May 15, 2024
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शख्सियत

एक सच्चे योद्धा का जाना…; 1971 के वार-प्रिजनर रहे एयर वाइस मार्शल आदित्य विक्रम पेठिया स्मृति में विशेष

एक योद्धा और साधारण व्यक्ति में बुनियादी फर्क यह होता है कि योद्धा हर चीज को एक चुनौती की तरह लेता है जबकि आधारण व्यक्ति इसे कृपा या अभिशाप समझता है।–डॉन जुआन
नई दिल्ली।
एयर वाइस मार्शल आदित्य विक्रम पेठिया आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके शौर्य की गाथा लंबे समय तक युवा पीढ़ी को ‘सच्चा योद्धा’ होने का पाठ पढ़ाती रहेगी। बीते 11 मार्च को नई दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल में उनका निधन हो गया। वह 1971 का युद्ध लड़ने वाले उन शूरवीरों में हैं जिन्होंने पाकिस्तान के भीतर घुसकर हवाई हमलों से उसके टैंको को ध्वस्त किया। पाकिस्तानी सेना ने उन्हें 5 महीने तक युद्धबंदी बनाकर अमानवीय यातनाएं दीं थीं। उनके अदम्य साहस के लिए भारत सरकार ने 1973 में उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया था।
श्री पेठिया एयर वाइस मार्शल पद से रिटायर होने के बाद भोपाल में ई-7 में अपनी पत्नी श्रीमती गीता पेठिया के साथ रहते थे। श्रीमती गीता पेठिया 1970 के दशक में बास्केटबॉल और वॉलीबॉल की खिलाड़ी रही थीं, जिन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया था। पेठिया के बड़े पुत्र आनंद विक्रम पेठिया इंडियन एयरफोर्स में विंग कमांडर हैं, जबकि छोटा पुत्र अभिषेक विक्रम पेठिया सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और वर्तमान में अमेरिका में रहते हैं।
पिता चाहते थे बेटा बने आईएएस
मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर जिले की गाडरवारा तहसील के गांव साईंखेड़ा में 24 सितंबर, 1943 को एक जमींदार कलचुरी (कलार) परिवार में जन्मे आदित्य विक्रम पेठिया के पिता श्री बसंत राय आईएएस अधिकारी थे। आदित्य विक्रम शुरू से ही होनहार छात्र थे, पिता उन्हें भी अपनी तरह आईएएस अधिकारी बनते देखना चाहते थे, लेकिन आदित्य विक्रम पेठिया ने छात्र जीवन में फौज में भर्ती होने का मन बना लिया था। 1963 में वह फाइटर पायलट के तौर पर भारतीय वायु सेना में शामिल हुए और 1964 में उन्हें कमीशन मिला।
खड़गपुर में मिली पहली पोस्टिंग
पेठिया की पहली पोस्टिंग खड़गपुर में फ्लाइट स्क्वॉड्रन के रूप में हुई जहां वह पुराना ब्रिटिश वैम्पायर्स एयरक्राफ्ट उड़ाते थे। उसके बाद सिलीगुपड़ी में ट्रांसफर हुआ जहां फ्रेंच एयरक्राफ्ट उड़ाने का मौका मिला। 1965 के युद्ध के दौरान वह पूर्वी सेक्टर में तैनात थे। इसके बाद पंजाब के आमदपुर एयरफोर्स स्टेशन में पोस्टिंग जहां से उन्हें 1970 में फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर कोर्स के लिए चुना गया। कोर्स के बाद वह बीकानेर में पश्चिमी सेक्टर की ट्रेनिंग यूनिट में फ्लाइंग स्ट्रक्टर के रूप में तैनात हुए, तब वह फ्रांस निर्मित ‘मिस्टीयर-4ए’ एयरक्राफ्ट उड़ाते थे।
4-5 दिसंबर को लड़ाई का वह दिन
