रायपुर।
16 दिसंबर, 1971 का वह दिन…जब, पाकिस्तानी सेना के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सशस्त्र सेना के सामने घुटने टेक दिए थे। पाकिस्तान दो टुकड़े हो गया था और बांग्लादेश के नाम से एक नया मुल्क विश्व मानचित्र पर अंकित हुआ। एक भारतीय सैनिक के तौर पर उस विजय अभियान का हिस्सा होना मेरे जीवन का सबसे गौरवशाली क्षण है। यह कहना है कि पूर्व वायुसैनिक श्री राकेशचंद्र शिवहरे का जिन्हें बीते रोज छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्वर्णिम विजय वर्ष मशाल समारोह में सम्मानित किया गया।
श्री राकेशचंद्र शिवहरे ने शिवहरेवाणी के साथ उन गौरवशाली क्षणों की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि आज 50 वर्षो बाद भी युद्धक विमानों की गड़गड़ाहट, ब्लैक आउट में विमानों की लैंडिंग और टेकऑफ, कानपुर एय़रबेस चकेरी में सामरिक गतिविधियों की एक-एक याद ताजा है। मोदी जी और रक्षा मन्त्रालय ने उस युद्ध में भाग लेने वाले रिटायर्ड सैनिको को उनके कर्म और बलिदानों के लिए सम्मानित कर पुनः उनके कुनबे और परिवार में ऊर्जा भर दी है। श्री राकेश चन्द्र शिवहरे के सम्मान पर उनका पूरा परिवार और कलचुरी शिवहरे जायसवाल समाज गौरान्वित महसूस कर रहा है।
बता दें कि 1971 के युद्ध में विजय का पचासवां वर्ष ‘स्वर्णिम विजय वर्ष’ के रूप में मनाया जा रहा है। बीते वर्ष 16 दिसंबर, 2020 को दिल्ली स्थित नेशनल वार मेमोरियल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार स्वर्णिम विजय मशालें जलाकर देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा था। इन्हीं में से एक मशाल बीते रोज रायपुर पहुंची जिसका साइंस कॉलेज ऑडीटोरियम में स्वागत हुआ, और इस दौरान श्री राकेशचंद्र शिवहरे समेत छत्तीसगढ़ के उन सभी सैनिकों व उनके परिवारों का सम्मान किया गया जिन्होंने 1971 की लड़ाई में भाग लिया था।
मूल रूप से बांदा (उत्तर प्रदेश) के निवासी श्री राकेशचंद्र शिवहरे पुत्र स्व. बाबूलाल शिवहरे बताते हैं कि 1966 में उनका चयन भारतीय वायु सेना में हुआ था, बंगलोर में कड़ी ट्रेनिंग और पोर्ट ब्लेयर, अंडमान आदि जगह युद्धाभ्यास में भाग लेने के बाद 1971 में उनकी पोस्टिंग कानपुर चेकरी ATC एयर ट्रैफिक कंट्रोल एयर बेस पर हुई। इसी दौरान पाकिस्तान ने जंग छेड़ दी और भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को दो टुकड़े करने का संकल्प लेकर मुंहतोड़ जवाब दिया।
उस युद्धकाल में कानपुर एयरबेस चेकरी एयरफोर्स की वार प्लानिंग का प्रमुख केंद्र बन गया था जहां से ‘नार्थ साउथ इस्ट् वेस्ट’ मूवमेंट, हवाई जहाजों का इमरजेंसी रिपेयर, रेफ्यूलिंग, बेस रिपेयर डिपो के साथ टोटल ब्लैकआउट, अंधेरे में वायुयानों की खुफिया आपात लैंडिंग और टेकऑफ जैसे बेहद हैरतंगेज कारनामो को मोनिटर करने के साथ एयर ट्रूप की मूवमेंट को कवर किया गया। चूंकि वायुसैनिक मोर्चे की पूरी प्लानिग को मोनिटर करके ही फाइटर पायलट को जंग में भेजते है और इस युद्ध कौशल की पूरी सटीक प्लानिग सामरिक एयर बेस से ही की जाती है। तीनों सशस्त्र बलों के अदम्य साहस एवम राजनीतिक इच्छाशक्ति के फ़लस्वरूप हमने 1971 की जंग जीती और उस यद्ध यज्ञ की पावन समिधा में हर इक सैनिक और देशवासी का योगदान इतिहास में अंकित हो गया।
श्री राकेश चन्द्र शिवहरे का जन्म सन 1946 में बदौसा, जिला बाँदा (उ.प्र.) में हुआ। गुजरबसर की जद्दोजहद में माता पिता के साथ करीब 2 बरस की बाल्यावस्था में ही तत्कालीन मध्यप्रदेश की तहसील बैकुंठपुर आ गए जो अब छत्तीसगढ़ का हिस्सा है। यहीं उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई और बीएससी करने के बाद वायुसेना में चयन हो गया। परिवार अपने बड़े पुत्र को सेना में भेजने को राजी नहीं था, लेकिन श्री राकेशचंद्र शिवहरे की हठ के आगे उन्हे मानना ही पड़ा।
वर्तमान में श्री राकेशचंद्र शिवहरे एयरफोर्स से रिटायर होने के बाद अपने तीन पुत्रो के साथ छत्तीसगढ़ के बैकुंठपुर कोरिया की माटी का मान बढ़ा रहे हैं। ज्येष्ठ पुत्र डॉ राका शिवहरे और पुत्रवधु डॉ शिखा जायसवाल रायपुर में स्वयं का अस्पताल संचालित कर रहे है। मधुमेह विशेषज्ञ के रूप में डॉ. राका शिवहरे की क्षेत्र में विशेष ख्याति है। राकेशजी के दो छोटे पुत्रों श्री रिप्पल शिवहरे एवं श्री ऋषि शिवहरे बैकुंठपुर में पिता के साथ स्वयं का व्यवसाय संभाल रहे हैं। राकेश जी और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णा शिवहरे, दोनों ही मां गायत्री के उपासक है और स्व गुरु श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा दीक्षित हैं।
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