आगरा।
आगरा के ऐतिहासिक रामबरात एवं जनकपुरी महोत्सव से जुड़े स्थानीय शिवहरे समाज के गौरवशाली अतीत की इस कड़ी में हम सबसे बड़े अध्याय की बात करेंगे। यह 46 साल पहले की बात है, जब आगरा में सदरभट्टी चौराहा स्थित शिवहरे समाज की प्रमुख धरोहर दाऊजी मंदिर को जनकपुरी बनाया गया था, और स्व. श्री सालिगराम शिवहरे बने थे राजा जनक।
इस बारे में दाऊजी मंदिर समिति के महासचिव श्री आशीष शिवहरे (जिज्ञासा पैलेस) ने शिवहरेवाणी को न केवल महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं, बल्कि इस आयोजन से जुड़ी एक फोटो एलबम भी शेयर की है जिसे शिवहरेवाणी आप तक पहुंचाने का काम करेगी। वह तारीख थी 20 सितंबर, 1976 जो कि फोटो एल्बम पर अंकित है। इस दिन रामबरात निकली थी और अपने तय रास्तों से होते हुई जनकपुरी बने दाऊजी मंदिर पहुंची थी। राजा जनक बने थे स्व. श्री सालिगराम शिवहरेजी जो तत्कालीन दाऊजी मंदिर समिति को कोषाध्यक्ष स्व. श्री किशन स्वरूप शिवहरे ‘पोपल बाबू’ के पिताश्री थे। पोपल बाबू दाऊजी मंदिर के मौजूदा महासचिव श्री आशीष शिवहरे के पिताजी थे, इस तरह स्व. श्री सालिगराम शिवहरे उनके बाबा हुए।
जनकपुरी के लिए दाऊजी मंदिर को शानदार तरीके से सजाया गया था। विद्युत सजावट के लिए डबरा के एक टैंट हाउस को कांटेक्ट दिया गया था। धाकरान चौराहा से लेकर सदरभट्टी चौराहा, कलक्ट्रेट चौराहा से लेकर सदरभट्टी चौराहा, हींग की मंडी से लेकर सदरभट्टी चौराहा और मंटोला से लेकर सदरभट्टी चौराहा तक, यानी दाऊजी मंदिर की ओर आने वाले सभी मार्गों पर शानदार विद्युत सजावट की गई थी। इन मार्गों के सभी सिरों पर आकर्षक गेट सजाए गए थे। दाऊजी मंदिर को बिजली की झालरों से लकदक कर दिया गया था। मंदिर के मुख्य गेट के ऊपर विद्युत झालरों से चलित झांकी बनाई गई थी जिसमें एक सिरे से भगवान राम और दूसरे सिरे से माता सीता हाथ में वरमाला लेकर आते हैं और एक-दूसरे को वरमाला पहनाते हैं। जनकपुरी में पहली बार इस तरह की चलित झांकी बनाई गई थी।
सबसे खास तथ्य यह है कि पहली बार मंटोला की संकरी गलियो में रहने वाले मुस्लिम समाज ने भी अपने खर्चे पर अपने-अपने घरों को शानदार सजावट कर अपने क्षेत्र में जनकपुरी बनाए जाने की खुशी व्यक्त की थी। आपको बता दें कि उस दौर में जनकपुरी में कोई भव्य जनकमहल नहीं बनाया जाता था, जैसा कि अब बनाया जाता है। राम-सीता व अन्य स्वरूपों के दर्शन के लिए एक स्टेज अवश्य बनाया जाता था ताकि लोग उनके दर्शन कर सकें। इस जनकपुरी में दाऊजी मंदिर के ठीक बगल में एक खाली जगह पर स्टेज बनाया गया था। इस जगह अब पंडितजी का मार्केट (दाऊजी मंदिर मार्केट में राजीव शिवहरे की मिठाई की दुकान के बगल में) बन गया है। समाज के लिए गौरव की बात यह है कि जिस तरह आजकल जनकपुरी आयोजनों में अग्रवाल समाज की बढ़-चढ़कर भागीदारी होती है, वैसी ही भागीदारी 1976 की जनकपुरी में शिवहरे समाज की रही थी।
