। बाद में पिता की नौकरी के सिलसिले में परिवार टूंडला शिफ्ट हो गया। पिता ने बालक प्रदीप को सिरसागंज स्थित एक गुरुकुल में भर्ती करा दिया, जहां उन्होंने प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा ली। फिर बनारस संस्कृत विश्वविद्यालय से स्नातक यानी आचार्य की डिग्री ली और उसके बाद आगरा यूनीवर्सिटी से एम संस्कृत एवं पीएचडी की उपाधि ली। संस्कृत विषय में पीएचडी करने के साथ उनके नाम के आगे डा. और पीछे 'शास्त्री' जुड़ गया।
1978 में दिल्ली से बीएड करने के बाद शिक्षण क्षेत्र में उनका प्रवेश हुआ। सबसे पहले एटा के जनता इंटर कालेज में पढ़ाया, और फिर मध्य प्रदेश के अंबिकापुर के एक कालेज में लेक्चरर हो गए। अंबिकापुर को अब छत्तीसगढ़ में सरगुजा के रूप में जाना जाता है। 1980 में सरकारी नियुक्ति पर मैनपुरी में संस्कृत के लेक्चरर के रूप मे पोस्टिंग मिली। इसके बाद वह यूपी के अलग-अलग स्थानों पर तैनात रहे। 2003 में आयोग द्वारा उनकी नियुक्ति प्रधानाचार्य के रूप में हुई। लेकिन कासगंज के सुमंत कुमार माहेश्वरी इंटर कालेज के प्रबंधन ने उनके सजातीय न होने का हवाला देकर पोस्टिंग देने से इनकार कर दिया। शास्त्रीजी मामले को कोर्ट ले गए और 2008 में उन्हें अदालत के आदेश पर नियुक्ति दी गई। डा. शास्त्री कासगंज के पहले शिक्षक है जिनको शासन ने एक्सटेंशन देकर 62 के बजाय 65 वर्ष पर सेवानिवृत्त करने का निर्णय किया है।
डा. शास्त्री की प्रतिष्ठा अनुशासनपसंद और छात्रों के प्रति बेहद स्नेही शिक्षक के रूप में है। एक प्रिंसिपल के रूप में उनके सख्त और तेजतर्रार नेतृत्व में माहेश्वरी इंटर कालेज की प्रतिष्ठा में खासा इजाफा हुआ। डा. शास्त्री की लिखी कई पुस्तकें यूपी बोर्ड के पाठ्यक्रम में चल रही हैं। आगरा के मुरारी प्रकाशन ने उनकी कई पुस्तको का प्रकाशन किया जो कक्षा 6 से लेकर कक्षा 12 तक चलती हैं।
डा. प्रदीप कुमार गुप्ता शास्त्री परिवार के साथ कासगंज में रहते हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती कुसुम गुप्ता आगरा के बैकुंठी देवी कालेज से पोस्ट ग्रेजुएट हैं। रेलवे में एनाउंसर के रूप में उनकी जॉब लगी थी लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते उसे जारी नहीं रख पाईं। उनके पुत्र सुयश गुप्ता ने लखनऊ यूनीवर्सिटी से बीटेक किया, और फिर लंदन से एमबीए मार्केटिंग कर कुछ समय ब्रिटेन के कार्डिक सिटी में जॉब की। अब देश लौटकर उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू कर दिया है। आगरा में उनके भाई महेंद्र कुमार गुप्ता मारुति एस्टेट मे रहते हैं। दो अन्य भाइयों के परिवार भी आगरा में हैं, और दो भाई टूंडला में निवास कर रहे हैं।
आगामी 8 जुलाई रविवार को आगरा में शिवहरे समाज एकता परिषद और शिवहरे वाणी के बैनर तले मेधावी छात्र-छात्रा एवं शिवहरे रत्न सम्मान समारोह का आयोजन हो रहा है। इस समारोह में डा प्रदीप कुमार गुप्ता 'शास्त्री' को 'शिवहरे सेवा रत्न' से सम्मानित किया जाएगा। हमें फख्र है कि इतने बड़े-बड़े सम्मान प्राप्त करने के बाद भी डा. शास्त्री जी ने उनका अभिनंदन करने की स्वीकृति हमें प्रदान की है।
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