इसी दौरान 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान से युद्ध शुरू हुआ और अगले ही दिन 4 दिसंबर की रात उन्हें पाकिस्तान के चिश्तिया मंडी इलाके में टैंकों को ध्वस्त करने का आदेश मिला। फ्लाइट के दौरान ही उन्हें पता चला था कि बहावलपुर में 15 टैंकों को लेकर एक ट्रेन गुजर रही है। उन्होंने दो बार उड़ान भरकर टारगेट हिट किया और ट्रेन के साथ वहां मौजूद गोला-बारूप का डिपो भी उड़ा दिया। इसके बाद पाकिस्तान की एंटी एयरक्राफ्ट गन को टारगेट करने के लिए उन्होंने फिर उड़ान भरी लेकिन एक गन ने उनके प्लेन को हिट कर दिया। जलते विमान से उन्होंने और उनके साथियों ने अपने आपको इजेक्ट किया और पैराशूट लेकर कूद पड़े। जहां वे गिरे, वह पाकिस्तान का इलाका था। पाकिस्तानी सेना ने सभी को बंधक बना लिया।
झेलनी पड़ीं अमानवीय यातनाएं
पेठिया की पत्नी श्रीमती गीता ने एक इंटरव्यू में बताया था कि तब उनकी सगाई हो चुकी थी। उनके बंधक बनाए जाने के नौ दिन बाद रेडियो पर इसकी सूचना मिली थी। इस दौरान उन्हें बहुत प्रताडऩा दी गई। मुझे चिंता तो थी लेकिन हमेशा उम्मीद थी कि वे लौटकर आएंगे। पूरे पांच महीने बाद 8 मई 1972 को पाकिस्तान ने उन्हें रेडक्रॉस के सुपुर्द किया। उस समय उनकी रिब्स टूटी हुई थीं, मल्टीपल फ्रैक्चर थे और लंग्स में इन्फेक्शन भी था। लंबे उपचार के बाद पूरी तरह ठीक होने के बाद वह पुनः एय़रफोर्स की सेवा में सक्रिय हो गए। 26 जनवरी, 1973 को भारत सरकार ने उन्हें वीर चक्र प्रदान किया, और इसी वर्ष मंगेतर गीता से उनका विवाह हुआ जो स्वयं भी फौज की पृष्ठभूमि से थीं। गीता के पिता एयरफोर्स में थे, और उनके तीनों भाई भी। उन्होंने पूरी जिंदगी एक फौजी की पत्नी होने के कर्तव्य को कुशलता और तत्परता से निभाया।
रिटायरमेंट के बाद भी दिल से रहे फौजी
आदित्य विक्रम पेठिया को भारत सरकार ने 1979 में इंस्ट्रक्टर के रूप में इराक भेजा था जहां वह 1981 तक रहे और इस दौरान ईरान-इराक वार को नजदीकी से देखा। इसके बाद उन्हें बेसिक फ्लाइंग ट्रेनिंग स्कूल का पहला कमांडेंट होने का गौरव प्राप्त हुआ। 2001 में रिटायरमेंट के ‘एयर फोर्स नेवल हाउसिंग बोर्ड’ के महानिदेशक के पद पर थे। रिटायर होने के बाद आदित्य विक्रम पेठिया भोपाल में परिवार के साथ रहते थे। वह ‘पूर्व सैनिक सेवा परिषद’ से जुड़े थे और अनाथालयों व वृद्धाश्रमों में नियमित सेवा कार्य करते रहे।
परिवार के कई लोग एयरफोर्स में
करीब दो वर्ष पूर्व दिए एक इंटरव्यू में आदित्य विक्रम पेठिया ने बंधक बनाए जाने की घटना को याद करते हुए बताया था कि पाकिस्तान मे उन्हें छह दिन बाद पहली बार खाना दिया गया था। उन्हें घुप अंधेरी कोठरी में रखा गया जहां 13-14 दिन बाद पहली बार सूरज की रोशनी देखी थी। इस प्रताड़ना के बावजूद उनके परिवार से कई लोग फोर्स मे हैं। बेटा एयरफोर्स में, भतीजा और पोता भी एयरफोर्स में है।
मलाल नहीं, बस शिकायत रही यह
उन्होंने बताया था कि 1971 की लड़ाई के दौरान राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री बरकतुल्ला खान ने घोषणा की थी कि जिस भी फौजी को वीरता पुरस्कार मिलेगा, उसे दस एकड़ जमीन दी जाएगी। मध्य प्रदेश की सरकार ने 25 एकड़ जमीन देने का वादा किया था। रिटायरमेंट के 21 साल बाद भी 25 एकड़ तो छोड़िये तो 25 फिट जमीन तक नहीं दी गई। उन्होंने कहा था कि हमें कोई मलाल नहीं है, कोई शिकायत नहीं, कोई लालसा नहीं, हम तो देश के लिए लड़े थे, हमने तो ऐसा नहीं चाहा था, लेकिन सरकारों को इस तरह की घोषणाएं सोच-समझकर करनी चाहिए।

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