अयोध्या।
उम्र 60 साल, लेकिन युवा ऊर्जा से लबरेज। 650 किलोमीटर दूर गौरीघाट (जबलपुर) से मां नर्मदा का जल लेकर खुद बाइक चलाते हुए अयोध्या पहुंची साध्वी शिरोमणि आज रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। कलचुरी कलार समाज की बेटी साध्वी शिरोमणि कहती हैं कि वह अपनी युवावस्था में राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ी थीं, और आज साठ साल की उम्र में जीवन की सबसे बड़ी साध पूरी हुई है।
साध्वी शिरोमणि (मूल नाम जयश्री राय) ने बीते रोज मां नर्मदा के जल को सरयू में प्रवाहित कर अपना संकल्प पूरा किया। साध्वी शिरोमणि ने शिवहरेवाणी को बताया कि उन्हें स्वप्न में मां नर्मदा ने अपना जल अयोध्या की पवित्र सरयू नदी में प्रवाहित करने का आदेश दिया। मां नर्मदा के आदेश का पालन करने के लिए वह गत 16 जनवरी को जबलपुर में गौरीघाट स्थित संपूर्णमघाट से मां नर्मदे का जल लेकर मोटरसाइकिल से अपनी शिष्या अंजली मिश्रा के साथ अयोध्या के लिए रवाना हुई थीं। रास्ते में अधारवाल, सिहोरा, कटनी, मैहर रीवा, चाकघाट, प्रयागराज, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर आदि स्थानों पर जनजागरण करते हुए कारसेवकपुरम पहुंची। यहां अयोध्या में साध्वी और उनकी सहयोगी साध्वी अंजली मिश्रा ने विहिप संरक्षक श्री दिनेशजी से आशीर्वाद लिया। साध्वी शिरोमणि ने बताया कि उन्हें राम जन्मभूमि न्यास से प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का आमंत्रण प्राप्त हुआ तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इसकी वजह यह कि वे खुद राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी थीं, जहां साध्वी ऋतंभरा से पहली मुलाकात हुई थी। वात्सल्य मूर्ति साध्वी ऋतंभरा दीदी ने उनके जीवन की धारा ही बदल दी और सांसारिक जीवन से संन्यास लेकर मानव सेवा के मार्ग पर अग्रसर हो गईं। साध्वी शिरोमणि का कहना है कि अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होना दरअसल हमारे राष्ट्र में रामराज्य के अध्याय का प्रारंभ होना है। असली रामराज्य तब जाएगा जब हमारा चित्त, स्वभाव और मनोदशा निर्मल होगी। हम राग-द्वेष, वैमनस्य और आडंबर से दूर होकर सत्य के मार्ग का अनुपाल करेंगे।


जयश्री राय से साध्वी शिरोमणि तक का सफर
साध्वी शिरोमणि का जन्म जबलपुर से 60 किलोमीटर दूर सिलोंडी में हुआ था, परिवार ने उन्हें जयश्री राय नाम दिया। उनके पिताजी स्व. श्री यशवंत प्रसाद राय व्यापारी थे और माताजी श्रीमती फूलवती राय धार्मिक विचारों की घरेलू महिला थीं। उनके नाना स्व. भैयालाल राय जबलपुर के गुरंदी बाजार में लोहा कारोबारी थे। अपनी पांच बहनों और एक भाई (श्री राजेश राय) में वह दूसरे नंबर की हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद जयश्री राय का नियुक्ति होम साइंस कालेज में लेक्चरर के पद पर हो गईं। लेकिन 1989 में राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल हो गईं जिसके बाद उनके जीवन की धारा ही बदल गई। वह विहिप में महाकौशल प्रांत की दुर्गावाहिनी संयोजिका बन गईं, जिसकी प्रमुख वात्सल्य मूर्ति दीदी मां ऋतंभरा थीं। साध्वी ऋतंभरा से व्यक्तित्व से वह इस कदर प्रभावित हुईं कि 1995 में उन्होंने संसारिक जीवन को त्याग कर स्वयं को दीदी मां के चरणों में समर्पित कर दिया। दीदी मां ने उन्हें दीक्षा, नाम, वस्त्र दिए और वह जयश्री राय से बन गईं साध्वी शिरोमणि। साध्वी शिरोमणि ने करीब 25 वर्ष वृंदावन में दीदी मां के वात्सल्य ग्राम में अनाथ बच्चों की सेवा में बिताए और गत पांच वर्षों से गौरीघाट (जबलपुर) पर मां नर्मदा की सेवा में हैं। वर्तमान में वह विहिप में साध्वी शक्ति परिषद की क्षेत्र संयोजिका हैं और मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड आदि राज्यों का प्रभार उन पर है।
प्रयागराज में जायसवाल समाज ने किया स्वागत
प्रयागराज में जायसवाल समाज ने साध्वी शिरोमणि का जोरदार स्वागत किया। साध्वी शिरोमणि अपनी शिष्या अंजली मिश्रा के साथ मोटरसाइकिल से रीवा से प्रयागराज पहुंची तो जायसवाल बुद्धिजीवी परिषद के अध्यक्ष श्री कमलेंद्र जायसवाल व श्री जितेंद्र जायसवाल के नेतृत्व में समाजबंधुओं ने स्वजातिय साध्वी का स्वागत-सत्कार किया।
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