सलुंबर (राजस्थान)।
मैले-कुचैले, फटे-चीथड़े कपड़ों में कई-कई दिनों बिना नहाए, अपनी भूख-प्यास से बेखबर, बेखुदी की हालत में सड़कों पर भटकते मानसिक बीमारों को दुनिया पागल कहे या दीवाना समझे, लेकिन रमीला कलाल मोह-माया और लोक-लज्जा से परे ऐसे लोगों को भगवान का रूप मानती हैं। स्नेह, ममता और करुणा की प्रतिमूर्ति रमीला कलाल ने अपना जीवन ऐसे निराश्रित और बेसराहा लोगों की सेवा के नाम कर दिया है। नवरात्र में मातृशक्ति वंदन की इस कड़ी में हम आज इन्हीं की बात करने जा रहे हैं।
राजस्थान के सलुम्बर जिले में खीरवाड़ा रोबा स्थित ‘प्रभु निवास’ आश्रम की संचालिका रमीला कलाल सड़कों पर भटकते मानसिक बीमारों को न केवल अपने यहां आश्रय देती हैं, बल्कि उनका उपचार कराकर उन्हें उनके परिजनों तक पहुंचाने का प्रयास भी करती हैं। रमीला कलाल आश्रम में अब तक 158 लोगो को अपनी निस्वार्थ सेवाएं प्रदान कर चुकी हैं। इनमें से 65-70 लोगों को उनके अपनों से मिला चुकी है। कुछ ऐसे भी मानसिक बीमार थे, जो अपनी जिद के चलते आश्रम से भाग गए। आश्रम में फिलहाल 25-30 लोग अभी भी रह रहे हैं, इनमें ज्यादातर लोग अपनों को पूरी तरह भूल चुके हैं, और इनके घर-परिवार का फिलहाल कोई पता-ठिकाना नहीं मिल सका है। सुवर्ण कृष्णा फाउंडेशन के अंतर्गत चलाए जा रहे ‘प्रभु निवास’ आश्रम में बेघर-असहायों की भगवान की तरह सेवा की जाती है, हर आश्रयी को यहां ‘प्रभुजी’ नाम से संबोधित किया जाता है।
रमीला कलाल का जन्म सलुंबर के रोबा में हुआ था। उनके जन्म के बाद उनके माता-पिता श्री रूपजी कलाल और श्रीमती कमला देवी अहमदाबाद में शिफ्ट हो गए थे। रमीला कलाल बचपन से ही बहुत संवेदनशील थी, वह सड़कों पर भटकते मानसिक बीमारों के देखकर दुखी हो जाती थीं, अक्सर सोचती थीं कि कुछ ऐसा हो कि समाज में कोई भी व्यक्ति गरीब और बेसहारा नहीं रहे, सड़कों पर कोई भिखारी नजर न आ, सरकार कोई ऐसी फैक्ट्री क्यों नहीं खोल देती है कि इन भिखारियों को वहां काम मिल जाए। ऐसी सोच के साथ रमीला कलाल बड़ीं हुईं। उनकी शिक्षा-दीक्षा अहमदाबाद में हुई, वहीं उनका विवाह हुआ। लेकिन करीब बीस वर्ष पूर्व पति से तलाक हो गया, उस समय रमीला की पुत्री तीर्थी चार साल की और पुत्र वंश महज दो साल का था। रमीला ने सिंगल मदर के रूप में दोनों बच्चों की परवरिश की। उन्होंने इंश्योरेंस, फाइनेंस और प्रापर्टी का काम किया। इस पुरुष-प्रधान क्षेत्र में अपनी लगन और मेहनत से कामयाबी हासिल की। अपने पैसों से एक फ्लैट खरीदा, बच्चों की अच्छे से पढ़ाई-लिखाई कराई। आज दोनों बच्चे अपने पैरों पर खड़े हैं। बच्चों की जिम्मेदारी कुछ हल्की होने पर रमीला समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय हो गईं। उन्होंने सुवर्ण फाउंडेशन की स्थापना की और अपनों से बिछड़े मानसिक बीमारों की सेवा में जुट गईं।
