शिवहरे वाणी नेटवर्क
बांसवाड़ा।
मौजूदा दौर में, जबकि भारतीय समाज के संपन्न वर्ग की शादियों में शोशेबाजी की होड़ लगी हुई है, और मध्यम एवं निम्न वर्ग के लोग अपनी इज्जत बनाए रखने के नाम पर बच्चों की शादियों में क्षमता से अधिक खर्च करने को बाध्य हो रहे हैं, सामूहिक विवाह की उपयोगिता को कौन नकार सकता है भला। जब भी सामूहिक विवाह की बात होती, तब-तब कलचुरी समाज की छवि एक जागृत समाज के रूप में उभरती है। सच तो यह है कि हमारे देश में कलचुरी समाज की गिनती उन जागरूक समाजों में है, जिनमें सामूहिक विवाहों का चलन सबसे पहले सामने आया था। यहां तक कि कलचुरी समाज के संपन्न वर्गों ने भी सामूहिक विवाहों में अपने बच्चों की शादियां करके समाज के सामने मिसालें भी पेश कीं। इसी क्रम में राजस्थान के बांसवाड़ा से एक बहुत पॉजिटिव खबर है। यहां कलाल समाज ने शादियों में फिजूलखर्ची रोकने के लिए एकल विवाह को पूरी तरह से बंद कर दिया है और केवल सामूहिक विवाह में ही शादियां होती हैं। ऐसी अनूठी मिसाल देश में कहीं भी किसी भी समाज में देखने को नहीं मिली है।
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में कलाल समाज के दो वर्ग हैं-एक है मेवाड़ा कलाल और दूसरा है वेगड़ा कलाल। दावा यह है कि वेगड़ा कलाल समाज में 5 साल से और मेवाड़ा कलाल समाज में तीन साल से कोई एकल विवाह नहीं हुआ है। बांसवाड़ा में मेवाड़ा और वेगड़ा कलाल समाज में 9 साल के अंदर 36 सामूहिक विवाह हो चुके हैं, जिनमें 608 जोड़ों का विवाह कराया जा चुका है। सामूहिक विवाह से प्रति परिवार में 5-7 लाख रुपए तक की बचत हुई, वहीं समाजस्तर पर लगभग 40 करोड़ से अधिक की राशि बचाई गई। समाज का कोई परिवार आर्थिक रूप से कितना भी सशक्त क्यों न हो, उसके बच्चों की शादी सामूहिक विवाह सम्मेलन में ही होता है। खास बात यह है कि अगर समाज में कोई व्यक्तिगत स्तर पर अपने बच्चों की शादी करवाता है, तो उस परिवार को सामाजिक रूप से दंडित किया जाता है।
मेवाड़ा कलाल समाज के 10 सामूहिक विवाह हो चुके हैं जिनमें 183 जोड़ों की शादी हुई है। वहीं वेगड़ा कलाल समाज में 26 सामूहिक विवाह में 425 जोड़ों की शादी हो चुकी है। सामूहिक विवाह में राजस्थान के महिला एवं बाल विकास विकास विभाग की ओर प्रत्येक दंपती को 15 हजार रुपए की सहयोग राशि दी जाती है। वहीं समाज के धनी-मानी लोग भी सामूहिक विवाह आयोजन में वर-वधु को यथाशक्ति सहयोग करते हैं। मेवाड़ा कलाल समाज के युवाओं ने समाज की महिलाओं और पुरुषों का सम्मेलन बुलाकर सामूहिक विवाह कराने में रायशुमारी करवाई थी। उस समय 87 प्रतिशत समाजजनों ने सामूहिक विवाह कराने के लिए सहमति दी थी, जिस पर इस कार्यकारिणी ने 3 दिसंबर 2014 को पहला सामूहिक विवाह करवाया था।
दरअसल यह हर समाज की विडंबना है कि शादी में फिजूलखर्च रोकने की बातें करते हैं, लेकिन इस दिशा में पहल करने का साहस नहीं कर पाते। हालांकि इस मामले में कलचुरी समाज का इतिहास गौरवशाली रहा है। बल्कि यह कहना गलत नहीं होगा कि कलचुरी समाज ने ही सामूहिक विवाह के लिए अन्य समाजों को प्रेरित करने का काम किया है। यह भी सत्य है कि कलचुरी समाज में सामूहिक विवाहों ने सबसे पहले मान्यता हासिल की। भोपाल के प्रमुख समाजसेवी जयनारायण चौकसे ने कुछ साल पहले शिवहरे वाणी से बातचीत में बताया था कि उनके सामाजिक जीवन में पहला सामूहिक विवाह रायसेन के गैरतगंज में संभवतः 1975-76 हुआ था जो कि उस दौर में एक संभवतः पहला ऐसा आयोजन था। गैरतगंज के नीलकंठ मंदिर में उसके बाद लगातार तीन वर्ष सामूहिक विवाह हुए। खुद जयनारायण चौकसे ने अपने छोटेभाई मुकेश कुमार चौधरी का विवाह 1988 में उज्जैन में हुए एक सामूहिक विवाह समारोह में किया था।
अब जरूरत इस बात की है कि समाज में सादगीपूर्ण विवाह को बढ़ावा दिया जाए। और बांसवाड़ा के कलार समाज की पहल को आगे बढ़ाया जाए। इसका एक अतिरिक्त लाभ यह होगा कि शादियों में बचे पैसे का उपयोग समाज के कल्याण के लिए कर सकते हैं। जैसा कि बांसवाड़ा के वेगड़ा कलाल समाज ने किया है, वहां नौ साल में सामूहिक विवाहों से बचे पैसे से पांचलवासा में साढ़े पांच बीघा जमीन खरीदी गई है जिस पर समाज के लिए छात्रावास बनाने की योजना है। सामूहिक विवाह भी इसी परिसर में कराए जाएंगे।
समाज
कलचुरी समाज की इस अनूठी पहल की देश में चर्चा, पढ़कर आप भी हों जाएंगे प्रेरित
- by admin
- October 29, 2016
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