November 24, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाज

सॉरी प्रोफेसर साहब..हमसे वो लम्हा ‘छिन’ गया

by Som Sahu July 13, 2017  घटनाक्रमजानकारियां 372

सोम साहू

आगरा।

अंततः हम हार गए। वो कैमरा चिप जिसमें 2 जुलाई के समारोह की बेशकीमती फोटोज कैद थीं,  करप्ट हो गई। रिकवरी की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं। आखिरी उम्मीद ताजगंज के अमित शिवहरे पर टिकी थीं, लेकिन आज जब उसने मुझे फोन कर चिप से फोटो रिकवर नहीं हो पाने की नदामत जाहिर की, तो मेरे भी अफसोस का पारावार नहीं रहा। सबसे ज्यादा दुख तो यह है कि प्रोफेसर श्यामबाबू शिवहरे को सम्मानित किए जाने के क्षणों की कोई यादगार हमारे पास नहीं है। शिवहरे समाज एकता परिषद की ओर से आयोजित इस मेधावी छात्र-छात्रा सम्मान समारोह में उन्हें शिवहरे शिक्षा रत्नसे सम्मानित किया गया था।

मुझे लगता है कि उम्र के आठवें दशक में चल रहे किसी कृषकाय व्यक्ति को अपनी उम्रभर की उपलब्धियों के लिए सम्मानित होने की खुशी शायद रिटायमेंट फंड मिलने की खुशी से कम नहीं होती होगी, क्योंकि उम्र के इस पढ़ाव पर आकर व्यक्ति आमतौर पर समाज और परिवार में उपेक्षा का शिकार हो जाता है। हालांकि प्रो. श्यामबाबू शिवहरे के लिए यह बात पूरी तरह फिट नहीं बैठती क्योंकि तमाम बीमारियों के हमलों के बाद भी उन्होंने खुद को सक्रिय रखा है। वह आज भी अपने स्कूल में दो घंटे की ड्यूटी देते हैं। यह उनके अंदर के शिक्षक के पूरी तरह चेतन्त और सक्रिय होने का ही प्रमाण था कि 2 जुलाई के कार्यक्रम में वह निर्धारित समय पर पहुंच गए, लेकिन अचानक तेज बारिश के कारण कार्यक्रम ही लेट शुरू हुआ। बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी, और इधर प्रो. श्यामबाबू शिवहरे इतने बीमार थे कि इंतजार करने की स्थिति में नहीं थे। उन्हें प्रोस्टेड की भारी दिक्कत है, शरीर भी गतिशील नहीं है। बड़े झिझकते हुए उन्होंने मुझसे कहा, ‘मैं ज्यादा देर रुक नहीं सकता, मेरी तबीयत बिगड़ जाएगी।अब क्या किया जाए। जिन अतिथियों को मंच पर होना था, उन्हें बारिश ने रास्ते में रोक रखा था। इधर मामा (प्रो. श्यामबाबू शिवहरे मेरे बड़े मामा हैं) के चेहरे के लाचारी के भाव बढ़ते जा रहे थे, जाना चाहते थे मगर न जा पाने की लाचारी। मैंने उन्हें ज्यादा देर तक रोकना मुनासिब नहीं समझा और माइक पर शिवहरे समाज एकता परिषद के अध्यक्ष श्री अतुल शिवहरे और संयोजक श्री अमित शिवहरे को उनकी टीम के साथ आमंत्रित कर दिया। पूरी टीम ने उस समय वीआईपी दीर्घा में बैठे प्रो. श्यामबाबू शिवहरे को वहीं सम्मानित किया, उनके चरण स्पर्श कर उनका आशीष लिया। हमने जो कैमरामैन हायर किया था, वह एक के बाद एक क्लिक किए जा रहा था।

उस बारिश ने सारी प्लानिंग फेल कर दी थी। प्रो. श्यामबाबू शिवहरे को मंच पर होना था, मेधावी बच्चों को सम्मानित करना था, तब जिलाधिकारी श्री गौरव दयाल और मंच अध्यक्ष श्री विजय शिवहरे के हाथों उन्हें शिक्षा रत्न से विभूषित किया जाना था। इससे पहले उनका एक प्रभावशाली परिचय मंच से मुझे देना था। लेकिन कुछ नहीं हो पाया। चूंकि शिवहरे वाणी प्रकाशन इस कार्यक्रम में इवेंट पार्टनर था और इसकी विस्तृत कवरेज शिवहरे वाणी डॉट कॉम पर जानी थी, तो सोचा था कि यहां की कसर वहां पूरी कर लेंगे। लेकिन उसी शाम जब फोटोग्राफ से चिप लेकर कंप्यूटर पर लगाई तो होश उड़ गए। चिप करप्ट थी। उसे रिकवर कराने की कोशिश की, तब तक कार्यक्रम से जुड़े कई समाचार पोर्टल पर डालने से रोक दिए, यह सोचकर कि फोटोज के साथ डालना उचित रहेगा। चिप अपनी रिकवरी के लिए संजय प्लेस में तमाम स्पेशलिस्ट के हाथों में सफर करती रही। अंत में ताजगंज के अमित शिवहरे के पास पहुंची, जो खुद भी कुशल फोटोग्राफर रहे हैं। लेकिन, आज हार मानने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है। हमें लगता है कि नियति ने हमसे एक बेशकीमती लम्हा छीन लिया।

शिवहरे समाज एकता परिषद ने प्रो. श्यामबाबू शिवहरे को शिक्षा रत्न से विभूषित करने के निर्णय इसलिए लिया था कि मेधावी बच्चों के समक्ष शिक्षा क्षेत्र के एक आइकनको पेश करना था। इसमें कोई दो राय नहीं कि आज की पीढ़ी शिक्षा के मामले में एक कम्फर्ट जोन में है। आज के अभिभावक बच्चों की शिक्षा पर होने वाले खर्च को इनवेस्टमेंट मान रहे हैं। ऐसे में बच्चों के सामने एक और एकमात्र लक्ष्य शिक्षा मे अपना बेस्ट देने का है। चूंकि आज व्यावसायिक शिक्षा का दौर है लिहाजा नौकरी या करियर में भी ज्यादा दिक्कत नहीं आती। इससे कहीं अधिक संघर्ष पिछली पीढ़ी ने किया। 1980 और 90 के दशक में शिक्षा में इतने विंग्स नहीं थे। प्रदेश में गिनेचुने इंजीनियरिंग कालेज थे और चार मेडिकल कालेज। बीए, बीएससी या बीकाम करना और फिर एमएम करना युवाओं की मजबूरी थी। इसके बाद नौकरी के लिए संघर्ष। लेकिन प्रो. श्यामबाबू शिवहरे जिस पाढ़ी की नुमाइंदगी करते हैं, वह शिक्षा पाने के लिहाज से सबसे कठिन दौर था। शिक्षा महंगी थी और कुछ अमीर परिवारों के बच्चों तक महदूद थी।  उस दौर में जब शिक्षा और साक्षरता में फर्क नहीं समझा जाता था, प्रो. श्यामबाबू शिवहरे ने शिक्षा के लिए आर्थिक स्तर पर, पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर जो संघर्ष किया, जिसका वर्णन हम पहले दिए समाचार में कर चुके हैं।

(प्रो. श्यामबाबू शिवहरे का जीवनवृत्त जानने के लिए शिक्षा के लिए संघर्ष की मिसाल हैं प्रो. श्यामबाबू शिवहरेशीर्षक से दिए गए समाचार को पढ़ें।)

 

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