अहमदाबाद।
भाषा औऱ संस्कृति के लिहाज से देश के अलग अलग हिस्सों से अहमदाबाद में आ बसे जायसवाल समाज ने इस महानगर में अपनी विशेष पहचान बनाई है। मुख्य रूप से राजस्थान, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और कोलकाता से आए जायसवाल परिवारों ने जहां अपनी भाषायी और सांस्कृतिक पहचान को कायम रखा है, वहीं गुजराती भाषा-संस्कृति को भी बखूबी अपनाया है। बीते नवरात्र में जायसवाल समाज ने यहां दुर्गा पूजा के पंडाल बनाए तो गरबा का आयोजन भी किया।
अहमदाबाद के वस्त्राल स्थित द्वारकेश फार्म पर जायसवाल समाज के सर्जक गरबा ग्रुप द्वारा आयोजित गरबा समारोह में जायसवाल पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने ठेठ गुजराती अंदाज में सामूहिक गरबा किया। उनके उत्साह और उमंग की तो क्या ही कहा जाए… शाम आठ बजे से रात डेढ़ बजे तक वे ‘बिना रुके-बिना थके’ गरबा करते रहे। द्वारकेश फार्म के विशाल प्रांगण में ढाई से तीन हजार स्वजातीय लोगों की मौजूदगी अहमदाबाद में जायसवाल समाज की सांस्कृतिक चेतना की खूबसूरत तस्वीर थी।
सर्जक गरबा ग्रुप के संयोजकों में शामिल युवा समाजसेवी श्री अनिल जायसवाल ने शिवहरेवाणी को बताया कि सर्जक गरबा ग्रुप की ओर से यह पांचवा गरबा रास आयोजन है। इसमें पूरे अहमदाबाद से जायसवाल समाज के लोग बड़े उत्साह से भाग लेते हैं। बीते रविवार को जिस द्वारकेश फार्म में जायसवाल समाज का गरबा हुआ, उसी शाम आसपास के तीन अन्य फार्म हाउसों पर पाटीदार समेत अलग-अलग गुजराती समाज के गरबा भी हो रहे थे। मजे की बात यह है कि रात एक बजे जब द्वारकेश फार्म के प्रांगण में गुजराती और हिंदी गीत-संगीत पर गरबा अपने शबाब पर था, अन्य फार्म हाउस अंधेरे और सन्नाटे में डूब चुके थे।
अनिल जायसवाल ने बताया कि अहमदाबाद में देश के अलग-अलग हिस्सो से जायसवाल आकर बसे हैं। सबसे ज्यादा जायसवाल राजस्थान से आए हैं जो भौगोलिक निकटता के साथ ही भाषा और संस्कृति के लिहाज से भी गुजरात के काफी नजदीक है। लिहाजा यहां से आए जायसवाल परिवार अब पूरी तरह से गुजराती रंग-ढंग में रम चुके हैं। जाने-माने समाजसेवी एवं बिल्डर श्री मदनलाल जायसवाल अहमदाबाद में राजस्थान से आए जायसवाल समाज का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं दूसरे बड़ी संख्या पूर्वी उत्तर प्रदेश से आए जायसवाल परिवारों की है। अनिल जायसवाल बताते हैं कि बड़े-बुजुर्गों से उन्होंने जो कुछ सुना-जाना है, उसके मुताबिक पूर्वी उत्तर प्रदेश से सबसे पहले रायबरेली जिले के कुछ जायसवाल परिवारों ने अहमदाबाद में अपने ठिकाने बनाए थे। वे सालों पहले कारोबार के सिलसिले में यहां आए। अब इन परिवारों की चौथी-पांचवी पीढ़ी अहमदाबाद में हैं। इन लोगों से बातचीत में पता चला कि नई पीढ़ी के ज्यादातर लोग कभी रायबरेली नहीं गए, और कई परिवार