आगरा।
आगरा में लोहामंडी स्थित शिवहरे समाज की धरोहर मंदिर श्रीराधाकृष्ण में रविवार 4 सितंबर को राधा-अष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। इस शाम राधारानी अपने प्रिय श्रीकृष्ण के साथ आकर्षक श्रृंगार में दर्शन देंगी। राधाकृष्ण दरबार में भव्य फूलबंगला सजाया जाएगा और भजनों की संगीतमयी स्वरलहरियां राधा-कृष्ण की भक्ति में भाव-विभोर करेंगी। रात नौ बजे महाआरती और प्रसादी के साथ कार्यक्रम का समापन होगा।
राधाकृष्ण मंदिर अध्यक्ष श्री अरविंद शिवहरे एवंं उनकी कार्यकारिणी ने समाजबंधुओं से ऱाधाअष्टमी उत्सव का अध्यात्मिक आनंद लेने का आग्रह किया है। जैसा कि सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण के समान ही राधा जी को भी पूजनीय माना गया है और कृष्ण जन्माष्टमी के समान ही राधा अष्टमी का भी बहुत अधिक धार्मिक महत्व है। वैसे भी श्री कृष्ण को राधा जी के बगैर अधूरा माना गया है। राधा के साथ में श्रीकृष्ण की पूजा करने से दोहरा फल मिलता है। मान्यता के अनुसार राधा अष्टमी की पूजा करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और अविवाहितों को मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है। वैवाहिक जीवन में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है।
लोक मान्यता है कि राधा का जन्म वृषभानु और उनकी पत्नी कीर्ति (कमलवती) से हुआ था, जो गोकुल के पास रावल गांव में रहते थे। देवी राधा का जन्म माता के गर्भ में नहीं हुआ था, जबकि कीर्ति द्वारा देवी योगमाया की पूजा करने के बाद कन्या प्राप्ति हुई थी। वहीं ब्रह्मावैवर्त पुराण के अनुसार राधाजी का जन्म श्री कृष्ण से प्रेम भाव मजबूत करने के लिए हुआ था। इस पुराण में उल्लेख है कि श्री कृष्ण के बाएं अंग से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई, कन्या ने प्रकट होते श्री कृष्ण के चरणों में फूल अर्पित किए और बात करते समय उनके सिंहासन पर बैठ गई। ये सुंदर कन्या श्री राधा थीं। एक बार राधा ने श्री कृष्ण को उनकी एक अन्य पत्नी विराजा के साथ देख लिया, जिससे वो दुखी हो गई और कृष्ण को बुरा भला कहने लगीं। ये सब देख श्री कृष्ण के सेवक और मित्र श्रीदामा को गुस्सा आ गया और उन्होंने राधा को पृथ्वी लोक पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। तब श्री कृष्ण ने राधा से कहा कि तुम्हारा जन्म देवी कीर्ति और वृषभानु की पुत्री के रूप में होगा।
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