कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी, सहस्रार्जुन सप्तमी, रविवार, दिनांक 19 नवंबर 23 को सहस्रार्जुन जयंती है। इस पावन अवसर पर प्रत्येक हैहयवंशी क्षत्रिय ने अपने निवास और कार्यालय में दीपदान और भगवान श्री सहस्रार्जुन का पूजन कर जन्मोत्सव मनाना चाहिए।
इस अवसर पर आयोजित सामुहिक कार्यक्रम में समाज संगठनों के पदाधिकारियों का यह प्रथम कर्तव्य और नैतिक जिम्मेदारी है कि उन्होंने समाज के सभी वर्गों और प्रत्येक परिवार और व्यक्ति की सक्रियता और सहभागिता सुनिश्चित करनी चाहिए। श्री अर्जुन कार्तवीर्य भगवान श्रीहरि विष्णु और माता देवी लक्ष्मी की संतान एकवीर हैहय जो हैहयवंश के जनक थे, के वंशज और महाराजा कृतवीर्य के पुत्र, हैहयवंश के कुलदीपक एवं सभी हैहयवंशी क्षत्रियों के आराध्य हैं।
महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण अर्जुन जो कार्तवीर्य कहलाते थे को गुरु भगवान श्री दत्तात्रेय की कृपा और आशीर्वाद से प्राप्त सहस्र भुजा के वरदान के बाद सहस्रबाहु, सहस्रार्जुन और कार्तवीर्याजुन कहा गया। तंत्र-मंत्र के जनक और सिद्धियों के कारण उनको देवताओं की श्रेणी में स्थान प्राप्त हुआ। इसी कारण सनातन हिंदू धर्म के बहुत से ग्रंथों और पुराणों में भगवान श्री सहस्रार्जुन का प्रमुखता से उल्लेख और गुणगान किया गया है।
भगवान श्री सहस्रार्जुन सप्तमी, जयंती के अवसर पर मनाए जाने वाले जन्मोत्सव में केवल हैहयवंश कुलदीपक भगवान श्री सहस्रार्जुन का पूजन किया जाना चाहिए। जिस तरह श्रीराम नवमी को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का, श्री हनुमान जयंती को महाबली, वज्रांगी हनुमान का और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को योगीराज श्रीकृष्ण का किया जाता है। भगवान श्री सहस्रार्जुन के साथ किसी अन्य महापुरुष का चित्र या प्रतिमा रखकर भगवान श्री सहस्रार्जुन के साथ उनका पूजन या आरती नहीं करना चाहिए और सभी हैहयवंशियों ने इसका पालन करना चाहिए। जन्मोत्सव शोभायात्रा में भी भगवान श्री सहस्रार्जुन के साथ भगवान श्री हरि विष्णु, माता देवी लक्ष्मी और भगवान गुरुदेव श्री दत्तात्रेय के चित्र और प्रतिमाओं को ही मुख्य रूप से प्रदर्शित किया जाना चाहिए। इस अवसर पर हमें अपनी एकता और एकजुटता से सनातन हिन्दू धर्म के अनुरूप अपने हैहयवंश की जनमानस में पहचान को बनाए रखने का विशेष प्रयास और प्रयत्न करना चाहिए जिससे शासन-प्रशासन में हमारी सामाजिक, आर्थिक , शैक्षणिक प्रगति की योजनाओं और राजनैतिक सहभागिता पर गंभीरता पूर्वक विचार किया जाए और इसके सुखद परिणाम से हमारा समाज लाभान्वित हो। हमेशा ध्यान रखें, हैहयवंश यह चंद्रवंश और यदुवंश से अलग वंश है।
ॐ स्वस्ति अस्तु।
–पवन नयन जायसवाल
राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष-अखिल भारतीय जायसवाल (सर्ववर्गीय) महासभा
संयोजक- भगवान श्री सहस्रार्जुन जन्मोत्सव जागरुकता अभियान
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