कलचुरी एकता सर्ववर्गी संघ, महाराष्ट्र प्रदेश, नागपुर द्वारा स्व.आशादेवी गोविन्दप्रसाद जायसवाल की पावन स्मृति में सुपुत्र श्री दीपक गोविन्दप्रसाद जायसवाल एवं परिवार द्वारा 07 वा नि:शुल्क सामुहिक विवाह एवं भव्य युवक-युवती परिचय सम्मेलन मंगलवार, दि. 31 जनवरी 2023 को संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में समाज की 19 बेटियों के विवाह बहुत ही धूमधाम से घोड़ा, बारात, बैंड, द्वाराचार, वरमाला, सप्तपदी, फेरे, भोजन, प्रत्येक नवदंपति को करीबन एक लाख रुपये के जीवनोपयोगी गृहस्थी के सामान के साथ विदाई के साथ पूरे धार्मिक रीति-रिवाज के साथ मुहूर्तानुसार समय पर संपन्न हुए। इसी के साथ-साथ विवाह योग्य युवक-युवती परिचय सम्मेलन भी हुआ। सात वर्ष में अबतक 101 जोड़ों को का विवाह संपन्न करवाने के श्रेय के साथ ही समय प्रबंधन का एक उत्कृष्ट उदाहरण इस समय आयोजन समिति की ओरसे प्रस्तुत किया गया इसके लिए दीपक गोविन्द प्रसाद जायसवाल, उनके परिवार के सदस्य और कर्मठ सहयोगी, आयोजन में योगदान देनेवाले संगठन के उत्साही वरिष्ठों के साथ युवाशक्ति और मातृशक्ति की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। सभी का कार्य प्रणम्य है।
निर्मला सेलिब्रेशन लाॅन, मानकापुर रिंग रोड, गोरेवाडा चौक, नागपुर, महाराष्ट्र में आयोजित और करीब-करीब चार हजार समाजजनों की उपस्थिति से संपन्न हुए इस भव्य-दिव्य कार्यक्रम में आयोजकों ने मुझे भी अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था और मंच से सम्मानित किया। अपने विचार व्यक्त करने का मौका दिया। मेरे साथ मंच पर देशभर से पधारे कुछ और भी समाज के कई वर्ग के व्यक्ति भी अतिथि के रूप में इस कार्यक्रम में उपस्थित थे। इस संगठन के संयोजक श्री दीपक गोविंद प्रसाद जायसवाल जी ने मंच से अपना उद्बोधन करते हुए कहा कि “यह सामुहिक विवाह और परिचय सम्मेलन भविष्य में भी 20 वर्ष तक मेरे द्वारा आयोजित होता रहे यह मेरी कामना है। संगठन की एक विशेष बात यह थी कि इस कार्यक्रम की समीक्षा के लिए चार दिन बाद, 04 फरवरी को एक बैठक का आयोजन भी उत्साहजनक वातावरण में हुआ जिससे अगले वर्ष के कार्यक्रम को और सुनियोजित ढंग से संपन्न हो सके।
अभी मैं और मेरे जैसे कई व्यक्ति इसकी सफलता पर अभिभूत थे कि एक समाचार पत्र में इसके एक अतिथि की ओरसे प्रकाशित और सोशल मीडिया से प्रसारित समाचार ने समाज को मानवीय स्वभाव पर चिंतन, मनन के लिए एक नया विषय प्रस्तुत किया। इस लेख को लिखने के लिए मेरी कलम भी इसलिए ही उठी है क्योंकि एक साहित्यकार के नाते मेरा इस तरह की मानसिकता से बहुत बार सामना हो चुका है और भविष्य में भी होता रहेंगा यह मुझे विश्वास है। घटना यह है कि इस कार्यक्रम के एक अतिथि जायसवाल क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष उत्तर प्रदेश निवासी मनोज जायसवाल ने एक समाचार पत्र में इस पूरे आयोजन को जायसवाल क्लब के तत्वावधान में आयोजित हुआ इस प्रकार अपने उद्बोधन के साथ प्रकाशित करवाकर उसे फेसबुक पर और सोशल मीडिया के दूसरे माध्यमों पर प्रसारित किया। समाचार में भी कई अतिथियों के नाम तक नहीं है लेकिन इस समय वह इस बात को भूल गए कि पूरे देश के कलाल, कलार, कलवार, कलचुरि समाज के हर वर्ग के व्यक्ति को नागपुर निवासी दीपक गोविन्द प्रसाद जायसवाल की उदारता से संपन्न हो रहे इस कार्य की जानकारी है। इसी कारण यह झूठ कुछ ही समय में मनोज जायसवाल के लिए गले की हड्डी बन गया हालांकि आज सोशल मीडिया पर उसपर लीपापोती का असफल प्रयास उनकी ओरसे किया गया और दीपक जायसवाल जी को इसका श्रेय देते हुए पोस्ट की गई लेकिन दूसरे के कार्य को अपना बताकर झूठी प्रशंसा पाने की लालसा, मनोविकृत मानसिकता तो उजागर हो ही गई। इस तरह के कई लोग समाज को धोखा देकर वाहवाही लूटने में लगे है। सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे कई लोग खुद के गले में समाजसेवी का तमगा लटकाए और समाज में स्वयंभू नेता बने हुए है। इस घटना के बाद मुझे बरबस ही यह कहावत याद आ गई। ‘जो बूंद से गई वह सागर से भी नहीं आती’। इसके साथ ही “खूशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से” एक फिल्म के गीत की यह पंक्ति भी यहाँ सार्थक होती है।
