November 1, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार समाज

मनोज मुंतशिर मामले में ठंडा पड़ा कलचुरी समाज; ऐसे तो भगवान सहस्त्रबाहु पर कोई भी कुछ बोल जाएगा!

इंदौर।
जैसे पानी में कोई बुलबुला उठा और बैठ गया हो, पुराने ‘नफरती चिंटू’ फर्जी लेखक मनोज मुंतशिर द्वारा भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन के लिए प्रयोग किए गए बेहद आपत्तिजनक शब्दों पर कलचुरी समाज का आक्रोश भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। विरोध की कहीं कोई ऐसी सुगबुगाहट नही, जो मनोज मुंतशिर और उसके आलेख को छापने वाले अखबार को माफी मांगने के लिए मजबूर कर सके। 
देशभर में भोपाल, राजगढ़, सागर, पन्ना समेत कुछ जिलों को छोड़ दें तो अब तक कहीं भी स्थानीय समाज की ओर से इस मुद्दे औपचारिक विरोध तक दर्ज नहीं कराया गया है। सोशल मीडिया पर थोड़े-बहुत स्वर उठ रहे हैं। आश्चर्य तो उन लोगों की चुप्पी पर है जो बरसाती मेढक की तरह हर चुनावी मौसम में कलचुरी समाज की राजनीतिक एकता का राग अलापते हैं, और राजनीतिक चेतना के नाम पर जुट्ट बनाकर देश की एक सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के शीर्ष नेताओं के दरबार में अपनी वफादारी की हाजिरी दर्ज कराते हैं। दरअसल यह मनोज मुंतशिर उसी राजनीतिक पार्टी का रट्टू तोता है। 
अपनी अज्ञानता पर दम भरने वाले मनोज मुंतशिर का अपना इतिहास देखें तो एक बारगी लगता है कि इस चिरकुट का क्या विरोध करना… आधारहीन, आपत्तिजनक और अनर्गल बातें करना इसकी आदत  बन चुका है। मुंतशिर कई बार अपने बयानों और वक्तव्यों के लिए घोर बेइज्जती का सामना कर चुका है लेकिन बेशर्मी का ऐसा लबादा ओढ़ रखा है इस ब्राह्मणवादी ने, कि इस पर कोई फर्क नहीं पड़ता । फिर यह विचार भी उठता है कि इसका पूरी ताकत से विरोध करना बहुत जरूरी है ताकि कोई भी शख्स कलचुरी समाज की आस्था और भावना के साथ इस तरह खिलवाड़ करने की हिम्मत न जुटा सके। धार्मिक उद्धरणों में ब्राह्मणों ने भारत के मूलवासियों के साथ जो अन्याय किया है और झूठ के सहारे जिस नकारात्मक छवि में उसे प्रस्तुत किया है, उसका खुलासा कर सच सामने लाना ही चाहिए, इसलिए भी विरोध का प्रदर्शन जरूरी है।
अब जरा मनोज मुंतशिर की बात कर लेते हैं। इसका नाम मनोज शुक्ला है। मुंबई जाकर इस ब्राह्मणवादी ने शुक्ला सरनेम हटाकर मुंतशिर का पुछल्ला लगा लिया, ताकि प्रगतिशील विचारों वाली फिल्म इंडस्ट्री के बुद्धिजीवी वर्ग में  यह लम्पट अपनी उठक-बैठक बना सके। नकल करने में यह माहिर है, यहां तक कि अंग्रेजी कविताओं का हू-ब-हू अनुवाद कर उसके नीचे अपना नाम चिपकाने में इसे जरा भी झिझक नहीं होती। आजकल यह टीवी चैनलों पर देश को इतिहास पढ़ाने के नाम पर नफरत का प्रचार-प्रसार कर रहा है ताकि एक खास राजनीतिक दल को फायदा पहुंचा सके, और जनता किसी धर्म या वर्ग विशेष के लोगों के प्रति नफरत  में  इस कदर अंधी हो जाए कि अपने हित-अहित ही न देख सके। अफसोस यह कि कलचुरी समाज के ज्यादातर व्हाट्एपग्रुपों में इस नफरती मास्टर के चेले सबसे ज्यादा मुखर नजर आते हैं जो आए दिन नफरती मैसेज फारवर्ड कर कलचुरी समाज की प्रगतिशील छवि को कमजोर करने मे लगे हैं। आज कलचुरी समाज के ज्यादातर सामाजिक संगठन इसी राजनीतिक विचारधारा के समर्थक मंच के रूप में काम करते प्रतीत होते हैं। ऐसे लोगों से और ऐसे संगठनों से मनोज मुंतशिर का पुरजोर विरोध करने की उम्मीद करना बेमानी होगी। क्योंकि, नफरत करने वालों का विवेक मर जाता है,  उनका आत्मबल कमजोर हो जाता है और वे किसी का विरोध करने लायक नहीं रहते। 
इसीलिए, प्रगतिशील विचारों वाले कलचुरी बंधुओं से उम्मीद है कि वे मनोज मुंतशिर नाम के नफरती चिंटूं का पुरजोर विरोध करें, इतना विरोध करें कि मनोज शुक्ला सार्वजनिक रूप से कलचुरी समाज से माफी मांगने को मजबूर हो जाए। देश में करोड़ों की आबादी वाले कलचुरी समाज में अभी तक राष्ट्रीय कलचुरी एकता महासंघ और कलचुरी सेना जैसे एक-दो संगठनों के बैनर तले प्रबुद्ध समाजबंधुओं ने ही रस्मी विरोध कर्ज कराया है। इस मामले में और भी संगठनों को आगे आना होगा। राष्ट्रीय कलचुरी एकता महासंघ आगामी 4 व 5 अगस्त को सालासर में होने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में इस मुद्दे पर निंदा प्रस्ताव पारित करेगा और संघर्ष की रणनीति तैयार करेगा। कलचुरी एकता महासंघ की राष्ट्रीय संयोजिका श्रीमती अर्चना जायसवाल ने शिवहरेवाणी को यह जानकारी दी है। 
 

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