May 15, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
शख्सियत समाचार

नमनः आगरा के रामभरोसे लाल शिवहरे ‘महाशयजी’ जिन्होंने जेल में 31 दिन अनशन कर अंग्रेजी हुकूमत को झुकने पर मजबूर किया

आगरा।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम इतिहास वीरता, समर्पण और त्याग के किस्सों से भरा पड़ा है। महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह के विचार उस दौर के युवाओं के आदर्श बन गए थे। ऐसे महान संघर्ष में आगरा के शिवहरे समाज से एक ऐसा युवा भी शामिल था जिसने जेल में लगातार 31 दिनों तक आमरण अनशन कर अंग्रेजी हुकूमत को झुकने पर मजबूर कर दिया था। वह थे रामभरोसे लाल शिवहरे जिन्हें महाशयजी के नाम से भी जाना जाता था। महाशयजी के साथ उनकी सहधर्मिणी श्रीमती जलदेवी शिवहरे ने भी स्वाधीनता संग्राम और आजादी के बाद सामाजिक सेवा में पति के कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। आज स्वतंत्रता दिवस पर हम उन्हीं महाशयजी का स्मरण कर रहे हैं। 
आगरा की नाई की मंडी में एक निम्न मध्यवर्गीय दंपति स्व. श्री छोटेलाल शिवहरे द्वारा दत्तक लिए गए रामभरोसे लाल उनके लिए सौभाग्य लेकर आए थे। रामभरोसे लालजी को गोद लेने के बाद कुछ वर्षों बाद उनके पालक पिता और माता को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम पन्नालाल रखा। बाद में एक पुत्री गुलाबदेवी का भी जन्म हुआ। जब तक पन्नालाल और गुलाब देवी अपने बड़े भाई की गोद में खेलते, तब तक रामभरोसे लाल स्वयं को भारत माता को समर्पित कर चुके थे। उस समय स्वाधीनता संग्राम अपने चरम पर था। नौजवानों की वह पीढ़ी ‘एक देश, एक ईश्वर, एक जाति, एक विचार’ के नारे से प्रेरित होकर हिंदू महासभा के झंडे तले एकजुट हो रही थी। उस पीढ़ी के स्वाधीनता सेनानियों में रामभरोसे लाल शिवहरे अग्रगण्य लोगों में थे। जलसों और जुलूसों में पुलिस की लाठियों की मार सहने और जेल यात्राओं का क्रम शुरू हो गया। माता-पिता ने उन्हें ग्रहस्थी के बंधन में बांधने के लिए उनका विवाह मनोहपुर गांव की जलदेवी से करा दिया। जलदेवी ने बहुत शीघ्र जान लिया कि उनका लग्न एक ऐसे व्यक्ति के साथ हुआ है, जिसका घर पूरा घर देश है और गृहस्थी पूरा समाज है। जेल में उसकी ससुराल है। जलदेवी भी पुलिस के डंडों-लाठियों और अंग्रेज अफसरों की ठोकरों के बीच कब देवीजी हो गईं, पता नहीं चला। लंबी-लंबी जेल यात्राओं में पति के साहचर्य में जलदेवी ने असह्य यातनाएं भोगीं। 
रामभरोसे लाल शिवहरे भले ही हिंदू महासभा में थे किन्तु वह महात्मा गांधी के सत्याग्रह के अनुयायी हो गए थे। उस समय जेलों में स्वतंत्रता सेनानायों को अपराधिक कैदियों के साथ एक ही बैरक में रखा जाता था, उन्हें अपराधियों से अपमानित कराया जाता और उनके साथ अपराधियों की तरह अमानवीय व्यवहार किया जाता था। यह स्वाधीनता सेनानियों को हतोत्साहित करने के लिए अंग्रेजों की कुटिल रणनीति थी। रामभरोसे लालजी ने अंग्रेजी शासन की इस रवैये के खिलाफ जेल में आमरण अनशन कर दिया। उनका अनशन 31 दिन तक चला, जो उस समय तक सबसे लंबा अनशन था। रामभरोसे लालजी के अनशन से अंग्रेजी हुकूमत में हड़कंप मच गया और अंततः उसे झुकना पड़ा। रामभरोसे लालजी की मांगें मान ली गईं। उसके बाद स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को जेलों में सम्मान मिलने लगा, अब उन्हें जेल में आपराधिक कैदियों से अलग वार्ड में रखा जाने लगा। अमानवीय व्यवहार भी बंद हो गए। इसी अनशन के बाद हिंदू महासभा ने रामभरोसे लालजी को ‘महाशय’ नाम दिया और उनकी सहधर्मिणी जनता की ‘देवीजी’ हो गईं।
