May 15, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
शख्सियत समाचार

लालकिले पर तिरंगे को आईपीएस शशांक जायसवाल की सलामी; जो जनसेवा के लिए लग्जरी लाइफ छोड़कर बने आईपीएस अधिकारी

नई दिल्ली।
दिल्ली के तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी शशांक जायसवाल इन दिनों चर्चा में हैं। बीते रोज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राजधानी दिल्ली में लालकिले की प्राचीर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा फहराए गए तिरंगे को सलामी देने का गौरव शशांक जायसवाल को प्राप्त हुआ है। शशांक जायसवाल ने इस परेड में दिल्ली पुलिस की गारद का नेतृत्व किया था।
वर्तमान में पूर्वी दिल्ली जिले के एडिशनल डीसीपी शशांक जायसवाल 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। दिल्ली के शाहदरा में रहने वाले शशांक जायसवाल के बारे में खास बात यह है कि उन्होंने बहुत हाईपैकेज और सुविधाओं वाली लग्जरी कॉरपोरेट लाइफ छोड़कर समाज की सेवा करने के इरादे से पुलिस सेवा ज्वाइन की । 2006 में दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मैकेनिकल इंजीनियरिंग (बीई) करने के बाद शशांक ने देश की एक प्रतिष्ठित कंपनी में दो साल नौकरी की। इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर शीर्ष प्रबंधन संस्थान आईआईएम कोझीकोड से एमबीए की पढ़ाई की। एमबीए करने के बाद उन्होंने एक नामी कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट के पद पर काम किया। यहां उन्होंने पांच वर्ष नौकरी की, वह कंपनी के पॉवर और स्टील पोर्टफोलियो देखते थे। अपने ही देश में दो लाख रुपये प्रतिमाह से अधिक का वेतन, रहने की शानदार सुविधाएं, प्राइवेट जेट्स में सफर..। करियर के लिहाज से सब कुछ स्वप्न सरीखा था लेकिन शशांक जायसवाल कहीं न कहीं इस जॉब में आत्मिक संतुष्टी नहीं मिल रही थी। 
इसकी वजह उनकी पृष्ठभूमि से जुड़ी थी। शशांक जायसवाल के पिता स्व. श्री अक्षय जायसवाल एक प्रतिष्ठित कांग्रेसी नेता थे और कांग्रेस सेवादल के ऑर्गनाइजर भी रहे। जनसेवा के प्रति श्री अक्षय जायसवाल के समर्पण भाव से कांग्रेस का शीर्ष गांधी परिवार तक प्रभावित रहता था। कहीं कोई प्राकृतिक आपदा आए, या कोई बड़ा हादसा होने पर श्री अक्षय जायसवाल अपने सेवादल के साथ तत्काल वहां पहुंचते थे। पुंछ का भीषण भूकंप आया, बद्रीनाथ हादसा हुआ या फिर कोरोना की महामारी आई, श्री अक्षय जायसवाल हरदम सहायता के लिए खड़े नजर आए। दो वर्ष पूर्व कोरोना काल में उनका निधन हो गया था। शशांक ने बचपन से अपने पिता को पब्लिक की सेवा करते हुए देखा था, और वही संस्कार उन्हें मिले। इसी के चलते शानदार पैकेज और आकर्षक सुविधाओं वाली लग्जरी लाइफ भी उनके मन को बांध नहीं सकीं और पांच वर्ष की कारपोरेट सेवा को छोड़कर वह सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुट गए। एक साल की तैयारी में ही उन्होनें कामयाबी भी हासिल कर ली। वर्ष 2014 में यूपीएससी की परीक्षा में उन्हें 444वीं रैंक मिली और आईपीएस अधिकारी बनने का उनका सपना साकार हुआ। 
शशांक कहते हैं कि पुलिस सेवा में जाने के पीछे की सबसे बड़ी वजह थी कि वो जरूरत मंदों की मदद कर सकते हैं। उन्हें समाज के बीच काम करना पसंद है। शशांक कहते हैं कि लापता बच्चों को खोजकर उनके माता-पिता तक सौंपना बहुत राहत देता है।
शशांक जायसवाल मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले हैं। चांदनी चौक में उनका पुश्तैनी घर है। उनके पिता परिवार के साथ शाहदरा में शिफ्ट हो गए थे जहां उनका परिवार आज भी रहता है। शशांक जायसवाल की पत्नी श्रीमती कनिका जायसवाल भी कॉरपोरेट जॉब में हैं और एक प्रतिष्ठित कंपनी की एचआर मैनेजर हैं। उनका एक बेटा है, शौर्य जायसवाल। शशांक की एक बहन प्राची जायसवाल हैं जो स्वयं भी आईआईएम रांची से एमबीए हैं और वर्तमान में एचडीएफसी में कार्यरत हैं। प्राची के पति श्री शुभम श्रीवास्तव भी एचडीएफसी में उच्च पद पर कार्यरत हैं।
शशांक जायसवाल का आगरा और ग्वालियर से भी निकट का रिश्ता है। शशांक की मम्मी श्रीमती गोमती जायसवाल ग्वालियर की हैं। शशांक के तीनों मामा ओमप्रकाश शिवहरे, घनश्याम शिवहरे और मुकेश शिवहरे ग्वालियर में ही रहते हैं। शशांक की मौसी श्रीमती नीलिमा शिवहरे आगरा में विभव नगर में रहती हैं। मौसाजी स्व. श्री अरविंद शिवहरे की ताजगंज में ज्वैलर्स की दुकान हुआ करती थी। 
 

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