November 23, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
साहित्य/सृजन

वंदना जायसवाल शिवहरे ने किया ऐसा काम कि दर्ज हो गया वर्ल्ड रिकार्ड बुक में नाम

शिवहरे वाणी नेटवर्क
शिवपुरी/मंदसौर।
लोक-कलाएं, दरअसल लोक जीवन की अभिव्यक्ति हुआ करती हैं। लेकिन आज आर्थिक विकास और शहरीकरण का असर आज दूरदराज के गांवों तक पड़ा है। लिहाजा हमारा परिवेश, तीज-त्योहार, व्रत-उपवास, जीवन, जीवन-दर्शन, धर्म, मान्यताएं, आर्थिक गतिविधियां.. कुछ भी इससे अछूता नहीं रहा। लोकजीवन पर इस प्रभाव से लोककलाओं पर लुप्त होने का संकट तो आना ही था। ऐसी ही एक लोककला है मांडणा, जिस पर कुछ समय पहले तक लुप्त होने खतरा मंडरा रहा था। लेकिन मांडणा की अपनी जमीन यानी मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले से एक ऐसी कलाकार उभरीं, जिन्होंने इस लोककला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का काम किया है। वंदना शिवहरे ने अपनी कुशलता के बल पर मांडणा कला का लोहा पूरे देश और दुनिया में मनवाया है। मांडणा पर उन्होंने शोध किया, तीन किताबें लिखीं जिनमें एक प्रकाशित हो चुकी है। हाल ही में वंदना को मांडणा लोककला पर 1000 चित्र बनाने और उनके शोध के लिए वज्र वर्ल्ड रिकार्ड टेक्सास (यूएस) बुक में स्थान मिला है। वंदना इन दिनों मंदसौर में शिवना नदी के घाट पर टीम के साथ मांडला कला से चित्र उकेर रही हैं। 

admin
मंदसौर जिले में शामगढ़ तहसील के जाने-माने दानी एवं समाजसेवी स्व. गोवर्धनलाल जायसवाल एवं श्रीमती संध्या देवी जायसवाल (मध्य प्रदेश कलचुरी समाज की अध्यक्ष) की पुत्री वंदना को बचपन से ही मांडने का शौक था। घर में या कहीं भी, जहां और जब मौका मिलता, वह मांडणे उकेरने लग जातीं। 2002 में उनका विवाह शिवपुरी में श्री मदनलाल शिवहरे के पुत्र संजय शिवहरे से हुआ जो एक सरकारी कालेज में प्रवक्ता हैं। वंदना के साथ मालवा की मांडणा कला भी ससुराल में चली आई। वंदना ने ससुराल में प्रवेश द्वार से लेकर घर के हर कोने को मांडणा से सजा दिया। वंदना का मन ससुराल में रम गया था, बेटी हिमाद्री और पुत्र नरोत्तम के  लालन-पालन में व्यस्त हो गईं, लेकिन कहीं न कहीं मांडणा के प्रति कुछ करने का जुनून अंदर ही अंदर कुलबुला रहा था। 2011 में गर्मी की छुट्टी में वह अपने मायके शामगढ़ गईं तो यहां माता-पिता ने लुप्त होती मांडणा को बचाने के लिए कुछ करने का हौसला दिया। 2012 में मांडणा चित्रों को कागज पर उकेर कर संरक्षित करना शुरू किया। उसके बाद शामगढ़ व आस-पास के कई गांवों का भ्रमण किया और दो साल की मेहनत से 1 हजार से ज्यादा मांडना चित्र तैयार किए।

admin
मांडणा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वंदना ने किताबें प्रकाशित करवाईं और प्रशिक्षण देने के लिए कार्यशालाएं शुरू की। आज अपनी संस्था आध्यात्मिक सृजन के माध्यम से वह 100 से ज्यादा मांडणा कलाकारों को तैयार कर चुकी हैं। कुछ कलाकार उनके साथ टीम में शामिल होकर कार्य करते हैं। वंदना ने अपने शोध व कार्य को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के प्रयास के तहत वज्र विश्व रिकॉर्ड टेक्सास (यूएस) के लिए इस वर्ष के शुरू में आवेदन किया। मार्च 2018 में उनका चयन हुआ और मालवा क्षेत्र की ‘परंपरागत और सांस्कृतिक लोक कला मांडना चित्रकला’ कैटेगरी में नया वज्र विश्व रिकॉर्ड बनाया। 