एक जेल यात्रा के दौरान महाशयजी का साहचर्य पं. जवाहरलाल नेहरू से हुआ। नेहरूजी को महाशयजी का व्यक्तित्व अच्छा लगा। जेल में वह अधिक से अधिक महाशयजी की निकटता में ही रहा करते थे। उस समय इंदिरा गांधी भी पिता से मिलने जेल आती थीं, तो महाशयजी के साथ भी बैठती थीं। महाशय रामभरोसेलाल शिवहरे को कभी सत्ता की राजनीति आकर्षित नहीं कर सकी। आजादी के बाद संविधान सभा के चुनाव हुआ तो उनका यह कहकर लड़ने से मना कर दिया कि वह विद्वानों और मनीषियों का काम है, अनपढ़ों का नहीं। जब लोकसभा के चुनाव का वक्त आया तो तब उन्होंने कहा कि जनता के बीच काम करने के लिए जनसेवकों की जरूरत होती है, नेताओं या सांसदों का नहीं। यहां तक कि नेहरूजी ने उनसे आग्रह किया कि वह चाहें तो हिंदू महासभा के टिकट पर लोकसभा के लिए खड़े हो जाएं या फिर कांग्रेस उन्हें अपना उम्मीदवार बना सकती है। महाशयजी ने विनम्रतापूर्वक संसद में जाने से इनकार कर दिया। इस प्रकार उन्होंने समाजसेवा के लिए फुरसत हासिल कर ली। 
एक बार आगरा म्युनिसिपल बोर्ड के सफाई कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी थी। एक हफ्ते में यह स्थिति हो गई की कि पूरा शहर कूड़ाघर बनने लगा, नालियां बजबजाने लगीं। लोगों ने महाशयजी से संपर्क कर अनुरोध किया कि वह अपने प्रभाव से इस हड़ताल को समाप्त कराएं। महाशयजी ने इनकार करते हुए कहा कि सफाई कर्मचारियों की मांग वाजिब है और दूसरे, वे गांधीवादी तरीके से सत्याग्रह कर रहे हैं। उनका कहना था कि सफाई कर्मचारियों की मांगें पूरी होनी चाहिए और संकट की इस स्थिति में हमें अपना कचरा खुद हटाना होगा। इसके बाद महाशयजी खुद झाड़ू लेकर सड़क पर आ गए और सफाई कार्य में जुट गए। महाशयजी की पहल से लोग इस कदर प्रभावित हुए कि अन्य लोग भी झाड़ू लेकर सड़कों पर उतर आए और पूरे नाई की मंडी में सफाई अभियान शुरू हो गया। पूरे आगरा नगर में नाई की मंडी के सफाई अभियान की धूम मच गई। विवश होकर म्युनिसिपल बोर्ड को सफाई कर्मचारियों की मांगें स्वीकार करनी पड़ी और सफाई कर्मचारियों की हड़ताल समाप्त हो गई।
खादी की धोती या चौड़ी मोरी वाला पायजामा, बादामी रंग का कुर्ता, जवाहरकट जैकेट, सफेद गांधी टोपी में लंबे-चौड़े, गोरे-चिट्टे भव्य व्यक्तित्व वाले महाशयजी की उपस्थिति किसी भी सरकारी या गैर-सरकारी आयोजन में अनिवार्य होती थी। शिवहरे समाज की सभाओं में उनकी उपस्थिति गरिमा प्रदान करती थी किन्तु चर्चाओं में उनका मौन ही देखा जाता था। शिवहरे नवयुवक मित्र मंडल के हर आयोजन में वही सभापति रहते थे। वह मित्र मंडल के प्रशंसक थे और उसके शिक्षा प्रेरक प्रयासों को वह सक्रिय बल प्रदान करते थे। आर्थिक रूप से दुर्बल शिवहरे बच्चों के स्कूलों में दाखिलों और उनकी शुल्क मुक्ति के मामलों में वह सक्रिय रुचि लेते थे।
उनका प्रतिष्ठा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आगरा में निकलने वाली उत्तर भारत की सबसे बड़ी राम बारात में नगर के शीर्षस्थ श्रेष्ठिजनों की पंक्ति में बीचोंबीच उनका स्थान होता था। महाशय जी को नगर में इतना सम्मान धन के बल पर नहीं, बल्कि देश और समाज की अप्रतिम सेवा एवं त्याग के फलस्वरूप प्राप्त हुआ था। 
महाशयजी निःसंतान थे। उनके छोटे भाई श्री पन्नालाल शिवहरे का परिवार आज भी नाई की मंडी में उसी घर में रहता है। इस परिवार की मौजूदा पीढ़ी में रवि शिवहरे (A to Z सीलिंग प्रोजक्ट्स), कवि शिवहरे औऱ ऋषि शिवहरे अपने-अपने क्षेत्र में प्रतिष्ठा पा रहे हैं।
 

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