तो ऐसे हैं जिनका रायबरेली में अब कुछ रहा भी नहीं। गुजरात के शिक्षा विभाग से अवकाशप्राप्त अध्यापक श्री शशिकांत जायसवाल के मुताबिक, पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर से आए जायसवाल परिवारों की संख्या संभवतः सबसे ज्यादा होगी। इसके बाद वाराणसी का नंबर आता है। अहमदाबाद में जायसवाल समाज के सिरमौर श्री पन्नालाल जायसवाल भी मूल रूप से वाराणसी के ही हैं। श्री शशिकांत जायसवाल बताते हैं कि वह तो हर साल रक्षाबंधन पर वाराणसी जाते हैं लेकिन उनके बच्चे वहां नहीं जाना चाहते हैं। वह कहते हैं कि अहमदाबाद एक शानदार शहर है जहां सबका स्वागत है, जो यहां आता है, यहीं का होकर रह जाता है।
सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय युवा श्री अनिल जायसवाल बताते हैं कि उनका परिवार करीब बीस वर्ष पहले कोलकाता से अहमदाबाद आया था। कोलकाता में उनका टूल्स का काम था। अहमदाबाद आकर उनके पिता ने शुरू में वही काम किया। कोलकाता से सामान मंगाते थे और अहमदाबाद में बेचते थे। एक छोटी सी दुकान से यह काम शुरू किया था। आज उनके परिवार का अहमदाबाद में समृद्ध कारोबार है। हालांकि अहमदाबाद में कोलकाता से आए परिवारों की संख्या बहुत अधिक नहीं है।
अनिल कहते हैं कि बंगाली, हिंदी, अंग्रेजी तो वह पहले ही बोल लेते थे, अब गुजराती भी फर्राटे से बोलते हैं। यहां उनके स्थानीय गुजराती मित्रों की लंबी फेहरिस्त है। अनिल जायसवाल बंगाली समाज के एक संगठन से भी जुड़े हैं जो हर शारदीय नवरात्र को दुर्गा पूजा पंडाल स्थापित कराता हैं। इस दुर्गा पंडाल में कोलकाता, बिहार और पूर्वी यूपी से आए कई जायसवाल परिवार पूजा अर्चना करने आते हैं। वहीं एक दर्जन से अधिक जायसवाल युवाओं ने सर्जक गरबा ग्रुप का गठन किया है जिसके बैनर पर वे हर नवरात्र में गरबा का बड़ा आयोजन कराते हैं। हर साल की तरह इस साल भी यह आयोजन जोर-शोर से हुआ।
एक और रोचक बात, आम गुजराती की तरह ही जायसवाल समाज के लोग भी अपने नाम के साथ पिता का नाम लगाने लगे हैं। अनिल जायसवाल अपना नाम अनिल सत्यनारायण जायसवाल लिखते हैं। सत्यनारायण उनके स्वर्गवासी पिता का नाम है। गरबा आयोजन के बैनर पर सर्जक गरबा ग्रुप के संयोजकों के जो नाम लिखे थे, वे भी इसी प्रकार थे। सर्जक गरबा ग्रुप के संयोजकों में अनिल सत्यनारायण जायसवाल के अलावा उपेंद्र शिवपूजन जायसवाल, प्रदीप छोटेलाल गुप्ता, अंकित रमेशचंद्र जायसवाल, विकास कालीचरण जायसवाल, अमित प्रेमचंद शाह, ओमप्रकाश (पप्पूभाई) द्वारिका प्रसाद जायसवाल, पंकज श्यामलाल जायसवाल, विजय (सोनू) नन्दूभाई जायसवाल, बजरंग केशवप्रसाद जायसवाल, रमाशंकर मुन्नालाल जायसवाल, प्रमेश भवानीभाई जायसवाल, जिग्नेश अनुपमभाई जायसवाल, दयाशंकर गयाप्रसाद जायसवाल शामिल हैं।
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