झांसी।
ललितपुर जिले के जमालपुर गांव की नेहा शिवहरे अब अपने ससुराल में राजी-खुशी से है, बहुत खुश है। झांसी के वे तमाम लोग नेहा की खुशी पर निसार हैं जिन्होंने सात साल पहले नेहा को मौत के मुंह से निकाल लाने का बीड़ा उठाया था, और इसमें कामयाब हुए थे।
जमालपुर के भागीरथ शिवहरे की पुत्री नेहा का विवाह बीती 10 मार्च को सागर जिले के गांव बिदिशा तिगौला सेमरा निवासी दौलतराम राय के पुत्र कौशल प्रसाद से हुआ था। भागीरथ शिवहरे इस मौके पर उन लोगों भला कैसे भूल जाते, जिन्होंने कभी उनकी बिटिया को नई जिंदगी बख्शी थी। शादी का कार्ड मिलने पर समाजसेवी एवं अखिल भारतीय जायसवाल समवर्गीय महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सालीगराम राय, अखिल भारतीय जायसवाल समवर्गीय महिला महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सुमन राय एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमती आशा राय (छिंदवाड़ा) ने स्वयं जमालपुर जाकर बिटिया को आशीर्वाद देने का निर्णय लिया। तीनों ने शादी से 4-5 दिन पहले जमालपुर जाकर नेहा और उसके परिवारवालों से मुलाकात की, और 15000 रुपये नकद की राशि विवाह में योगदान के तौर पर उन्हें प्रदान की। इसमें से श्रीमती सुमन राय ने 11000 रुपये और एक सुंदर साड़ी, सलवार-सूट, पायल व थाल भेंट किया। साथ ही शादी के इंतजाम में किसी भी कमी को पूरा करने का भरोसा भी दिया। 10 मार्च को नेहा का धूमधाम से विवाह हुआ। भागीरथ शिवहरे ने दो दिन पहले श्री सालिगराम राय को फोन पर बताया है कि नेहा अपनी ससुराल में बहुत खुश है।
आपको बता दें कि सात वर्ष पूर्व 2016 में 14 साल की रही नेहा एक अजीब बीमारी के गिरफ्त में आकर मौत के कगार पर पहुंच चुकी थी। भागीरथ शिवहरे आर्थिक विपन्नता की हालत में उचित इलाज कराने में अक्षम थे। इस बात की जानकारी ‘कलचुरी कलार समाज, झांसी’ संस्था के अध्यक्ष ह्रदेश राय और तत्कालीन महासचिव सालिगराम राय को हुई तो उन्होंने नेहा का उपचार कराने का निर्णय लिया और उसे झांसी बुलवा लिया। नेहा की हालत देख सभी द्रवित हो गए। 14 साल की नेहा का वजन था महज 14 किलो। हाथ-पांव किसी 3-4 साल के बच्चे की तरह पतले-दुबले थे, पेट पहुंच ज्यादा बाहर निकला हुआ था। सांसें बेहद कमजोर थीं, ऐसा लग रहा था कि अब नहीं, तो तब….यह बच्ची जिंदा बचेगी नहीं।
संस्था के पदाधिकारी नेहा को झांसी के सिविल अस्पताल ले गए जहां चिकित्सक डा. डीएस गुप्ता (शिवहरे) ने उसकी सभी जाचें कराईं, पता चला कि नेहा की किडनी लगभग फेल हो चुकी है, फेफड़े पानी भरने से गलने लगे हैं। नेहा सिविल अस्पताल में दस दिन भर्ती रही, इसके बाद डा. गुप्ता ने उसे मेडिकल कालेज रैफर कर दिया। मेडिकल कालेज में नेहा के फेफड़े से पानी निकाला गया। उसे 6-7 बोतल खून चढ़ाया गया, जिसकी सारी व्यवस्था ‘कलचुरी कलार समाज, झांसी’ ने की। नेहा करीब डेढ़ महीने मेडिकल कालेज में भर्ती रही। सरकारी संस्थान होने के चलते सभी व्यवस्थाएं किफायती थी। उपचार, दवाओं के ऊपर का खर्चा और तीमारदार परिजनों के रहने-खाने का सारा प्रबंध ‘कलचुरी कलार समाज, झांसी’ के साथियों के सहयोग से किया जाता रहा। खतरे की हालत से पूरी तरह उबरने के बाद नेहा को मेडिकल कालेज से छुट्टी दी गई। इसके बाद नेहा का उपचार डा. डीएस गुप्ता की देखरेख में चला। नेहा की नियमित जांचें होती थीं, निरंतर दवाएं चलती थीं और ये सारी व्यवस्था झांसी के कलचुरी समाज की ओऱ से की जाती रहीं। और, एक साल के अंदर नेहा की जिंदगी ही बदल गई। संवेदना और सहयोग की ऐसी सच्ची कहानियां ही समाज के महत्व को परिभाषित करती हैं, सामाजिक एकता के लक्ष्य को निर्धारित करती है।
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