by Som Sahu July 31, 2017 Uncategorized, घटनाक्रम 191
शिवहरे वाणी नेटवर्क
आगरा
राष्ट्रगीत ‘वंदेमातरम’ को लेकर इन दिनों चर्चा जोरों पर है। बीती 17 जुलाई को मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के सभी स्कूलों में सप्ताह में कम से कम एक बार राष्ट्रगीत का गायन अनिवार्य करने का आदेश दिया, तो महाराष्ट्र में भी ऐसी आवाजें उठ रही हैं। इसी बहस-मुबाहिस के बीच आज भाजपा के मुख्तार अब्बास अंसारी का बयान आया है कि वंदेमातरम नहीं गाना देशद्रोह नहीं है। मैं इन घटनाक्रमों पर मनन कर रहा था, कि अनायास ही सुप्रीमकोर्ट का वो फैसला याद आ गया, जिसमें सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाए जाने का आदेश दिया था। और, पिछले वर्ष नवंबर में आए सुप्रीमकोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले का जब भी जिक्र होगा, तो एक शख्स के नाम के बिना वह अधूरा ही रहेगा। वह हैं श्री श्याम नारायण चौकसे, इंसानियत के अलमबरदार, गांधीजी के सच्चे अनुयायी। सुप्रीमकोर्ट का फैसला उनके 14 साल के संघर्ष का ही परिणाम था। यहां तक कि राष्ट्रगीत पर अपने फैसले में भी मद्रास हाईकोर्ट ने ‘श्याम नारायण चौकसे बनाम भारतीय संघ’ के वाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया।
कौन हैं श्री श्याम नारायण चौकसे आइये जानते हैं। भोपाल निवासी 77 वर्षीय श्री चौकसे इंजीनियर हैं और वर्ष 2000 में सेंट्रल वेयरहाउसिंग कारपोरेशन से रिटायर हुए थे। वह ‘राष्ट्रहित गांधीवादी मंच’ नाम से एक सामाजिक संस्था भी चलाते हैं, और इसके जरिये वे पर्यावरण के मुद्दों को भी उठाते रहे हैं।
करीब 14 वर्ष पहले शाहरुख खान की फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ देखने भोपाल के एक सिनेमा हाल गए थे। फिल्म के एक सिक्वेंस में राष्ट्रगान बजा तो वह उसके सम्मान में खड़े हो गए। लेकिन, श्री चौकसे ने पाया कि उनके खड़े होते ही पीछे से ‘बैठ जाइये-बैठ जाइये’ का शोर होने लगा। श्री चौकसे ने उन लोगो से कहा, ‘आप बैठने की क्यों कह रहे हैं, आपको भी ख़ड़ा हो जाना चाहिए।’ इतनी ही बात में 52 सेकंड पूरे हो गए और राष्ट्रगान समाप्त। इस घटन से श्री चौकसे आहत हुए, और उन्होंने तभी तय कर लिया कि वह राष्ट्रगीत का सम्मान बनाए रखने और इसके व्यावसायिक प्रयोग पर रोक लगवाने के लिए संघर्ष करेगे।
उन्होने जबलपुर में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की। 2003 में हाईकोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्रा ने फिल्म से राष्ट्रगान हटाए जाने का फैसला सुनाया। लेकिन तब फिल्म के निर्माता-निर्देशक करण जौहर ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे ले लिया। श्री चौकसे विचलित नहीं हुए, बल्कि एक सत्य के लिए अपने आग्रह को और मजबूत करने में जुट गए। वह लोगों से मिलकर राष्ट्रगान को यथोचित सम्मान देने की समझाइश देते रहे।
वर्ष 2014 में एक ऐसी राजनीतिक घटना हुई जिसने श्री चौकसे को एक बार फिर अदालत का दरवाजा खटखटाने को बाध्य कर दिया। तमिलनाडु की पूर्व सीएम जययलिता के शपथग्रहण समारोह में राष्ट्रगान को 52 सेकेंड के बजाय 20 सेकेंड बजाया गया। इस पर उन्होंने भोपाल में एक जनहित याचिका दाखिल कर दी। इसके बाद सितंबर 2016 को उन्होने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल कर राष्ट्रगान के व्यावसायिक इस्तेमाल पर रोक लगने की मांग की। दिसंबर मे सुप्रीमकोर्ट ने सिनेमाहाल में हर शो से पहले राष्ट्रगान बजाया जाना और उसके सम्मान में दर्शकों का खड़ा होना अनिवार्य कर दिया। श्री चौकसे अपनी एक अन्य याचिका को लेकर भी चर्चा में रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि की दुर्दशा को देखकर एक याचिका दाखिल की थी। आज जरूरत है कि देश का हर व्यक्ति अपने देशहित के मुद्दों पर उतना ही चौकस हो, जितने श्री चौकसे हैं। हर व्यक्ति के अंदर देशभक्ति की वही जज्बा हो, जो श्री चौकसे में हैं। श्री श्याम नारायण चौकसे की चौकसी को सलाम, उनके जज्बे को सलाम।
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