हमारे सनातन हिन्दू धर्म का कोई संस्थापक नहीं है। हजारों वर्षों से ऋषि-मुनियों ने ध्यान, योग, तप, साधना के बल पर जो ज्ञान अर्जित किया, मानव समाज उसी को अपने आचरण में उतारता चला गया। इसी परिष्कृत जीवन शैली के आधार पर हमारी संस्कृति और परंपरा का निर्माण होता चला गया और हम उसको धारण करते रहे, यही हमारा सनातन हिन्दू धर्म हो गया।
आर्यावर्त के विशाल भू-भाग पर ज्ञानियों की कोई कमी नहीं थी। इसलिए हमारे धर्मग्रंथों में एक ही घटना के अलग-अलग संदर्भ के साथ कई-कई उदाहरण सामने आते है। हजारों साल पहले से चले आ रहे इन पात्रों और घटनाओं में कई बार विरोधाभास भी नजर आता है, जैसे आचार्य चाणक्य ने अपने अपमान के बाद भी हथियार नहीं उठाया और ना ही राजा बने क्योंकि सनातन हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार वर्तमान व्यवस्था के आधार पर ब्राह्मण को इसका अधिकार ही नहीं है। हमारे धर्मग्रंथों जो ब्राह्मणों (जो परम ज्ञानी, ब्रह्म ज्ञानी है) के द्वारा ही रचित है, के अनुसार शस्त्र धारण करने वाला क्षत्रिय कहलाता है तो फिर यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है कि परशु धारी राम ब्राह्मण कैसे हुए ? इस प्रमाण से तो परशुराम क्षत्रिय सिद्ध हो जाते है। और बात अगर आततायियों के विनाश की ही थी, तो परशुराम के रहते राक्षसों और दानवों के वध के लिए ऋषि मुनियों को क्षत्रिय किशोर राजकुमार राम-लक्ष्मण की आवश्यकता क्यों पड़ी? और परशुराम ने अपने जीवन में कितने दानवों और राक्षसों का विनाश किया? सीता स्वयंवर के समय भी शिवधनुष को लेकर परशुराम, लक्ष्मण विवाद में भी लक्ष्मण के सामने परशुराम की उग्रता, वीरता प्रभावहीन ही दिखाई देती है। सीताहरण के समय भी रावण जैसे आततायी को अपराध का दंड देने वह नहीं आते।
परशुराम की वीरता का गुणगान करने वाले अर्जुन कार्तवीर्य सहस्रार्जुन को पराजित करने और पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों का समूल नाश का उदाहरण तो देते हैं लेकिन परशुराम की अन्य कोई शौर्य गाथा पर गहन चुप्पी साध लेते हैं उसी प्रकार कार्तवीर्यार्जुन के आततायी होने का कोई उदाहरण या प्रमाण उनके पास नहीं होता। एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी के अश्व-अश्वी रुप से शापमुक्ति के बाद जन्में बालक एकवीर हैहय के वंशज और सुदर्शन चक्र अवतारी कार्तवीर्यार्जुन को जिनके लिए पुराणों में उल्लेख तंत्र-मंत्र-यंत्र के जनक कहकर किया गया है, उनके नामस्मरण मात्र से गुमी हुई या नष्ट धन भी प्राप्त हो जाता था। मंत्र :-
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते॥
जो सप्तद्वीपेश्वर चक्रवर्ती सम्राट था, जिसके राज्य में कभी चोरी नहीं हुई, अकाल नहीं पड़ा जो जब चाहे वर्षा करवाने में सक्षम था वह प्रजापालक राजा जिसे देव, भगवान कहा गया, खुद ही चोरी करेगा? वो भी कामधेनु गाय की? जो खुद सहस्रों राजसुय यज्ञ कर ब्राह्मणों को सहस्रों स्वर्ण मुद्राए दान करता था, वह खुद राजा होकर एक ब्राह्मण की गाय चुराने जाए और उसके स्वामी ब्राह्मण की हत्या कर दे? जिस भृगु कुल के परशुराम थे, वह भृगु कुल के ब्राह्मण ही कार्तवीर्य सहस्रार्जुन के कुल पुरोहित थे और सहस्रार्जुन के दान पर ही जीवन यापन करते थे और सहस्रार्जुन की स्तुति करते थे।
एक प्रश्न इक्कीस बार क्षत्रियों को समूल नाश करने को लेकर भी है कि एक बार समूल (मूल सहित) नाश के बाद क्षत्रिय इक्कीस बार पृथ्वी पर कैसे अवतरित हुए? और आज तक अपना अस्तित्व बनाए हुए है। और अगर परशुराम भगवान श्री विष्णु के अवतार थे तो वे खुद अपने ही वंश के, अपने ही चक्रावतार से और उसके वंशजों से इतनी शत्रुतापूर्ण व्यवहार क्यों करते?