स्व. बाबू श्री गोपीचंद जी शिवहरे, दाऊजी मंदिर समिति के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. श्री जौहरीलालजी शिवहरे, स्व. श्री शिवनारायणजी शिवहरे, स्व. श्री मंगलसेन जी शिवहरे, स्व. श्री पन्नालाल जी शिवहरे, स्व. श्री चिरंजीलाल शिवहरे (मास्टर साहब), स्व. श्री रमेशंचंद्रजी शिवहरे (लोहामंडी), स्व. श्री मनमोहन जी शिवहरे (शाहजी दरबार), स्व. श्री विनोद गुप्ता एडवोकेट समेत कई प्रतिष्ठित समाजबंधुओं ने सक्रिय भागीदारी की थी। लेकिन, दाऊजी मंदिर को जनकपुरी बनाने में सबसे बड़ी भूमिका स्व. श्री रामभरोसी ‘महाशय जी’ की थी। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और समाजसेवी स्व. श्री महाशयजी गऊशाला और रामलीला कमेटी के आजीवन सदस्य थे। रामलीला कमेटी में उनका विशेष सम्मान था और कोई उनकी बात को काटता नहीं था। उन्होंने ही दाऊजी मंदिर को जनकपुरी बनाने का प्रस्ताव रामलीला कमेटी में रखा था, जिसे पारित होना ही था।
दाऊजी मंदिर को जनकपुरी बनाने की घोषणा के बाद सवाल उठा कि राजा जनक बनने की जिम्मेदारी कौन लेगा। जैसा कि श्री आशीष शिवहरे बताया, सबसे पहले ‘नगर सेठ’ की हैसियत वाले बाबू गोपीचंदजी शिवहरे के सामने राजा जनक बनने का प्रस्ताव समाजबंधुओं ने रखा था। लेकिन, किन्हीं कारणों से उन्होंने विवशता व्यक्त कर दी। तब तत्कालीन दाऊजी मंदिर समिति के कोषाध्यक्ष श्री पोपलबाबू के पिताजी श्री सालिगरामजी शिवहरे ने राजा जनक बनना स्वीकार किया। श्री आशीष शिवहरे ने बताया कि उस जमाने में श्री सालिगरामजी शिवहरे ने 14 हजार रुपये खर्च किए थे। यह वह दौर था जब सोना 432 रुपये तोले के भाव था। सोने के मौजूदा भाव से इस राशि की गणना करें तो यह 16 लाख रुपये से अधिक बैठती है।
उस दौर में राजा जनक की ओर से रामलीला कमेटी के पदाधिकारियों की भव्य बड़ी दावत की जाती थी। यह दावत भी दाऊजी मंदिर में हुई थी, जिसमें 500 लोगों के भोजन की व्यवस्था की गई थी। दावत में तरह तरह के व्यंजन और मिठाइयां परोसी गई थीं। राजा जनक (श्री सालिगराम शिवहरे) ने कन्यादान में चार सोने की अंगूठियां भेंट की थीं। श्री आशीष शिवहरे ने जो ब्लैक एंड व्हाइट एल्बम साझा की है, वह सदरभट्टी चौराहा स्थित मधु स्टूडियो ने तैयार की थी। एलबम के चित्रों से उस जनकपुरी की भव्यता और आयोजन में शिवहरे समाज की बढ़ी-चढ़ी भूमिका स्पष्ट हो जाती है। चित्रों में कई चेहरे हैं जिनमें कइयों को पहचान नहीं हो पा रही है। शिवहरेवाणी इस एलबम को अपनी गैलरी में कैप्शन सहित संरक्षित करेगी। उम्मीद है कि आप इन चित्रों में अपने पूर्वज को पहचानेंगे और यदि कैप्शन में हम उनके नाम का उल्लेख नहीं कर पाए हैं तो हमें मोबाइल (8218069962) पर इसकी जानकारी अवश्य दें। हम कैप्शन में उनका नाम जोड़कर भूल सुधार करेंगे।
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