वाराणसी।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सातवें एवं अंतिम चरण में 9 जिलों की 57 सीटों पर सोमवार 7 मार्च को मतदान होना है। इस चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी मतदान होना है, लिहाजा एक तरह से पीएम मोदी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। और, दांव पर लगी है योगी सरकार के मंत्री रविंद्र जायसवाल की प्रतिष्ठा भी। यह देखना रोचक होगा कि रविंद्र जायसवाल वाराणसी उत्तरी विधानसभा सीट से जीत की हैट्रिक लगा पाते हैं या नहीं।
शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विधानसभा क्षेत्र में भी रोड शो किया है और माना जा रहा है कि मतदान में इसका असर दिखाई पड़ सकता है। रविंद्र जायसवाल ने पहले 2012 और फिर 2017 के चुनाव में इस सीट पर कामयाबी हासिल की थी। रविंद्र जायसवाल के बारे में खास बात है कि उन्होंने विधायक के रूप में कभी सैलरी ली है, परिवार या स्वयं का खर्चा उनके डिग्री कालेज से ही चलता है। जबकि, विधायक निधि से अपने क्षेत्र में उन्होंने कई काम कराए हैं। इस बार भी साफ छवि वाले रविंद्र जायसवाल की जीत की प्रबल संभावनाएं मानी जा हैं लेकिन विपक्षी दलों ने इस बार उन्हें मजबूती से घेर रखा है। सपा और कांग्रेस की ओर से मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाने के बाद ध्रुवीकरण का खेल खेलने की कोशिश भी की जा रही है।
उत्तरी सीट पर वैश्य मतदाताओं की संख्या करीब एक लाख है। इन वैश्यों में भी जायसवाल (कलार) बड़ी संख्या में हैं और रविंद्र जायसवाल को इन स्वजातीय वोटरों का भारी समर्थन है। यही नहीं, जायसवाल के समर्थन में जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक जायसवाल (इंदौर), महासचिव अटल कुमार गुप्ता (कोयंबटूर), कार्यकारी अध्यक्ष अजय कुमार जायसवाल (लखनऊ) और राजाराम शिवहरे (भोपाल), राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष कैलाश धनेष्ठा (जयपुर) और प्रदेश संगठन मंत्री दीपक जायसवाल (लखनऊ) और नवीन प्रकाश सिंह (लखनऊ) आदि ने भी उत्तरी सीट पर स्वजातीय बंधुओं से संपर्क कर रविंद्र जायसवाल के लिए समर्थन जुटाया। वैश्यों के अलावा यहां दूसरी बड़ी संख्या मुस्लिम मतदाताओं की है जो 70 हजार वोटों के साथ हार-जीत तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या करीब 70000 और क्षत्रिय मतदाता करीब 40,000 हैं।
पिता ने लिया था वचन, इसीलिए नहीं लेते सैलरी
वाराणसी में जन्मे रविंद्र जायसवाल के पिता रामशंकर जायसवाल संघ (आरएसएस) के कार्यसेवक थे। रविंद्र जायसवाल के राजनीति में आने से पहले उनके पिता ने उनसे वादा लिया था कि राजनीति का पैसा कभी घर मत लाना। इसलिए उन्होंने आज तक सैलरी का एक पैसा भी घर पर खर्च नहीं किया है। उन्होंने अपनी विधायक निधि क्षेत्र में तमाम विकास कार्य कराए और कोविड काल में उन्होंने विधायक निधि से राजकीय आयुर्वेद कालेज की स्थापना कराई, एफएचएनसी मशीनें, ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदे ताकि क्षेत्र की जनता की मदद हो सके। रविंद्र जायसवाल की पत्नी अंजू जयसवाल ने बताया, ये फख्र की बात है कि मेरे पति कभी अपनी सैलरी का एक भी पैसा घर नहीं लाए। डिग्री कॉलेज से परिवार चलता है। रविंद्र जायसवाल के दो बच्चे हैं-एक बेटा और एक बेटी। दोनों अभी पढ़ाई कर रहे हैं।
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