खुद को चमकाने का, अपने को विशेष बताने के और भी कई तरीके समाज के यह तथाकथित समाजसेवी अपनाते है जैसे आमंत्रितों के बीच घुसपैठ करना। उनके साथ मंच पर चढ़कर बैठना या खड़े रहना अगर निचे बैठे हो तो किसी अतिथि से मिलने मंच पर चढ़ना, सेल्फी खिंचकर लोगों के बीच खुद को विशेष बताना। माईक पर जाकर कार्यक्रम को शुभकामना देने या अभिनंदन करने के बहाने मंच पहुंचना। अपने क्षेत्र के समाचार-पत्र में केवल अपना उल्लेख कर समाचार छपवाना जैसे कई कार्य इसमें शामिल है। अभी चार दिन पहले एक खबर यह भी बहुत ही जोरशोर से प्रसारित की गई कि सिवनी की एक युवती पर उनकी विशेष उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने डाक टिकट जारी की है जबकि यह डाक विभाग की एक योजना है। 300 ₹ के शुल्क और अपना फोटो देकर कोई भी व्यक्ति 05 ₹ के फूलवाली टिकट के एक ओर अपना फोटो छपा 12 टिकट का एक सेट बना सकता है। मेरे कई मिंत्रों ने इसे बनवाया। यह कार्य डाक टिकट से हटकर उस कागज पर अपना फोटो छपवाने जैसा है। इसे कोई साधारण भी व्यक्ति बना सकता बिना किसी उपलब्धि के लेकिन परिवार ने इसे इस तरह प्रचारित करवाया जैसे यह कोई महान कार्य या उपलब्धि हो। यह ना सिर्फ समाज को मूर्ख समझकर आँखों में धूल झोंकना है बल्कि खुद अपने को धोखा देना है।
अंत में मैं अपनी बात पर आता हूँ। कई बार ऐसा होता है कि मेरा लेखन मुझे ही दूसरों के नाम से पढ़ने को मिलता है। लोग बहुत ही प्यार से मेरे नाम को काटकर और सीना तानकर बिना किसी लाज-लज्जा के बड़े शान से अपने नाम को जोड़कर उसी समूह में प्रसारित करते है जिसमें कुछ ही घंटों पहले मैंने भेजा था। कुछ अपने नाम से छपवा भी लेते है। सामना होने पर खिंसियानी हँसी हँसते हुए, हें हें हें करते हुए कहते है ‘आप बहुत अच्छा लिखते है। मुझे बहुत पसंद आया तो मैंने भी आगे भिजवा दिया बहुत से ग्रुप में’ मैं पूछना चाहता कि “मेरे नाम को क्यों काट दिया?” लेकिन मौन रह जाता उनकी इस मक्कारी पर। कुछ कहो तो ओछी मानसिकता वाले ऐसे लोग बहसबाजी करने लगते है। फेसबुक और वाट्सअॅप पर तो काॅपी पेस्ट महाज्ञानियों की भरमार है। छपास की, खुद को चमकाने की, अपने खुद को धोखा देने की, दूसरे के श्रेय को हड़पने की मानसिकता से ग्रस्त मनोविकृत लोगों का, प्रवृत्ति का समाज के सुजान व्यक्तियों ने विरोध करना चाहिए यही इस लेख को लिखने का उद्देश्य है। हो सकता आपको यह लेख मेरे अलावा और भी कई व्यक्तियों के नाम से पढ़ने को मिल सकता है। इसके लिए बहुत से लोग अधिरता से मेरे लेखन की प्रतीक्षा करते है। इससे उनकी अतृप्त आत्मा को गहन शांति मिलती है। मैं जानता हूँ कि इस तरह के लेखन से कुछ लोग मुझे अपना शत्रु समझने लगते है जैसा की पिछले दिनों मैंने महसूस किया जब मैंने कुछ संगठन और व्यक्तियों द्वारा समाज के लोगों को पद के प्रलोभन, पदवी या अलंकरण देकर रुपये जमा करनेवाले कोलकाता और दिल्ली और कई अन्य जगह के लोगो को निर्भीकता से उजागर किया। मेरी दृष्टि में समाज के स्वास्थ्य के लिए यह कार्य भी आवश्यक है। आज इतना ही।
ॐ स्वस्ति अस्तु।
©- पवन नयन जायसवाल
‘पूर्णिमा’, किशोर नगर, अमरावती
9421788630
pawannayanjaiswal@gmail.com
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