आगरा।
आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।।
कहने को तो इस एक श्लोक में ही पूरा रामकथा समाहित है लेकिन रामकथा के मर्म को समझने के लिए और इसकी शिक्षा को जीवन में उतारने के लिए इसे विस्तार से पढ़ना-सुनना जरूरी है। आगरा का शिवहरे समाज राधाकृष्ण मंदिर में बीते एक सप्ताह से श्योपुर से आए स्वजातीय संत श्री अभिरामदासजी महाराज (श्री बाबूलाल शिवहरे) के श्रीमुख से रामकथा का श्रवण कर रहा है, जो आग (5 अप्रैल) राजा राम के राज्याभिषेक के साथ रामकथा समाप्त हो गई है। कल 6 अप्रैल को हवन-पूजन और भंडारे के साथ इसका विधिवत समापन होगा। मुख्य आयोजक श्री भगवान स्वरूप शिवहरे ने सभी स्वजातीय बंधुओं से दोपहर 12 बजे से अपराह्न 3 बजे तक चलने वाले भंडारे में सपरिवार पधाकर भोजन-प्रसादी ग्रहण करने का अनुरोध किया है।
आज रामकथा के अंतिम दिन राधाकृष्ण मंदिर का बेसमेंट हॉल स्वजातीय श्रोताओं से लगभग भरा हुआ था। संत श्री अभिरामदास ने आज लंका दहन, लंका विजय और राजा राम के राज्याभिषेक प्रसंगों का मार्मिक वर्णन किया। उन्होंने शिवहरेवाणी को बताया कि रामकथा जीवन का ग्रंथ है, जो प्राणी को संसारिक जीवन में उनके कर्तव्यों का बोध कराता है। इससे शिक्षा मिलती है कि हमें राम की तरह अपने माता-पिता, भाई-बंधुओं, मित्रों और गुरुजनों आदि की भावनाओं को पूरा-पूरा सम्मान करना चाहिए। इस कथा से हमें साहस और बुधि से प्रत्येक कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है। विपरीत परिस्थितियों में धैर्य बनाए रखना भी इस कथा के माध्यम से हम सीखते हैं। उन्होंने कहा कि आगरा के स्वजातीय समाज ने प्रेमभाव और एकाग्रता से रामकथा का श्रवण किया है, उससे बुद्धीजीवी वह प्रभावित हुए हैं। आज अंतिम दिन खासी संख्या में शिवहरे समाज बंधु उपस्थित रहे।
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