शिवहरे वाणी नेटवर्क
नई दिल्ली। (12/01/2018)
सीए राजीव जायसवाल पेशे से भले ही चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, लेकिन उनका मन बहियों के उलझाऊ जोड़-गुणा से कोसों दूर हैं। उनके कवि होने की शायद यही सबसे बड़ी योग्यता है। उनकी तीसरी काव्यकृति ‘मन वहीं खड़ा रहा‘ का लोकार्पण नई दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे 26वें विश्व पुस्तक मेले के ‘लेखक मंच’ बीते रविवार को हुआ । सजग प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘मन वहीं खड़ा रहा‘ में 47 कविताएं है जिसमें श्री जायसवाल ने जीवन के यथार्थ का सरल शब्दों में सजीव चित्रण किया है।
लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता विख्यात साहित्यकार डॉ. अरुण प्रकाश ढौंडियाल ने की। "सजग समाचार" साप्ताहिक के संपादक शिव सचदेवा, रेडियो में अधिकारी अलका सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विवेक गौतम और व्यंग्यकार राजन पाराशर जैसी साहित्य से जुड़ी शख्सितयों ने समारोह को गरिमा प्रदान की। ‘मन वहीं खड़ा रहा‘ की आमुख समीक्षा की लेखिका अलका सिंह ने कवि और कृति का परिचय दिया।
‘मन वहीं खड़ा रहा‘ सही मायने में सच्ची कविताओं का संकलन है, वह इसलिये कि ये कविताएं वास्तव में कवि के संवेदनशील, भावुक, निर्विकार और चिंतनशील मन की अभिव्यक्तियां हैं। कवि के जिस मन में सवाल उठते है, वही मन खुद ही उनके जवाब तलाशने का प्रयास करता है।
उनकी एक कविता की पंक्तियां देखियेः-
तुम वही हो,
मैं वही हूं
कुछ कहीं पर
खो गया है,
जागता था जो
हमारे बीच
जैसे सो गया है
यह तुम्हें क्या हो गया है
यह मुझे क्या हो गया है
काव्यकृति का शीर्षक ही इतना रोचक है कि पाठकों को स्वतः पढ़ने के लिए प्रेरित करता है। मन की प्रवृति चलायमान होती है, लेकिन कवि का ‘मन वहीं खड़ा’ है यानी उसे स्थिरता का सौभाग्य प्राप्त है और इसलिए वह जीवन की हर स्थिति में, हर पढ़ाव पर मन के हर भाव को बड़ी सूक्ष्मता से विश्लेषित कर पाता है। कवि गोपालदास नीरज की कविता है, ‘मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य’। यह काव्य-संकलन सीए राजीव जायसवाल के कवि होने की ‘सौभाग्य यात्रा’का तीसरा पढ़ाव है। सीए राजीव जायसवाल की इससे पहले इससे दो काव्यकृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं, ‘ईश्वर से संवाद’ और ’माधो हम तेरे खेल खिलौने’। दोनों को पाठकों ने काफी पसंद किया था, और अब यह तीसरी कृति भी पाठकों को प्रभावित करने में सक्षम है
गाजियाबाद के वैशाली में रहने वाले श्री जायसवाल एक प्रतिष्ठित चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं और ‘जायसवाल एसोसिएट्स’ के नाम से उनकी सीए फर्म है। उनके पिता श्री वेदकुमार जायसवाल केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारी के रूप में रिटायर हुए। वह कलचुरी समाज में एक जाना-माना नाम हैं और ‘जायसवाल चेतना’ पत्रिका भी निकालते हैं। उनकी माताजी श्रीमती हरकुमारी जायसवाल (सेवानिवृत्त उप-प्रचार्य) दिल्ली में कलचुरी समाज की पहली स्नातक हैं। इस लिहाज से शब्दों को चुनने-बुनने के संस्कार उन्हें परिवार से ही मिले हैं। श्री जायसवाल की धर्मपत्नी श्रीमती वंदना जायसवाल सुशिक्षित और धार्मिक विचारों वाली महिला हैं जो श्री जायसवाल की साहित्य-यात्रा की प्रेरक शक्ति भी है। ‘शिवहरे वाणी’ श्री जायसवाल को उनकी तीसरी काव्यकृति के विमोचन की बधाई देती है और उनकी दीर्घायु व स्वस्थ जीवन की कामना करती है।
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