November 1, 2024
शिवहरे वाणी, D-30, न्यू आगरा, आगरा-282005 [भारत]
समाचार समाज

भक्ति करो तो ध्रुव और प्रह्लाद जैसी; दाऊजी मंदिर में आज बरसेगा श्रीकृष्ण-जन्म और नन्दोत्सव का आनंद

आगरा।
भगवान की भक्ति में ही शक्ति है, बशर्ते भक्ति हो ध्रुव और भक्त प्रहलाद जैसी। ईश्वर का ज्ञान विलासी मनुष्य को नहीं हो सकता, यह कहा जाए कि नीति के अनुसार जो पवित्र जीवन जीता है उसी को ईश्वर का ज्ञान मिलता है।भगवान ने प्रहलाद के लिए अवतार लेकर हिरण्कश्यप का वध किया था। यदि भक्ति सच्ची हो तो ईश्वरीय शक्ति अवश्य सहायता करती है। 
ये बातें युवा कथावाचक पंडित आकाश मुदगल ने दाऊजी मंदिर में चल रही श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन ‘सती चरित्र, प्रहलाद एवं वामन अवतार’ प्रहसनों की व्याख्या करते हुए बताईं। कथा के तीसरे दिन 22 जुलाई को श्रीकृष्ण-जन्म और नन्दोत्सव का वर्णन होगा, जिसमें मंदिर अध्यक्ष श्री बिजनेश शिवहरे के नवजात पौत्र को श्रीकृष्ण का शिशु स्वरूप बनाया जाएगा। मंदिर के महंत प्रो. रामदास आचार्य (रामू पंडितजी) ने बताया कि भागवत कथा में ‘श्रीकृष्ण-जन्म और नन्दोत्सव’ इस लिहाज से महत्वपूर्ण प्रहसन है कि इस दौरान कथास्थल पर भक्तिभाव का विशेष आनंद बरसता है। पूरी कथा के इन सबसे आनंदित पलों में शामिल होने का आग्रह उन्होंने शिवहरे समाजबंधुओं और महिलाओं से किया है।
पंडित आकाश मुदगल ने दिन ‘सती चरित्र, प्रहलाद एवं वामन अवतार’ की व्याख्या करते हुए कहा कि आध्यात्मिक दृष्टि से विचार करें तब हम जान सकेंगे कि जीव मात्र की दो पत्नियां हैं सुरुचि और सुनीति। सुरुचि का अर्थ है वासना, सुनीति का अर्थ सदाचारी, संयमित व विरक्त पुरुष। अविनाशी मनुष्य यदि सुनीति के अधीन होता है तो सदाचारी बनता है। ध्रुव अविनाशी ब्रह्मानंद का स्वरुप है। राजा उत्पाटन पाद सुरुचि के अधीन था, उसने सोचा कि यदि ध्रुव को गोद में दूंगा तो सुरुचि नाराज हो जाएगी। वह था तो राजा किंतु सुरुचि रानी का ही दास था। माता सुनीति ने अपने बालक ध्रुव को अच्छे संस्कार अच्छी शिक्षा देकर उसे नारायण से मिला दिया। ध्रुव ने भगवान की शरणागति स्वीकार की तो भगवान ने उनको अपने दर्शन दिए राज्य दिया और अंत में बैकुंठ वास भी दिया।
पंडित आकाश मुदगल ने प्रहलाद चरित्र की व्याख्या करते हुए कहा कि हम सभी को अपने बच्चों को ऐसे संस्कार अवश्य देना चाहिए, जिससे वे बुढ़ापे में अपने माता पिता की सेवा करे, गो-सेवा, साधु की सेवा कर सकें। पंडित आकाश मुदगल ने कहा कि अहंकार, गर्व, घृणा और ईर्ष्या से मुक्त होने पर ही मनुष्य को ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। यदि हम संसार में पूरी तरह मोहग्रस्त और लिप्त रहते हुए सांसारिक जीवन जीते है तो हमारी भक्ति महज एक दिखावा है। भागवत कथा में प्रहलाद चरित्र पुत्र एवं पिता के संबंध को प्रदर्शित करता है और बताता है कि भयानक राक्षस प्रवृत्ति के हिरण्यकश्यप जैसे पिता को प्राप्त करने के बावजूद भी प्रह्लाद ने अपनी ईश्वर भक्ति नहीं छोड़ी और सच्चे अर्थों में कहा जाए तो प्रह्लाद ने अपने पुत्र होने का दायित्व भी निभाया। क्योंकि, पुत्र का सर्वोपरि दायित्व है कि यदि उसका पिता कुमार्गगामी और दुष्ट प्रवृत्ति का है तो उसे सुमार्ग पर लाने का प्रयास करे। 
 

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video