हैहयवंशी क्षत्रियों के कुलदीपक और आराध्य भगवान कार्तवीर्य सहस्रार्जुन के उल्लेख और उनकी महत्ता का गुणगान पुराणों में तो है ही, गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री राम कथा रामचरितमानस के सुन्दर काण्ड में भी रामभक्त हनुमान का दशानन लंकेश की राजसभा में रावण को यह याद दिलाना कि माहिष्मती सम्राट ने तुमको पराजित कर बंदी बनाया, कारागृह में रखा था यह कहकर गर्वहरण करते हुए सहस्रार्जुन का गुणगान किया गया हैः-
“जानऊ मैं तुम्हारी प्रभुताई, सहसबाहु संग परिणय लड़ाई”
रामचरितमानस के बालकाण्ड में भी तुलसीदास सहस्रार्जुन को महावीर कहते हुए लिखते है-
“हरि हर जस राकेश राहु से,
पर अकाज भट सहसबाहु से।”
हमें यह बात सदा ध्यान रखनी चाहिए कि परशुराम के कारण हमें ब्राह्मणों पर अपने क्रोध का प्रकटीकरण नहीं करना चाहिए। हमें कभी यह नहीं भूलना चाहिए कि कार्तवीर्यार्जुन का गुणगान भी ब्राह्मणों द्वारा रचित धर्मग्रंथों में किया गया है। मेरी यह बात हैहयवंशियों को बुरी लग सकती है लेकिन मेरा यह स्पष्ट मत है कि जब हम अपने अनुकूल नहीं होने पर किसी से शत्रुता रखते हैं तो श्रीसहस्रार्जुन की महत्ता और गुणगान पर हमने उनके प्रति नतमस्तक भी होना चाहिए। पुराणकाल के पात्र और संदर्भ को लेकर आज शत्रुता नहीं की जा सकती। हजारों वर्ष के अंतराल में जाने-अनजाने ही बहुत कुछ बदलाव आ जाता है। हमें इसको सहर्ष स्वीकार कर इसका अध्ययन, मनन, चिंतन कर सकारात्मकता बनाई रखनी चाहिए। हम हैहयवंशियों की यह जवाबदारी है कि हमें अपने धर्मग्रंथों के पठन से भगवान श्री सहस्रार्जुन की ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करनी चाहिए और उसका जनमानस में व्यापक रूप से सकारात्मक प्रचार-प्रसार करना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि इन बातों से सनातन हिन्दू धर्म में आपसी वैमनस्यता ना हो। वैचारिक धरातल पर विचारों का आदान-प्रदान जरूरी है। निरर्थक विवाद ना करते हुए उदाहरण के साथ अपने विचार और मत व्यक्त करना ही चाहिए लेकिन मतभेद, मनभेद में ना बदले, इस बात ध्यान भी रखा जाना चाहिए क्योंकि आज हमारे धर्म के शत्रु हमारी इसी बात का फायदा उठाकर हमारे धर्म का नुक़सान कर रहे हैं। हिंदू धर्म को विविध तरीके से बांटकर तोड़ने की कार्रवाई की जा रही है। याद रखें, सनातन हिन्दू धर्म रहेगा तो हमारे धर्मग्रंथ और हमारा वंश, जाति रहेगी। हमारे आदर्श और आराध्य रहेंगे, हम रहेंगे।
वैसे भी वायु पुराण के माहिष्मती महात्म्य १३/६३ में कहा गया है कि सहस्रार्जुन नर्मदा में स्नान कर शिवलीन हो गए।
“स्नात्वादेवौ नमस्कृत्य प्रविवेशेश्वरं तथा।
लिंग रुपी महादेव स्थितोदेवस्य दक्षिणे॥”
महाकवि कालिदास ने भी रघुवंश ६/३८ में इसी बात को कहा है कि-
“संग्राम निर्विष्ट सहस्रबाहु, अष्टादश द्वीप निर्वात यूप:
अनन्य साधारण राजशब्दों, वभूव योगी किल कार्तवीर्य:॥”
कबीर का कहना तो और भी अलग है। उनका कहना है कि छल, माया से भी परशुराम क्षत्रिय नहीं मार सके-
“परशुराम क्षत्रि नहिं मारे, हूं छल माया किन्हा।”
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि सहस्रार्जुन ने अपने गुरु भगवान दत्तात्रेय द्वारा दिए गए शस्त्र से परशुराम को मूर्छित कर दिया था और शुक्राचार्य ने औषधोपचार कर उनके प्राण बचाए। कहने का तात्पर्य यह है कि परशुराम द्वारा सहस्रार्जुन के वध का स्पष्ट उल्लेख हर जगह नहीं है। और भी कई विविध प्रसंग इस विषय को लेकर है।
और अंत में…
श्री राम कथा को भी देश-विदेश में कई अलग-अलग पात्र, घटना और संदर्भ के साथ अपनाया गया है। हमारे धर्मग्रंथों में कई ऐसे पात्र है जो एक विचारधारा के लिए नायक तो दूसरी विचारधारा के लिए खलनायक लगते हैं, फिर भी हजारों साल से यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। सनातन हिन्दू धर्म में कई अलग-अलग विचारधाराओं के व्यक्ति हैं, फिर भी उनमें आज तक समन्वय बना हुआ है और यही हमारे सनातन हिन्दू धर्म की सुंदरता है जिसकी सुगंध विश्व में आज बहुत तेजी से फ़ैल रही है।
ॐ स्वस्ति अस्तु।
(यह मेरी अपनी व्यक्तिगत विचार दृष्टि है। यह सब मेरे विचार मैं अपने ब्राह्मण मित्रों के साथ भी चर्चा करता हूं और इसके कारण मेरे उनके घनिष्ठता और पारिवारिक संबंधों में भी कभी कोई अंतर नहीं आया।)
©- पवन नयन जायसवाल
राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष- अखिल भारतीय जायसवाल (सर्ववर्गीय) महासभा
संयोजक- भगवान श्री सहस्रार्जुन जन्मोत्सव जागरूकता अभियान
9421788630
pawannayanjaiswal@gmail.com
अमरावती, विदर्भ महाराष्ट्र
Leave feedback about this