हम सनातनी हिन्दू धर्मावलंबी प्रतिदिन सुबह हमारे कार्य का प्रारंभ हम ईश्वर के पूजन, प्रार्थना से करते हैं, उसमें हम देव प्रतिमा के समक्ष हाथ जोड़कर नतमस्तक होते हुए यह भी कहते है…
या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः॥
इसका अर्थ है, जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
वैदिकधर्म में प्रतिदिन मातृदिवस, पितृ दिवस तथा आचार्य दिवस होता है। तैत्तिरीयोपनिषत् में ‘मातृदेवोभव, पितृदेवोभव, आचार्यदेवोभव’ से यह सत्य पुष्ट होता है। इसी वैदिक वचन के अनुरूप मनुस्मृति (2/225-237) आदि में इन तीनों की सेवा को परम तप कहा गया। (मनुस्मृति 2/229) ये तीनों तीन लोक हैं, तीन आश्रम हैं, तीन वेद हैं और तीन अग्नि हैं। (मनुस्मृति 2/230) जब तक ये जीवित रहें, तब तक इनकी नित्य शुश्रूषा (परिचर्या) करे।
‘तेष्वेव नित्यं शुश्रूषां कुर्यात् प्रियहिते रतः।‘
(मनुस्मृति 2/235) इनकी सेवा ही श्रेष्ठ धर्म है।
हमारे सनातन हिन्दू धर्म में माता-पिता का गुणगान हमारे धर्मग्रंथों में है। हमारे घर और परिवार के साथ ही हमारे पूजास्थल मां की उपस्थिति के बिना अधूरे हैं। हम परमात्मा को भी परमपिता कहते है। माता-पिता के बिना हमारा जीवन अधूरा है, लेकिन विश्व के कई देशों में महिलाएं और पुरूष अनेक विवाह करते है और उनकी संताने भी चौदह, पंद्रह साल के होने के बाद से अलग रहने लगती है। उनके जैविक माता-पिता, अपनी-अपनी, अलग-अलग जिंदगी जीते है और कई बार बच्चों के माता-पिता तलाक लेकर दूसरा-तीसरा विवाह भी कर अलग-अलग नगरों में रहने लगते है। बच्चे साल में एक बार अपने माता या पिता से मिलने जाते है लेकिन उनके जैविक माता-पिता बहुत बार तलाक हो जाने के कारण साथ में तो रहते नहीं है इसलिए माता को मिलने का अलग-अलग दिन तय किया गया है। जिस तरह माता का उसी तरह पिता से मिलने का अलग दिन। जो ‘मदर्स डे’, ‘फादर्स डे’ के नाम से जाने जाते है।
विश्व में कई ऐसे धर्म है जिसको मानने वालों का विवाह एक करार होता है जिसे आपसी सहमति से कभी भी तोड़ा जा सकता है लेकिन सनातन हिंदू धर्म में जीवन से मृत्यु तक के सोलह संस्कारों में से विवाह एक संस्कार है। हिंदू विवाह करार नहीं संस्कार होता है इसलिए विवाह के पहले कई मांगलिक कार्य संपन्न कराए जाते है, विधि-विधान से नियोजित वर-वधू को संस्कारित किया जाता है।
नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥
इसका अर्थ “माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं।”
हमारे हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में हम बच्चे अपने माता और पिता के साथ ही रहते है और वो दोनों भी पूरी जिंदगी अपने बच्चों के साथ रहते है इसलिये यहां हर दिन माता-पिता का है। उन्हें साल के एक दिन में जकड़ने की जरुरत नहीं है। मां को याद करने के लिए किसी ‘मदर्स डे’ की जरुरत नहीं, सनातन हिन्दू धर्म में तो मां के कदमो में ही स्वर्ग बताया गया है। यह ‘मदर्स डे’ के चोंचले तो उनके लिए है जो साल में एक बार अपनी मां को याद करते है, हमारी संस्कृति में सुबह घर से निकलते समय पहले माता-पिता के पांव छूने की परम्परा है इसलिये हमारे लिए तो हर दिन मातृ और पितृ दिवस है। आज जरूरत है हमारे द्वारा अपने बच्चों को अपने सनातन हिन्दू धर्म, संस्कृति, परंपरा और हिन्दू धर्मग्रंथों का ज्ञान देने की, नई पीढ़ी को संस्कारित करने की लेकिन बहुत ही दु:ख और चिंता का विषय है कि हम अपने धर्म, संस्कृति और परम्पराओं को भूलाकर, तथाकथित आधुनिकता का मुखौटा लगाए, पाश्चात्य जीवनशैली अपनाकर और अपने माता-पिता से मुख मोड़कर उनकी वृद्धावस्था में उनको वृद्धाश्रम भेज रहे हैं। जबकि माता-पिता की महत्ता को हमारे धर्मग्रंथों में बहुत ही स्पष्टता के साथ परिभाषित किया गया है। संस्कृत भाषा में माता-पिता के लिए बहुत श्लोक है। ए्क श्लोक में कहा गया है…
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्॥
इसका अर्थ है कि, सर्वतीर्थमयी – सब तीर्थ जिसमें समाएं हैं वह, माता – मां, सर्वदेवमयः – सब देव जिन में समाएं हैं वे, पिता – जनकः, पिता। मातरं – मां को, पितरं – पिता को, तस्मात् – इसीलिए, सर्वयत्नेन – हर तरह से, पूजयेत् – पूजा करनी चाहिए, पूजना चाहिए, पूजन करना चाहिए।
भारतीय संस्कृति के सभी धर्मों और पंथों में माता-पिता का गुणगान किया गया है। हमने हमारी नदियों को और गौ को भी माता कहा है। सिख भी अपने गुरु को दशमेश पिता संबोधित करते हैं।
इसी तरह हमारी मातृभाषा और हमारी मातृभूमि, हमारा देश, हमारा राष्ट्र, हमारा हिंदुस्थान, हमारा भारत और हमारा सनातन हिन्दू धर्म, हमारी नदियां और गौमाता भी हमारे लिए मां ही हैं। इनका पूजन, संवर्धन, विकास और इनकी रक्षा करना भी हमारा प्रथम कर्तव्य और नैतिक दायित्व है। फिर ‘मदर्स डे’ और ‘फादर्स डे’ मनाकर हम क्यों अपने माता-पिता को वर्ष के एक दिन में कैद कर रहे हैं? हमको यह दिवस मनाने की क्या आवश्यकता है?
-पवन नयन जायसवाल
9421788630
pawannayanjaiswal@gmail.com
‘पूर्णिमा’, किशोर नगर,
अमरावती, विदर्भ, महाराष्ट्र
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आज फादर्स डे पर विशेषः नातनियों को ‘मदर्स डे’, ‘फादर्स डे’ मनाने की क्या आवश्यकता?
- by admin
- June 17, 2023
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