कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी, कलचुरि संवत् 1775, सोमवार 31 अक्टूबर 22 भगवान श्री सहस्रार्जुन जयंती है। हैहयवंशी क्षत्रियों द्वारा इसे देशभर में भक्तिभाव और धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान श्री सहस्रार्जुन के मंदिरों में हवन-पूजन, शोभायात्रा का आयोजन किया जाता है। आज सहस्रार्जुन जयंती पर धन्वन्तरि पीठम्, किलुपुडुपेठ, वलाजपेठ, तमिलनाडु में भगवान् श्री सहस्रार्जुन के मंदिर में स्थापित पुरातन प्रतिमा का सहस्रकलशाभिषेकम् और यज्ञ ब्राह्मण पंडित, पुरोहितों द्वारा किया जाएगा।
श्री सहस्रार्जुन प्रतिमा
श्री राजराजेश्वर मंदिर, मंडला (मध्यप्रदेश) में स्थापित श्री सहस्रार्जुन की पुरातन प्रतिमा 3×2 फीट पाषाण खंड में कमलदल पर पद्मासन में बैठे सिंहासनारुढ़, शीश में किरीट, कंठ में हारों का अलंकरण है। सिर के ऊपर क्षत्र विराजित है। प्रतिमा के दाएं उर्द्ध भाग में नृत्य की मुद्रा में परिचारिका तथा बाएं अधोभाग में सहायक बैठा है। सिंहासन के स्तम्भों एवं शीर्ष भाग में कुछ प्रतिमाएं है।
भगवान श्री दत्तात्रेय के शिष्य श्री सहस्रार्जुन
हैहय क्षत्रिय वंश के कुलदीपक, कलचुरियों (कलाल, कलार, कलवार) के आराध्य, भगवान श्री विष्णु के सुदर्शन चक्र अवतारी, महाराजा कृतवीर्य और महारानी पद्मिनी के सुपुत्र, भगवान श्री दत्तात्रेय के प्रिय शिष्य, नर्मदा तट पर अपनी राजधानी माहिष्मती (कुछ इसे महेश्वर, जि. खरगोन, म.प्र. तो कुछ मंडला, जि मंडला, म.प्र. मानते है) के कारागृह में दशानन लंकेश रावण को बंदी बनाकर रखनेवाले चक्रवर्ती महाराज, कई राजसुय यज्ञ करनेवाले बाहुबली, सप्तदीपेश्वर, हैहयवंशी सम्राट, तंत्र-मंत्र के जनक भगवान श्री राजराजेश्वर अर्जुन कार्तवीर्य (सहस्रार्जुन / सहस्रबाहु / कार्तवीर्यार्जुन) का जन्म कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था इसलिए इस सप्तमी को श्री सहस्रार्जुन सप्तमी कहा जाता है।
श्री अर्जुन कार्तवीर्य, अत्रिकुलोत्पन्न भगवान दत्तात्रेय जी के विशेष कृपापात्र, प्रिय शिष्य थे। भगवान दत्तात्रेय ने श्री अर्जुन कार्तवीर्य की सेवा से प्रसन्न होकर उनको सर्वाधिक सिद्धि एवं वरदान दिए थे। महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण अर्जुन जो कार्तवीर्य कहलाते थे उनको गुरु भगवान श्री दत्तात्रेय ने ही सहस्र (हजार) भुजाधारी होने का वरदान दिया था जिसके बाद से श्री अर्जुन कार्तवीर्य को श्री सहस्रार्जुन और श्री सहस्रबाहु कहा जाने लगा। भगवान श्री सहस्रार्जुन, हैहयवंशी क्षत्रिय कलाल, कलार, कलवार, कलचुरियों के आराध्य भी है और कुलदीपक भी है। जिनकी महिमा का वर्णन लगभग सभी पुराणों में आता है।
सुंदरकांड मे सहस्रार्जुन
गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस के सुंदरकांड में दोहा क्रमांक 21 के बाद एक चौपाई है। जब श्री राम के सेवक बजरंगबली श्री हनुमान को बंदी बनाकर लंकेश की सभा में उपस्थित किया जाता है तब श्री हनुमान दशानन रावण की सभा में रावण का गर्वहरण करते हुए कहते है-
जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई॥
समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥
जिसका भावार्थ इस प्रकार है- मैं तुम्हारी प्रभुता को खूब जानता हूँ सहस्रबाहु से तुम्हारी लड़ाई हुई थी और बालि से युद्ध करके तुमने यश प्राप्त किया था। हनुमान जी के (मार्मिक) वचन सुनकर रावण ने हँसकर बात टाल दी।
श्री सहस्रार्जुन सप्तमी
हैहयवंश के कुलदीपक भगवान श्री सहस्रार्जुन का जन्म कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। सनातन हिंदू धर्म के महापर्व दीपावली के बाद गणना की सातवीं तिथि को भगवान श्री सहस्रार्जुन का जन्मोत्सव बहुत ही श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस तिथि को श्री सहस्रार्जुन सप्तमी कहा जाता है।
हैहयवंश
देवी भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान श्री विष्णु ने क्रोध में जगतजननी माता लक्ष्मी को जो अपने भाई, भगवान सूर्यदेव के रथ के वाहन अश्वरुप उच्चै:श्रवा के सुंदर रुप पर मुग्ध होकर ध्यान मग्न हो गई थी (देवताओं और राक्षसों द्वारा समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में ही अश्वरुप उच्चै:श्रवा और माता लक्ष्मी का भी प्राकट्य हुआ था।) को अश्वरुपा होने का शाप दे दिया था। इस शाप से देवी लक्ष्मी को मुक्त करने के लिए भगवान श्री विष्णु को भी पृथ्वी पर अश्वरुपा में जन्म लेना पड़ा। शापमुक्ति के बाद माता लक्ष्मी ने एक बालक को जन्म दिया और उसका नाम एकवीर रखा गया। भगवान श्री विष्णु लालन-पालन के लिए बालक को चन्द्रवंशी राजा तुर्वसु को सौंपकर माता लक्ष्मी के साथ वैकुण्ठ धाम लौट गए। यही बालक एकवीर हैहय कहलाए। एकवीर हैहय से ही हैहयवंश का प्रारंभ हुआ और इनके वंश में ही भगवान श्री सहस्रार्जुन का जन्म हुआ।*
विष्णु पुराण के ग्यारहवें अध्याय के अनुसार हैहयवंश की वंशावली भगवान श्री सहस्रार्जुन तक इस प्रकार है- भगवान श्री विष्णु के पुत्र हैहय – धर्म – धर्मनेत्र – कुन्ति – सहजित – माहिष्मान (माहिष्मती पुरी के निर्माता) – भद्रश्रेण्य- दुर्दम – धनक (कनक) – कृतवीर्य – सहस्रार्जुन हुए।
हैहयवंश भगवान श्री विष्णु और जगतजननी माता लक्ष्मी की संतान महाराजा एकवीर हैहय से प्रारंभ हुआ स्वतंत्र वंश है। जानकारी के अभाव में कुछ लोग हैहयवंश को चन्द्रवंश की तो कुछ लोग यदुवंश की शाखा समझते है जो गलत है। हैहयवंश एक स्वतंत्र वंश है। चन्द्रवंश और यदुवंश से इसका कोई रक्त संबंध नहीं है। हैहयवंशी देवताओं की संतान हैहय के वंशज है। देवी भागवत पुराण इसका प्रमाण है।
कलचुरि संवत्
कालांतर में श्री सहस्रार्जुन के वीर, प्रतापी वंशजो ने कलचुरि राज की स्थापना कर कलचुरि संवत् का प्रारंभ किया और 1200 साल तक आर्यावर्त के कई स्थानों पर शासन किया। दीपावली प्रतिपदा तिथि, (प्रथमा / पाडवा / एकम) बुधवार दिनांक 26 अक्टूबर 2022 से कलचुरि संवत 1775 का प्रारंभ हो चुका हैं।
- पवन नयन जायसवाल
राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष- अखिल भारतीय जायसवाल (सर्ववर्गीय) महासभा
संयोजक- भगवान श्री सहस्रार्जुन जन्मोत्सव जागरूकता अभियान
अमरावती, विदर्भ, महाराष्ट्र
9421788630
pawannayanjaiswal@gmail.com
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