August 3, 2025
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार समाज

हैहयवंश और माँ नर्मदा का है जन्म-जन्मांतर का अटूट संबंध, आज मां नर्मदा जयंती पर विशेष आलेख

सनातन हिंदू धर्म में नदियों को माता का स्थान दिया गया है और इनको पवित्र मानकर पूजा जाता है। हमारे बहुत सारे तीर्थ नदियों के किनारे पर स्थित है। पर्व विशेष पर नदी के जल में स्नान, पूजन, दान और मृतक के दाह-संस्कार और मोक्ष प्राप्ति के कर्मकांड भी नदी घाट पर ही संपन्न होते है। सनातन हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और विशाल कुंभ मेला भी नदियों के तट पर संपन्न होता है। हमारे धर्म ग्रंथ और पुराणों में जीवनदायिनी  नदियों का गुणगान किया गया है। नदियों के जल में स्नान सें शाप और पाप मुक्ति की कामना भी सनातन हिंदू धर्म का अभिन्न अंग है।
हैहयवंशी क्षत्रिय कलचुरि, कलाल, कलार, कलवार के पितृ पुरुष और आराध्य, हैहय क्षत्रिय वंश के कुलदीपक और हमारे पूर्वज भगवान श्री सहस्रार्जुन का और हैहयवंश का पावन सलिला माँ नर्मदा के साथ जन्म-जन्मांतर का अटूट संबंध है।
कहा जाता है कि हैहयवंश कुलोत्पन्न महाराजा और भगवान श्री सहस्रार्जुन के पूर्वज श्री माहिष्मान ने ही माँ नर्मदा के तट पर माहिष्मती पुरी की स्थापना की थी। भगवान श्री सहस्रार्जुन ने अपने साम्राज्य की राजधानी माहिष्मती को बनाया था। कुछ लोग मध्यप्रदेश के महेश्वर और कुछ मध्यप्रदेश के मंडला को माहिष्मती मानते है। दोनों ही नगर माँ नर्मदा के तट पर बसे है। मंडला के राजराजेश्वर मंदिर में भगवान श्री सहस्रार्जुन की खुदाई में प्राप्त सुंदर, आकर्षक, पुरातन प्रतिमा स्थापित है।
सप्तद्विपेश्वर सम्राट श्री कार्तवीर्य सहस्रार्जुन और लंकापति दशानन रावण का युद्ध भी माँ नर्मदा के तट ही हुआ था जिसमें भगवान श्री सहस्रार्जुन ने रावण को पराजित कर अपनी राजधानी माहिष्मती की बंदीगृह में रखा था। इसी प्रसंग का संदर्भ माता जानकी की खोज में गए रामदूत महावीर हनुमान लंका में रावण की सभा में देकर उसका गर्वहरण करने का उल्लेख हमारे पवित्र धर्मग्रंथ रामचरितमानस के सुंदरकांड में गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस प्रकार किया है…
“जानउ मैं तुम्हरी प्रभुताई।
सहसबाहु संग परि लड़ाई॥”
भगवान श्री सहस्रार्जुन के वीर प्रतापी वंशजों ने ही कलचुरि राजवंश की स्थापना की और कलचुरि संवत का प्रारंभ कर आर्यावर्त के बहुत बड़े भूभाग पर 1200 वर्ष शासन किया।
आज कलचुरि संवत् 1775 माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथी, शनिवार, दिनांक 28 जनवरी 23 को हैहयवंशियों के लिए परम पावन, जिसके दर्शन मात्र से पुण्य प्राप्त होता है। ऐसी पुण्यदायिनी माँ नर्मदा का उत्पत्ति दिवस, अवतरण दिवस है।
पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती।
ग्रामेवा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा।
त्रिभि:सारस्वतं पुण्यं सप्ताहेनतुयामुनम्।
सद्य:पुनातिगाङ्गेयंदर्शनादेवनर्मदाम्।
पुराणों के अनुसार नर्मदा की उत्पत्ति भगवान शंकर की देह से हुई थी इसलिए इसका कंकर-कंकर भगवान शंकर की तरह पूजनीय है। माँ नर्मदा गायत्री मंत्र इस प्रकार है-
“नर्मदायै विद्महे मेकलकन्यायै धीमहि। तन्नो रेवा प्रचोदयात्।”
नर्मदा जयंती के पावन अवसर पर सभी हैहयवंशियों और सहस्रार्जुन को अपना आराध्य माननेवालों को हार्दिक मंगलकामनाएं। माँ नर्मदा आपके सभी मनोरथ पूर्ण करें।
ॐ स्वस्ति अस्तु।
मोक्षदायिनी सरिता, माँ रेवा, चित्रोत्पला, हे तमसा,
हे जीवनदायिनी शोण माँ अमृता मुरला हे दक्षिणगंगा।
कल-कल, छल-छल कर बहती माँ सबको जीवन देने वाली,
हे उमारुद्रांगसंभूता बालुवाहिनी महानद हे मात नर्मदा॥

©- पवन नयन जायसवाल
वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष- अखिल भारतीय जायसवाल (सर्ववर्गीय) महासभा
संयोजक- भगवान श्री सहस्रार्जुन जन्मोत्सव जागरूकता अभियान

संपर्क-  9421788630
pawannayanjaiswal@gmail.com
अमरावती, विदर्भ, महाराष्ट्र
©- कापीराइट कानून के अंतर्गत सर्वाधिकार सुरक्षित
 

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