August 2, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार

ताइक्वांडो चैंपियन मनोज शिवहरे को फंसाने के लिए गढ़ी गई थी झूठी कहानी; अदालत ने सभी आरोपों से बरी किया

मुरैना।
ताइक्वांडो चैंपियन एवं इंटरनेशनल कोच मनोज शिवहरे को अदालत ने एक महिला प्लेयर द्वारा लगाए गए बलात्कार समेत कई गंभीर आरोपों से बरी कर दिया है। मुरैना की अपर सत्र न्यायाधीश शिप्रा पटेल की अदालत ने लगभग चार साल पुराने इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत सभी साक्ष्यों और गवाहों के परीक्षण के बाद बीती 11 जून को अपना फैसला दिया। मनोज शिवहरे ने अदालत का आभार जताते हुए उसके आदेश को ‘सत्य की जीत’ बताया। 
बता दें कि नेशनल कोच की हैसियत से मनोज शिवहरे चार वर्ष पूर्व अक्टूबर 2018 में अपने पांच खिलाड़ियों को नेशनल स्पर्धा में खिलाने के लिए महाराष्ट्र के पुणे ले गए थे। इनमें तीन महिला खिलाड़ी और दो पुरुष खिलाड़ी थे। पुणे के एक ओयो होटल में उन्हें ठहराया गया और आयोजकों ने उन्हें एक ही कमरा आवंटित किया था। सभी खिलाड़ी और कोच एक ही कमरे में ठहरे थे। 19 अक्टूबर को मुरैना लौटने के पश्चात महिला खिलाड़ियों में शामिल एक हाईस्कूल की छात्रा और उसके परिजनों ने कोतवाली थाने में मनोज शिवहरे पर कई आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ धारा 376 (2), 294, 506बी, एट्रोसिटी एक्ट समेत पास्को एक्ट की धाराओं के तरह मुकदमा दर्ज कराया था।

इस मामले में पुलिस ने मनोज शिवहरे को गिरफ्तार किया था जिन्हें लंबे समय बाद कोर्ट से जमानत मिल सकी। केस अपर सत्र न्यायाधीश शिप्रा पटेल की अदालत में चला। अदालत ने इस मामले में मामले में पुलिस द्वारा जुटाए गए सभी साक्ष्यों का गंभीरता से परीक्षण किया और प्रतिवादी मनोज शिवहरे की टीम में शामिल अन्य चारों प्लेयर्स की गवाही लेने के बाद बीती 11 जून को अंतिम फैसला दिया। मनोज शिवहरे के पक्षकार एडवोकेट राकेश दुबे ने बताया कि  अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित करने में असफल रहा है। अदालत ने फैसले में यह भी कहा, ‘इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि वादिनी के आचरण को लेकर अभियुक्त (मनोज शिवहरे) के द्वारा वादिनी को डांटा गया हो।’ साथ ही मनोज शिवहरे पर जातिसूचक गालियां देने के आरोप को भी अदालत ने विश्वासयोग्य नहीं माना। अदालत ने मनोज शिवहरे को सभी आरोपों से बरी करते हुए मामले में वादी पक्ष की ओऱ से प्रस्तुत साक्ष्यों को अपीलीय अवधि तक सुरक्षित रखे जाने के आदेश दिए और कहा कि अपील होने की दशा में माननीय न्यायालय के आदेशानुसार उनका निराकरण किया जाए।

 

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