admin
बीते अप्रैल माह में अखिल भारतीय जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा के जयपुर में हुए राष्ट्रीय समारोह में वंदना को उनके कार्यों के लिए सम्मानित किया गया। अखिल भारतीय जायसवाल महासभा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सरला जी गुप्ता ने उन्हें अवार्ड प्रदान किया। वंदना के नेतृत्व में कई स्कूलों और कालेजों की बिल्डिंगों को मांडणा से सजाया जा चुका है। मंदसौर के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में भी उन्होंने को भी उन्होंने अपनी कला से परंपरागत आभा प्रदान की है। 

admin
वंदना कहती हैं नए कलेवर के साथ नए रंगों के साथ फिर से लाया जाए तो शहरों में भी इसे सम्मान मिलेगा। आज वह यही कर रही हैं और लोग पंसद करते हैं। इस कला में सूरज, चांद, मयूर, हाथी, स्वास्तिक, ओम, फूल पत्ती का मांडनों में खास उपयोग होता है। वंदना ने शिवहरे वाणी को बताया कि मांडणा कला उनके गांव की माटी से जुड़ी है और वह इसे सूर्य की ऊंचाई तक ले जाना चाहती हूं। वंदना अपनी अब तक की यात्रा में पिता स्व. गोवर्धनलाल जायसवाल एवं माताजी श्रीमती संध्यादेवी को सबसे बड़ा प्रेरणास्रोत मानती हैं। उनका कहना है कि माता-पिता की प्रेरणा से ही यह सब संभव हो पाया है। 

adnin
वंदना ने हाल ही में अपनी संस्था आध्यात्मिक सृजन का रजिस्ट्रेशन करवाया है, वह एक एनजीओ भी बनाना चाहती हैं। उनकी संस्था का मुख्य उद्देश्य धर्म, संस्कृति और पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम करना है। वह केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत अभियान से जुड़कर सार्वजनिक स्थलों को मांडणा कला से सुसज्जित करती रहती हैं। इन दिनों मंदसौर की शिवना नदी के तट को मांडणा से अलंकृत कर रही हैं। 

admin

क्या होती है मांडणा कला
वंदना शिवहरे ने मांडणा कला की विस्तार से जानकारी देते हुए शिवहरे वाणी को बताया स्थानीय तीज-त्योहार मांडणा में प्रतीक के तौर पर बनाए जाते हैं। अवसर और त्योहार के हिसाब से मांडना की संरचना बदलती जाती है। दर्शन हमें बताता है कि हमारा ये शरीर पांच तत्वों के मेल से बना है, जिसे पंचमहाभूत कहा जाता है – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश और अंतत: इसी में विलीन भी होता है। पौराणिक दृष्टि से इन्हीं महाभूतों को – गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु और सूर्य कहा जाता है। अलग-अलग त्योहारों पर इनकी अलग-अलग आकृतियों का निर्माण किया जाता है, ये आकृतियां बहुत कुछ कहती है। इन आकृतियों के माध्यम से त्योहारों की कहानियां भी कही जाती है।

admin

मांडणा में अभिव्यक्ति की व्यापकता की बात करते हुए उन्होंने कहा कि बारिश और शरद ऋतु के 6 महीनों में सारे वार-त्योहार समाहित है तो फिर मांडना कला ही कैसे छूट सकती है। इसी दौर में रक्षाबंधन, नाग पंचमी, कृष्ण जन्माष्टमी, अनंत चतुर्दशी, पितृ-पक्ष, नवरात्री, दशहरा और दीपावली मनाए जाते हैं इन त्योहारों पर बनाये जाने वाले माण्डने भी विभिन्न नामों से पहचाने जाते हैं। श्रावण मास में राखी, चिड़िया, पांच- सात बावड़ी, सातिया, पग्लया, नाग देवता, श्रवण कुमार आदि मांडणे बनाए जाते हैं। भाद्र पद में गणेश, कुल देवी देवता, परीया माता, पोरिया देवता, पग्लया, भेरू महाराज, सतीमाता आदि के मांडणे बनते हैं।  वंदना कहती हैं कि कुल मिलाकर मांडना लोक जीवन की अभिव्यक्ति है, इसी के माध्यम से लोक जीवन की झांकी और उसका दर्शन हम समझ सकते हैं। लोक माध्यम उन्हीं की तरह बहुत सरल हुआ करते हैं, इसलिए इसमें न संसाधनों की जटिलता होती है और न ही कलात्मकता की।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video