घुघली (महाराजगंज)
आज की राजनीति में आमतौर पर लोग नेताओं के रुतबे की पहचान उनकी गाड़ियों से करते हैं। जिसकी जितनी महंगी, बड़ी और लग्जरी गाड़ी, वह उतना ही बड़ा नेता। यही वजह है कि स्कॉर्पियो, फॉर्च्युनर और इनोवा जैसी गाड़ियों के खरीदारों में एक बड़ी संख्या उन लोगों की है जो किसी न किसी तरह से राजनीति से जुड़े हैं। लेकिन, आज आपको एक ऐसे नेता के बारे में बता रहे हैं जिसकी ‘शान की सवारी’ लोगों को चौंकाती है। राकेश जायसवाल नाम है इनका, घुघली नगर पंचायत के सभासद हैं और आर्थिक रूप से इतने संपन्न भी है कि चाहें तो लग्जरी गाड़ी से घूम सकते हैं, लेकिन वह आज भी साइकिल पर ही चलते हैं, यहां तक कि अपने क्षेत्र में विकास कार्यों का जायजा लेने भी साइकिल से जाते हैं। घुघली और आसपास के क्षेत्र में वह ‘साइकिल वाले नेताजी’ के रूप में विख्यात हैं।
घुघली पूर्वी उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले का एक कस्बा है और राकेश जायसवाल घुघली नगर पंचायत के वार्ड नंबर 9 से निर्वाचित सभासद हैं। राकेश जायसवाल छात्र जीवन से साइकिल चला रहे हैं, बचपन में साइकिल से ही 10 किलोमीटर दूर बसंतपुर स्थित अपने स्कूल जाते थे, उसके बाद कॉलेज भी साइकिल से ही जाया करते थे। अब सभासद बनने के बाद भी उन्होंने साइकिल नहीं छोड़ी है। उनकी साइकिल रोज कम से कम 10 किलोमीटर चलती है। खास बात यह है कि राकेश जायसवाल ने अपने बच्चों को भी साइकिल का संस्कार दिया है। घर में कई सारी साइकिलें हैं, और घर का हर बच्चा साइकिल से ही अपने काम करता है। घर में बाइक और कार भी है जो आकस्मिक परिस्थितियों अथवा लंबी दूरी के सफर में काम आती हैं।
सभासद राकेश का मानना है कि साइकिल को राष्ट्रीय सवारी घोषित कर दिया जाना चाहिए। इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है और स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहता है। साइकिल पर चलने के लाभ गिनाते हुए राकेश जायसवाल बताते हैं कि इससे गठिया और डायबिटीज जैसी बीमारी कोसों दूर रहती हैं। साइकिल चलाने वाले को मार्निंग वॉक, योगासन और प्राणायम करने की जरूरत नहीं रहती। और इन दिनों पेट्रोल-डीजल के बेतहाशा बढ़ते दामों ने भी साइकिल की सवारी को और प्रासंगिक बना दिया है, जाहिर साइकिल पर चलने से पेट्रोल-डीजल का खर्चा बच जाएगा।
राकेश जायसवाल बताते हैं कि वह अपना हर काम साइकिल से ही करने का प्रयास करते हैं। यहां तक कि कोरोना काल में जब प्रवासी मजदूरों की सेवा का अवसर आया तो भी उन्होंने साइकिल से ही घूम-घूम कर प्रवासी मजदूरों की सेवा की। राकेश जायसवाल को खुशी है कि उनके साइकिल चलाने से कई लोग प्रेरित हुए हैं और वह फख्र से कह सकते हैं कि उनकी देखादेखी बहुत से लोगों ने साइकिल चलाना शुरू कर दिया है।
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