by Som Sahu July 17, 2017 खेल, घटनाक्रम 206
नेपाल में इंडो-नेपाल बेडमिंटन सीरीज में झटके पांच सिल्वर मैडल
मां के इरादों ने मजबूरियों को दी शिकस्त, बेटे के लिए जुटाई मदद
मध्य प्रदेश में बुरहानपुर के गांव डोइफोड़िया में एक ‘संघर्ष गाथा’
शिवहरे वाणी नेटवर्क
भोपाल
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले का अब तक गुमनाम सा गांव डोइफोडिया इन दिनों अचानक से सुर्खियों में आ गया है। वजह है होनहार बेडमिंटन खिलाड़ी कार्तिकेय शिवहरे। हाल में ही नेपाल के पोखरा में हुई इंडो-नेपाल सीरीज में कार्तिकेय ने 5 सिल्वर मेडल झटके। हालांकि, बात सिर्फ इतनी ही नहीं है। कार्तिकेय के गरीब परिजनों के पास बेटे के लिए नेपाल जाने का खर्च उठा पाना तो दूर, उसके लिए अच्छे जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे। लेकिन मां के मजबूत इरादों के आगे सारी बाधाएं कमजोर पड़ती गईं। बेटे के लिए सहायता जुटाने के लिए मां मीडिया में गई, नेताओं से मिलीं, अफसरों से मिली। कोशिश रंग लाई। आर्थिक सहायता मिलने पर कार्तिकेय नेपाल जा सका, और वहां से 5 सिल्वर मैडल लेकर लौटा।
डोइफोडिया गांव में रहने वाले श्री चंद्रशेखर शिवहरे और श्रीमती अर्चना शिवहरे का बड़ा पुत्र कार्तिकेय बहुमुखी प्रतिभा का धनी है। वह बेडमिंटन का अच्छा खिलाड़ी होने के साथ ही पढ़ाई में भी बहुत अच्छा है। उसने गांव के न्यू ज्ञानदीप हायर सेकेंडरी स्कूल में हाल में कक्षा 12 में टॉप किया है। बायोलॉजी स्ट्रीम का छात्र कार्तिकेय बेडमिंटन की स्पर्धाओं में भाग लेता रहा तो उसकी प्रतिभा ने सबका ध्यान आकर्षित किया। वह नेशनल जूनियर स्पर्धाओं में शानदार प्रदर्शन करता रहा। इस बीच एमेच्योर गेम्स एंड स्पोर्ट्स प्रमोशन फेडरेशन ऑफ इंडिया के बैनर तले नेपाल के पोखरा में 3 से 7 जुलाई के बीच इंडो-नेपाल सीरिज का आयोजन हुआ जिसमें भारतीय दल में कार्तिकेय का चयन किया गया। अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिभा के सामने आने का मौका था, बड़ी बात थी। लेकिन नेपाल जाने का किराया और अन्य कुछ खर्चा उसे ही वहन करना था जो करीब 20 हजार रुपये था।
यही सबसे बड़ी समस्या थी। पिता चंद्रशेखर समर्थ नहीं हैं, 16 साल पहले एक सड़क दुर्घटना में उनके हाथ-पैर औऱ सिर में इतनी गंभीर चोटें आईं कि काम नहीं कर सकते। परिवार की पूरी जिम्मेदारी मां श्रीमती अर्चना शिवहरे उठाती हैं। गृह उद्योग चलाती हैं, परिवार चलाने लायक ही कमा पाती हैं। 15-20 हजार बहुत बड़ी बात थी। अर्चना नहीं चाहती थीं, तंगी का असर बेटे के उज्ज्वल भविष्य पर पड़े। वह नेपानगर की विधायक मंजू दादू से मिलीं, जिन्होंने 5 हजार रुपये का आश्वासन दिया। लेकिन इतने से काम बनने वाला नहीं था।
मीडिया में गईं और अपनी व्यथा बताई। मीडिया ने कार्तिकेय की प्रतिभा को सबसे सामने लाने का काम किया। असर यह हुआ कि जिला कलक्टर ने अर्चना शिवहरे को बुलाया। रेडक्रास सोसायटी की ओऱ से दस हजार रुपये की आर्थिक मदद के साथ ही कार्तिकेय के लिए ब्रांडेड जूते, रैकेट तथा अन्य सामान भी दिलवाया। अंततः कार्तिकेय नेपाल रवाना हो गया। नेपाल से कार्तिकेय ने एक के बाद एक कामयाबी हासिल कर अपनी सहायता करने वालों का अपने अंदाज में आभार व्यक्त करता रहा। बीती 11 जुलाई को कार्तिकेय नेपाल से लौटा तो पूरा गांव उसके स्वागत में उमड़ पड़ा। पिता चंद्रशेखर की खुशी का ठिकाना नहीं था, छोटा भाई देवांश खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। और मां…अर्चना शिवहरे ने लाल की आरती उतारी, उसका तिलक किया, उसके तमगों को चूमा और…तब खुशी से आंखें छलक आईं। आंखें तो छलकनी हीं थीं ..रात-दिन सोते-जागते जो ख्वाब देखा था इन आंखोॆ ने, वो आज सामने था, बेटा कार्तिकेय ‘द चैंपियन’।
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