रमीला ने करीब ढाई वर्ष पहले अपने सुवर्ण कृष्णा फाउंडेशन के माध्यम से सुलंबर में खीरवाड़ा रोबा स्थित अपनी पैतृक तीन बीघा जमीन में 2000 वर्ग गज के एक भूखंड में प्रभु निवास आश्रम की स्थापना की। पत्थर और टिन से आश्रम का अस्थायी निर्माण होने के बाद उन्होने कुछ स्थानीय लोगों को आश्रम से जोड़कर सेवा कार्य शुरू कर दिया। उनके वालेंटियर्स सड़क पर भटकते मानसिक रोगियों को आश्रम में लाते है, जहां रमीला कलाल उन्हें ठीक से नहलाकर साफ-सुथरा करवाती हैं, जरूरत होने पर अपने हाथ से उनकी हेयर कटिंग और शेविंग करती हैं। धुले हुए साफ-सुथरे कपड़े देती हैं, चाय-नाश्ता और दोनों टाइम का भोजन कराती हैं। सोने का साफ बिस्तर भी इन लोगों को दिया जाता है। इस दौरान रमीला इन लोगो से बातचीत करते हुए उनके घर-परिवार के बारे में पता लगाने की कोशिश करती हैं। थोड़ा सा भी क्लू मिलने पर पूरी सक्रियता से उनके परिवार के लोगों से संपर्क करने का प्रयास किया जाता है। रमीला बताती हैं कि अक्सर परिजनों को उनके बारे में कुछ पता ही नहीं होता, वे उन्हें अपने स्तर से तलाश रहे होते हैं। ऐसे मे संपर्क होने पर वे तत्काल आश्रम आते हैं और अपनों को साथ ले जाते हैं।
रमीला बताती हैं कि शुरू में उन्हें काफी आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। कोरोना काल में आश्रम बंद करने की नौबत आ गई थी, तब उनके माता-पिता और दोनों बच्चों ने उन्हें हौसला दिया। आश्रम चलाने के लिए उन्हें अहमदाबाद में अपना फ्लैट तक बेचना पड़ा, बच्चों ने इसके लिए सहर्ष स्वीकृति दी। रमीला कलाल बताती हैं कि उनका परिवार अहमदाबाद में अब किराये के फ्लैट में रहता हैं। फ्लैट बेचकर मिले पैसे से उन्होंने आश्रम के निर्माण को दुरुस्त कराया, अन्य व्यवस्थाएं भी सुचारू कीं, ताकि यहां आने वाले ‘प्रभुजी’ लोगों को अधिक से अधिक सुविधाएं मिल सकें। रमीला कलाल ने शिवहरेवाणी को बताया कि अब उनके पास दूर-दूर दराज से भी निराश्रित मानसिक बीमार आने लगे हैं। कई बार पुलिस भी ऐसे लोगों को उनके आश्रम भेज देती है। समाज से भी अब उन्हें पहले से कहीं अधिक सहयोग मिलने लगा है। ज्यादातर लोग आटा-दाल-चावल आदि की सहायता करते हैं, तो अब लोग अपने किसी परिजन की स्मृति में यहां एक टाइम के भोजन करवाने भी आने लगे हैं।
रमीला कलाल ने बताया कि नवंबर 2024 में उनके आश्रम को तीन वर्ष पूर्ण हो जाएंगे। उनके यहां हर आयु वर्ग के मानसिक बीमार आते हैं। युवाओं में ज्यादातर ऐसे होते हैं जो प्यार में असफल होने के चलते मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और पागलपन की हालत में घर से भाग जाते हैं। प्रौढ़ावस्था में ज्यादातर लोग बिजनेस में असफल होने और कर्जदार होने की वजह से मानसिक बीमार हो जाते हैं। कुछ बुजुर्ग ऐसे भी आए जिन्हें अपनी संतानों की ओर से हताश मिली और विक्षिप्त हो गए। फिलहाल सलुंबर में ‘प्रभु निवास’ आश्रम ही अब रमीला कलाल का घर-मंदिर है, सड़कों पर भटकने वाले मानसिक बीमार उनके भगवान हैं, जिनकी सेवा में अपने जीवन को उन्होंने समर्पित कर दिया है। वह हर तीन-चार महीने में एक बार अहमदाबाद अपने बच्चों के पास जाती है। दोनों बच्चे आत्म-निर्भर हैं, बेटी तीर्थी डिजिटल मार्केटिंग प्रमोशन का काम करती है, वहीं 22 वर्षी बेटा वंश एकाउंटेंट है। सलुंबर में रमीला कलाल अब एक जाना पहचाना नाम है, कलक्ट्री में, थाने में या जहां कहीं भी वह भी जाती हैं, वहां लोग उन्हें विशेष सम्मान देते हैं। उन्हें कई सार्वजनिक मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है। एक स्नेही, ममतामयी और करुणामयी ‘मां’ के रूप में उनकी ख्याति निरंतर विस्तार पा रही है।
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